जय हो भ्रष्टाचार की
जय हो भ्रष्टाचार की निरुपमा प्रकाशन, मेरठ द्वारा प्रकाशित सुप्रसिद्ध कवि गाफिल स्वामी का काव्य संग्रह है। यह पुस्तक भ्रष्टाचार पर केन्द्रित है। काव्य कृति (जय हो भ्रष्टाचार की) किताब के लेखक कवि गाफिल स्वामी ने इस किताब के माध्यम से देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर कर समाज को नई दिशा की ओर मोड़ने का काम किया है। उनको इस कृति की रचना करने पर शब्द प्रवाह साहित्य मंच उज्जैन, मध्य प्रदेश द्वारा शब्द भूषण की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया।[1]
लेखक | गाफिल स्वामी |
---|---|
भाषा | हिंदी |
शैली | काव्य, भ्रष्टाचार |
प्रकाशक | निरुपमा प्रकाशन |
प्रकाशन तिथि | २०१२ |
प्रकाशन स्थान | भारत |
मीडिया प्रकार | प्रिंट (पेपरबैक) |
पृष्ठ | १२४ |
आई.एस.बी.एन | 978-93-81050-09-5 |
वर्तमान परिवेश में भ्रष्टाचार एक ऐसा मुद्दा है जो ढलान पर अनियंत्रित वाहन की तरह गति पकड चुका है। विषय विशेष पर इतना अधिक लिखना विरले लोग ही कर पाते हैं। इस पुस्तक के प्रकाशन से कवि ने सदियों तक अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है। किसी कविता में कुछ अलग हटकर लिखा हो तो उस विशेष कविता की चर्चा अनिवार्य हो जाती है। लेकिन इस पुस्तक में प्रत्येक कविता विशेष होने के कारण किसी खण्डकाव्य का अर्क प्रतीत होती है। भ्रष्टाचार पर अंकुश असंभव सा लगता है।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "गाफिल स्वामी को मिली शब्द भूषण की उपाधि". दैनिक जागरण. ३१ मार्च २०१३. मूल से 19 जनवरी 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 नवंबर 2014.