छत्रसेना (Paratroopers) ऐसे सैनिकों से बनी होती है, जिन्हें वायुयानों द्वारा दूरस्थ शत्रुसेना की पंक्तियों के पीछे, अथवा अन्य इष्ट स्थान पर, पैराशूट की सहायता से पृथ्वी पर लड़ने के लिए, अथवा अपनी अधिकारस्थापना के लिए, उतारा जाता है। वायुयानों पर सवार होते समय पैराशूटों के गट्ठर इन सैनिकों के शरीर पर तसमों द्वारा, बँधे होते हैं। निश्चित स्थान पर पहुँचकर, वायुयान से कूदने पर सैनिक द्वारा या अन्य प्रकार से, एक डोरी के खींचे जाने के कारण ये गट्ठर खुल जाते हैं और पैराशूट की छतरी फैलकर गिरते हुए सैनिक की गति को धीमा कर देती है।

पैराशूट की सहायता से उतरता हुआ एक छत्रसैनिक
 
वायुयान से छतरी लेकर कूदते हुए छत्रसैनिक

प्रथम विश्वयुद्ध में कुछ सैनिक कार्यों के लिए पैराशूटों का उपयोग किया गया था, किंतु वांछित स्थानों में इनसे सेना उतारने का काम लेने का विचार पीछे प्रस्फुटित हुआ। रूस से सन् 1930 में इसकी परीक्षा युद्धाभ्यासों में की, पर इस रीति को व्यावहारिक रूप देने में छ: वर्ष लग गए। सन् 1936 के युद्धाभ्यासों में सहस्रों सैनिक वायुयानों द्वारा ऊँचाई पर ले जाकर पैराशूटों की सहायता से इष्ट स्थान पर उतारे गए। इटली ने भी लगभग इसी समय छत्रसेना तैयार की। सन् 1940 में जर्मनी ने नीदरलैंड पर आक्रमण में छत्रसेना का उपयोग किया तथा सन् 1941 में क्रीट द्वीप की इनकी सफल चढ़ाई में छत्रसेना ही विशेषत: काम आई। पूर्ण विकसित जर्मन छत्रसेना के एक डिविज़न में लगभग 6,700 सैनिक होते थे। इनका उपयोग विशेषकर शत्रुसेना के बगल में, या पीछे पहुँचकर, उसका विघटन करने में होता था। द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी ने इस प्रकार की सेना का जब उपयोग आरंभ किया, तो अन्य देशों का ध्यान भी इस ओर गया और उन्होंने भी इस प्रकार की सेनाएँ तैयार कीं।


अंग्रेजों ने भी छत्रसेना का संगठन किया। इसके लिए विशेष प्रकार के पैराशूट बहुत बड़े परिमाण में तैयार किए गए। ये पूर्णरूप से स्वचालित होते थे और सैनिक के कूदते ही स्वयमेव खुल जाते थे। वायुयान तथा पैराशूट के गट्ठर से जुड़ी एक स्थैतिक डोरी सैनिक के कूद जाने पर गट्ठर का खोलने का काम करती थी और उसे खोलने के बाद अलग हो जाती थी। इन पैराशूटों का व्यास 28 फुट होता था। विविध प्रकार के सामानों या भारी वस्तुओं को पृथ्वी पर उतारने के लिए 2 फुट व्यास से लेकर 60 फुट व्यासवाले तक छत्र काम में लाए जाते थे। टैंक, तोपें तथा रक्षानौकाएँ (लाइफ बोट) उतारने के लिए अनेक वितानों के झुंडों वाले पैराशूट काम में लाए जाते थे।


छत्र सैनिकों को इष्ट स्थानों पर पहुँचाने के लिए ग्लाइडरों का भी उपयोग किया जाता है। कटिस सी-47 के ढंग का वायुयान 36 छत्रसैनिकों को ले जाने के साथ सथ तोप, टैंक तथा विविध प्रकार की सैनिक गाड़ियाँ लादे हुए दो ग्लाइडरों को भी उड़ाकर ले जाता है। पैराशूट, ग्लाइडर और वायुयान, इन तीनों के सिवाय छत्रसैनिकों के लाने-ले जाने के लिए अन्य कोई सफल परिवहन अभी तक विकसित नहीं हो सका है।

छत्रसेनाओं का साधारण स्थलसेना के सहयोग से काम करना पड़ता है। जिन सेनादलों के साथ ये संयुक्त हों उनसे मिलकर सुनिश्चित योजना के अनुसार ये अपना कर्तव्य पूरा करती हैं। इनके उपयोग का साधारण् सिद्धांत यह है कि इनसे उसी स्थान पर काम लिया जा सकता है जहाँ वायु की प्रमुखता सुनिश्चित हो। छत्रसेनाओं का ले जाते हुए वायुयानों या अन्य परिवहनों पर शत्रु के लड़ाकू हवाई जहाज सरलता से आक्रमण कर सकते हैं, किंतु ये अपनी सुरक्षा करने में सर्वथा अक्षम होते हैं। इसलिए सफलता आदि के लिए यह आवश्यक है कि छत्रसेना के उपयोग से पूर्व शत्रु के वायुयानों से स्थानीय व्योम को पूर्णत: मुक्त कर लिया जाए। इस प्रकार के आक्रमण में हताहतों की संख्या अधिक होती है, किंतु एक बार जब उतरी हुई सेनाएँ जम जाती हैं तो शत्रु का व्यूह भंग हो जाता है। द्वीपों पर आक्रमण करने और दृढ़, सुरक्षित स्थानों पर अधिकार जमाने में छत्रसेनाओं का विशेष उपयोग होता है। आक्रांत देशों के पंचमांगियों और विद्रोहियों से छत्रसेना के कार्य में सहायता मिलती है।

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