जंगीसाहेब नायक (06/07/1598) जंगी साहब का जन्म एक धनाड्य पंजाब के तांडे मे हुया. जब बंजारे स्वयंपुर्ण थे वे लाखो का कारोभार करतें थे वुस काल मे बंजारोके तिन तांडो (बंजारा, नायक, लुबाणा/लंबाडा/लमाणी) साथ हि सभि बंजारे रहा करते थे. बाद मे बावन तांडो का निर्माण हुया. 14 वी सदी से बंजारे सिख धर्म से जुडे थे वे गुरु को ही अपणा सबकुच मानते थे और गुरु घर ही अपणा सबकुच मानते थे. गुरु कि साखीया मे एसा पता चलता है के सभि बंजारे सिख थे. जंगी भंगी नायक जिस तांडे का नेतृत्व करते थे वे तांडा सतगरु लखीशा बंजारा जी के अधिन था. बाबा लखीशा जी के अधिनस्थ एसे तांडे चला करते थे. और ये सभि तांडो को केंद्र दिल्ली का रायसिना था. साल मे या छ माह मे इक्कटे होते थे. सामान का अदान प्रदान, वाया नातरा, और अन्य कार्यक्रम मनाया जाता था. और लाख डेड लाख बैलो का तांडा बनाके वुसका एक नायक नियुक्त किया जाथा था. जंगी साहब के अंतर्गत जो तांडा था वो एक लाख पच्छात्तर हजार बैलो वाला विशाल तांडा था. जहागिर बादशाने ने बाबा लखीशा के कहनेपर जंगी नायक के तांडे को भेजा था. और वो जहागिर के वजिर आसफ खा की मदत के लिये भेजा था. पर जब पता चला के जहागिर आसफ खा के जरिये विनाश कारी कार्य कर रहा है. बाबा लखीशा ने आशफ खा कि मदत न करणे के लिये आदेश दिया. और जंगी नायक ने ये आदेश जब आशफ खा को सुनाया तो वुन्होने निडर होके सहायते करणे के लिये कहा और एक सोनेका ताम्रपत्र भि दिया जिसमे लिखा था के जंगी नायक को दिन के तिन खुन माफ है और जहा जंगी नायक के बैल खडे है आशफ खा के घोडे खडे एसा समजा जाये ये आदेश दिया. इस ताम्रपत्र से निडर होकर वो आशफ खो को मदत करता रहा. जंगी नायक ने आसफ खा के सामान लादने के साथ युध्द मे भि साथ देणे लगा और हिंदु राजाओको हराने लगा ये बात जब बाबा लखीशा को पता चली तब वुन्होने भगवान दास के जरिये जंगी नायक को मारणे का आदेश दिया और इस युध्द मे जंगी नायक कि मौत हो गयी. जब लाखा बंजाराकी बात न माननेपर और हिंदु राजाके विरोध मे लढाई करणे के कारण लाखा जी ने जंगी नायक के उपर बहिष्कार कर दिया था इस वजसे आज भि बंजारे जंगी नायक कि पुजा राज मे चुपकेसे करते है और वुसही भनक भि किसी को नही लगणे देते. वुसे गप्ती पुजा कहते है वुसमे बकरा बली कि प्रथा है.