जयमल 1

पौराणिक विष्णु-उपासक राजा था। विष्णु की पूजा में लीन रहने के कारण वह राजकाज से विरत-सा हो गया। कथा है कि उसके पूजा में व्यस्त रहते जब शत्रु ने आक्रमण कर दिया भगवान विष्णु ने स्वयं लड़ाई लड़ी और शत्रु को पराजित किया। यह जानकर आक्रमणकारी भी विष्णुभक्त हो गया।

जयमल 2

प्रसिद्ध राजपूत सामंत था। १५६८ ई में अकबर ने जब चितौड़ पर आक्रमण किया तब राणा संग्रामसिंह के पुत्र महाराणा उदय सिंह अपने सामंतो के कहने पर चितौड़ दुर्ग का भार अपने सामन्तों को सौंप स्वयं राजकोष और राजपरिवार सहित सुरक्षित स्थान पर चले गए और किले की सुरक्षा का जिम्मा जयमल राठौड़ और पत्ता चुंडावत को सौंप दिया। इन वीरों ने मुगल सम्राट् अकबर के विरुद्ध चित्तौड़ की रक्षा का भार सँभाला। राजपूतों ने शाका किया। सभी वीरों ने केसरिया धारण किया और भूखे शेरों की भांति शत्रुओं पर टूट पड़े । 8000 की राजपूती सेना ने 60000 की मुगलिया सेना के छक्के छुड़ा दिए। अकबर भी इन वीरों के युद्ध कौशल से भयभीत और अचंभित हो उठा। युद्ध भूमि में अकबर के विरुद्ध युद्ध करते हुवे सभी वीर वीरगति को प्राप्त हुए । अकबर भी इनकी वीरता से इतना प्रभावित हुआ कि फत्ता सिंह चुंडावत और जयमल मेड़तिया की प्रस्तर मूर्तियाँ बनवाकर अपने महल के सिंहद्वार पर स्थापित करवाई।[1]

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