जन्म कुण्डली

जन्म कुण्डली या जन्मपत्री किसी व्यक्ति के जीवन के पैदा होने की सटीक जन्म तिथि, जन्म समय और जन्म स्थान के आधार पर बनाई जाती है। यह ज्योतिषीय गणना के आधार पर बारह खाने का एक चार्ट होता है। जन्म कुण्डली को इंग्लिश भाषा में बर्थ चार्ट बोला जाता है।

ज्योतिषीय गणना के अनुसार बने इस चार्ट से उस व्यक्ति के नाम का प्रथम अक्षर निकाला जाता है। व्यक्ति की जन्म कुंडली में चन्द्रमा जिस राशि में होता है तथा उस समय के जन्म नक्षत्र को देखकर उसके हिसाब से यह जाना जाता है।

जन्म कुंडली में 12 खाने होते है जिन्हे भाव कहा जाता है। जन्म कुण्डली का प्रत्येक भाव उस व्यक्ति के जीवन चक्र से संबंध दिखाता है।

जन्म कुंडली का प्रथम भाव लग्न कहलाता है। इस भाव से व्यक्ति की शारीरिक बनावट, कद काठी और रंग रूप के बारे में जाना जाता है।

जन्म कुंडली का दूसरा भाव व्यक्ति की वाणी, परिवार और धन से संबंधित होता है।

जन्म कुण्डली का तीसरा भाव व्यक्ति के साहस, पुरुषार्थ या डरपोक प्रवृत्ति तथा छोटे भाई, बहन से संबंधों को दिखाता है।

जन्म कुण्डली का चौथा भाव उसको माता से सुख तथा माता का व्यवहार दिखाता है। इसे सुख स्थान भी कहते है और उस व्यक्ति के जीवन में सुखों की स्थिति कैसी रहने वाली है, इससे यह जाना जाता है।

जन्म कुण्डली का पांचवा भाव बुद्धि, प्रेम संबंध और संतान का घर माना जाता है। इसके यह देखा जाता है कि व्यक्ति का बौद्धिक स्तर कैसा होगा, प्रेम संबंध या लव मैरिज और संतान कितनी होगी तथा उसका अपनी संतान से कैसे संबंध रहेंगे।

जन्म कुंडली का छठा भाव रोग, ऋण और शत्रु के बारे में बताता है। इस भाव से यह देखा जाता है कि व्यक्ति का स्वास्थ्य कैसा रहेगा। वह व्यक्ति दूसरों का ऋणी होगा या नहीं तथा वह जीवन में शत्रुओं से परेशान रहेगा या शत्रुओं पर विजय प्राप्त करेगा।

जन्म कुण्डली का सातवां भाव वैवाहिक जीवन के बारे में बताता है कि पति पत्नी के बीच आपसी सामंजस्य कैसा रहेगा। पति या पत्नी का रंग रूप और व्यवहार कैसा होगा। इस भाव को सांझेदारी या पार्टनरशिप का भाव भी कहते है जिससे किसी व्यक्ति के साथ पार्टनरशिप में कार्य से आपको लाभ होगा या हानि या धोखा मिलेगा।

जन्म कुंडली का आठवां भाव मृत्यु भाव भी कहलाता है। इस भाव से मृत्यु, मृत्यु का कारण या प्रकार, विदेश यात्राओं का योग और विदेश यात्रा से लाभ या हानि, समुंद्री यात्रा, अचानक से धन प्राप्ति के योग, जुआ, सट्टा या लॉटरी से आकस्मिक धन प्राप्ति आदि के विषय में जाना जाता है।

जन्म कुण्डली का नवम भाव भाग्य भाव कहलाता है। इस भाव से व्यक्ति को जीवन में भाग्य का साथ मिलेगा या नहीं, धर्म के प्रति आस्था या विरक्ति, पौराणिक विद्या की जानकारी, भावज, जीजा, साली से कैसे संबंध रहेंगे, इसकी जानकारी मिलती है। तीर्थ यात्रा या परलोक का विचार भी नवम भाव से किया जाता है।

जन्म कुण्डली का दशम भाव कर्म स्थान कहलाता है। दशम भाव से उस व्यक्ति के पिता के बारे में जानकारी तथा उनके आपसी संबंधों को बताता है। वह व्यक्ति व्यवसाय करेगा या प्राइवेट नौकरी या सरकारी नौकरी, इसका विचार दशम भाव से किया जाता है। सरकार से सम्मान या लाभ तथा उसकी अपने पति या पत्नी की मां अर्थात अपनी सास का विचार भी दशम भाव से किया जाता है।

जन्म कुण्डली का एकादश भाव लाभ भाव कहलाता है। व्यापार या नौकरी से लाभ, जीवन में उसके द्वारा किए गए कर्मों की फल प्राप्ति एकादश भाव से देखी जाती है। इसके अतिरिक्त बड़े भाई, दामाद, बहु आदि की जानकारी भी एकादश भाव से देखी जाती है।

जन्म कुण्डली का द्वादश भाव व्यय भाव कहलाता है। इस भाव से खर्च, दांपत्य सुख, शय्या सुख अर्थात नींद, मोक्ष, दान, त्याग, फिजूल खर्ची, जेलयात्रा योग, भोग विलास, विदेश से संबंध के बारे में जाना जाता है। पिता के भाई बहन अर्थात चाचा और बुआ के बारे में भी द्वादश भाव से जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

इसके अतिरिक्त जन्म कुण्डली से उस व्यक्ति के जीवन में ग्रह स्थिति, उच्च या नीच ग्रह, ग्रहण दोष, कालसर्प दोष, पितृ दोष, ग्रहों की दशा अंतर्दशा आदि के आधार पर उसके जीवन में आने वाले उतार चढ़ाव, स्वास्थ्य और धन की स्थिति के बारे में विस्तार से जाना जा सकता है।