जल अधिकार से आशय उस विधिक अधिकार से है जिसके अंतर्गत एक व्यक्ति को किसी जल स्रोत से पानी प्राप्त करने का अधिकार हो। वस्तुतः बार-बार यह रेखांकित किया गया है कि स्वच्छ जल की प्राप्ति व्यक्ति के जीवन से जुड़ी है और इसीलिए जीवन के अधिकार कि तरह यह भी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है कि वह स्वच्छ जल प्राप्त कर सके।

जुलाई, 2010 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने स्वच्छ जल की उपलब्धता को एक मानव अधिकार बनाने का प्रस्ताव मंजूर किया जिसमें 163 सदस्य देशों में से 122 ने इसके पक्ष में मतदान किया, जबकि 41 सदस्य देशों ने मतदान में भाग नहीं लिया था। सितंबर, 2010 में मानवाधिकार परिषद ने आम सहमति से प्रस्ताव पारित कर इस बात की पुष्टि कर दी कि जल एवं स्वच्छता व्यक्तियों के लिये मौलिक अधिकार हैं और इनका सुनिश्चित कराया जाना सबकी जिम्मेवारी है।[1]

संयुक्त राष्ट्र महासभा के मानवाधिकार परिषद के इस प्रस्ताव में कहा गया-

"पेयजल एवं स्वच्छता का मानवाधिकार जीवन के समुचित स्तर के अधिकार का ही एक अंग है और यह जीवन एवं मानव गरिमा के अधिकार के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा है।"[2]

रेडियो रूस के अनुसार जल एवं स्वच्छता के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र महासभा की एक बैठक में सन २०११ में एक बार फिर बान की मून ने कहा कि बहुत से देशों की सरकारों ने पहले ही जल एवं स्वच्छता के अधिकार को अपने संविधान तथा कानूनों में शामिल किया है। और जिन्होंने ऐसा नहीं किया है, उन्हें बिना देरी किए इस दिशा में कदम उठाने की जरूरत है।[3]