छान्दोग्योपनिषद् - चौथा खण्ड

पुराकाल में जबाला के पुत्र सत्यकाम ने अपनी जबाला माता को पुकार कर पूछा ! मैं ब्रह्मचर्य धारण करूँगा । तू बता - मैं कौन गोत्र वाला हूँ ।

वह इस पुत्र को बोली - प्यारे ! मैं नहीं जानती कि किस गोत्र वाला तू है । मैंने अनेक स्थानों में काम करने वाली नौकरानी ने यौवन में तुझे पाया । इस कारण जिस गोत्र वाला तू है वह मैं यह नहीं जानती । जबाला वाली तो मैं हूँ और सत्यकाम नाम तू है । सो “ जाबाला सत्यकाम “ ही गुरु के पूछने पर कहना ।

वह सत्यकाम गौतम नाम वाले हरिद्रमान् के पुत्र हारिद्र्यप्रत के पास जा कर बोला - मैं भगवान के समीप ब्रह्मचर्यव्रत को पालता हुया रहूँगा । इस कारण भगवान के पास आया हूँ ।

उस सत्यकाम को गौतम ने कहा - प्यारे ! किस गोत्र वाला तू है ? उत्तर में वह बोला - हे भगवान् ! जिस गोत्र वाला मैं हूँ यह मैं नहीं जनता । मैंने अपनी माता को गोत्र पूछा था । उसने मुझे कहा - मैं बहुत स्थानों में काम करती हुई नौकरानी थी । यौवन में तू मुझे प्राप्त हुआ इत्यादि पूर्ववत् । सो मैं सत्यकाम जाबाल हूँ ।

सत्यकाम को गौतम ने कहा - अब्रह्मण - अज्ञानी यह बात नहीं कह सकता । इस कारण तू ब्राह्मण है । प्यारे समिधा ले आ, मैं तुझे उपनयन में लाऊँगा । तू सत्य से चलायमान नहीं हुआ । उस को उपवीत देकर गुरु ने कृश दुर्बल गौऊँ में से चार सौ गौएँ निकल कर उसे कहा - प्यारे ! इन के पीछे जा । इन को वानों में में ले जा । उनको चलाते समय वह बोला - हे गुरो ! सहस्त्र हुए बिना मैं नहीं लोटूँगा । वह बरसों तक वनों में प्रवासी बना रहा । जब वे गोएं सहस्त्र हुईं ।

लेखक : पूज्य श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज 

Post by Ashwsni Bedi , shri Ram sharnam , Ludhiana, pb India .