जाट

जाति, उत्तरी भारत और पाकिस्तान में पारंपरिक रूप से कृषि समुदाय हैं।
(जाट सिख से अनुप्रेषित)

जाट या जट उत्तरी भारत और पाकिस्तान में पारंपरिक रूप से किसानों का एक जाति समुदाय हैं।[1]

जाट

Maharaja Suraj Mal.jpg

भरतपुर के 18 वें सदी के हिन्दू जाट शासक महाराजा सूरज मल
वर्ण कृषक/योद्धा
धर्म हिन्दू, सिख, मुसलमान
भाषा हरियाणवी, हिन्दी, पंजाबी, राजस्थानी, ब्रजभाषा, सिंधी, उर्दू
वासित राज्य पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, मध्यप्रदेश,हिमाचल प्रदेश, गुजरात, जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड आदि।
क्षेत्र भारतीय उपमहाद्वीप ~3-4 करोड़ (2009-10)

जाट, गुर्जर और यादव (अहीर) राजपूत बिल्कुल नहीं हैं। वे क्षत्रियों की जनजाति हैं। शासक के लिए राजपूत शब्द का प्रयोग रामायण और महाभारत के समय में नहीं हुआ है इतिहास की पुस्तकों या पुराणों में 600 ई. तक और 600 ई. से 1200 ई. के बाद राजपूत जैन ग्रंथ जैसे पुस्तकों में नहीं मिलते हैं, यहां तक ​​कि राजपूत पृथ्वीराज रासो पुस्तक में नहीं मिलते हैं जो 13वीं या 14वीं शताब्दी ईस्वी में लिखी गई थी।[2] राजपूत एक मिश्रित समूह हैं। कुछ राजपूत विदेशी आक्रमणकारियों जैसे शक, कुषाण और हूणों के वंशज हैं। और अन्य शूद्रों और आदिवासियों के हैं।[3]

आधुनिक स्थिति

प्राचीन काल से युद्ध कला में निपुण रहे जाट मुख्य रूप से खेती और पशुपालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। जाट अच्छे योद्धा माने जाते थे और इसीलिए भारतीय सेना में जाट रेजीमेंट नाम से एक रेजीमेंट है।

जाट मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, पश्चमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान,मध्य प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर जैसे आदि राज्यों में फैले हुए हैं। गुजरात में इन्हें आँजणा जाट (आँजणा चौधरी) नाम से जाना जाता है, पंजाब में इन्हें जट(जट्ट सिख) बोला जाता है और हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा क्षेत्र में इस समुदाय को घिरथ जाट या घृत चौधरी (घिरथ चौधरी) नाम से जाना जाता है[4] सामान्यत: जाट हिन्दू, सिख, मुस्लिम आदि सभी धर्मो में देखे जा सकते हैं। [5]मुस्लिम, सिख जाट तथा बिश्नोई जाट, हिन्दू जाटों से ही परिवर्तित हुए थे[6][7]

स्वतंत्रता से पूर्व

हिन्दुस्तान टाइम्स के २०१२ के आकलन के अनुसार, भारत में जाटों की सम्भावित संख्या ८.२५ करोड के लगभग है।[8]

भारतीय गणराज्य

जाट समुदाय भारत में मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और गुजरात आदि राज्यो में बसते हैं। पंजाब में यह जट (जट्ट) कहलाते हैं तथा शेष प्रदेशों में जाट कहलाते है। [9]

राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों में जाट जाति अन्य पिछड़ा वर्ग के रूप में वर्गीकृत की गयी हैं।[10][11][12][13]

२०वीं सदी और वर्तमान में जाट हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली[14] राजस्थान और पंजाब[15] में राजनैतिक रूप से अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। भारत के छटे प्रधानमन्त्री चरण सिंह सहित कुछ जाट नेता ख्यात राजनेताओं के रूप में उभरे।

पाकिस्तान

पाकिस्तान में बड़ी संख्या में जाट मुस्लिम रहते हैं और पाकिस्तानी पंजाब तथा मौटे तौर पर पाकिस्तान में सार्वजनिक जीवन में प्रमुख भूमिका में हैं। इसके अतिरिक्त पाकिस्तान-प्रशासित कश्मीर में भी जाट समुदाय निवास करते हैं।

पाकिस्तान में भी जाट नेता विशिष्ट राजनेता हैं जैसे आसिफ अली ज़रदारी और हिना रब्बानी खर[16]

इतिहास

वह मूल रूप से सिंध की निचली सिंधु नदी-घाटी में चरवाहे थे।[6][17] जाट ने मध्ययुगीन काल में उत्तर में पंजाब क्षेत्र में पलायन किया और बाद में 17 वीं और 18 वीं शताब्दी में दिल्ली क्षेत्र, पूर्वोत्तर राजपुताना और पश्चिमी गंगा के मैदानों में पलायन किया। इस्लाम, सिख और हिंदू धर्म को मानने वाले यह लोग अब पाकिस्तान के सिंध और पंजाब प्रांतों में और भारतीय राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में रहते हैं। "जाट" ऐसा लचीला नाम है जो उन लोगों के लिए प्रयोग होता है जिनका सिंध की निचली सिंधु घाटी में पशुचारण का आचरण था और जो पारंपरिक रूप से गैर-अभिजात वर्ग है।[6] ग्यारहवीं और सोलहवीं शताब्दियों के बीच, जाट चरवाहे नदी घाटियों के साथ पंजाब में चले गये जहाँ खेती पहली सहस्राब्दी में नहीं हुई थी। कई लोगों ने पश्चिमी पंजाब जैसे क्षेत्रों में खेत जोतना शुरू किया, जहां हाल ही में सकिया लाया गया था। मुग़ल काल के प्रारंभ में, पंजाब में, "जाट" शब्द "किसान" का पर्याय बन गया था और कुछ जाट भूमि प्राप्त कर लिये थे और स्थानीय प्रभाव डाल रहे थे।[6][7]

समय के साथ जाट पश्चिमी पंजाब में मुख्य रूप से मुस्लिम, पूर्वी पंजाब में सिख और दिल्ली और आगरा के बीच के क्षेत्रों में हिंदू हो गए।[18] 18 वीं शताब्दी की शुरुआत में मुगल शासन के पतन के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप के भीतरी इलाकों के निवासी जिनमें से कई सशस्त्र और खानाबदोश थे ने तेजी से बसे शहरवासियों और कृषकों के साथ परस्पर प्रभाव डालना शुरू किया। 18 वीं शताब्दी के कई नए शासक ऐसे घुमंतू पृष्ठभूमि से आए थे। जैसे ही मुगल साम्राज्य लड़खड़ाने लगा गया था उत्तर भारत में ग्रामीण विद्रोह की एक श्रृंखला शुरू हो गयी थी। यद्यपि इन्हें कभी-कभी "किसान विद्रोह" के रूप में चित्रित किया गया था, असल में छोटे स्थानीय जमींदार अक्सर इन विद्रोहों का नेतृत्व करते थे।[19] सिख और जाट विद्रोहियों का नेतृत्व ऐसे छोटे स्थानीय जमींदारों द्वारा किया जाता था जिनका एक-दूसरे के साथ घनिष्ठ और पारिवारिक संबंध थे और उनके अधीन किसान थे।

बढ़ते किसान-योद्धाओं के ये समुदाय अच्छी तरह से स्थापित भारतीय जातियों के नहीं थे बल्कि काफी नए थे।[20] यह लोग मैदानों के पुरानी किसान जातियों, विविध सरदारों और खानाबदोश समूहों को अवशोषित करने की क्षमता के साथ थे। मुगल साम्राज्य, यहां तक ​​कि अपनी सत्ता के चरम में भी ग्रामीण वासियों पर सीधा नियंत्रण नहीं रखता था। यह ये ज़मींदार थे जिन्होंने इन विद्रोहों से सबसे अधिक लाभ उठाया और अपने नियंत्रण में भूमि को बढ़ाया। कुछ ने मामूली राजकुमारों की पदवी को भी प्राप्त किया जैसे कि भरतपुर रियासत के जाट शासक बदन सिंह। जाट गंगा के मैदान में क्रमशः सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में दो बड़े प्रवास में पहुंचें। वे सामान्य हिंदू अर्थ में जाति नहीं थे, उदाहरण के लिए जैसे पूर्वी गंगा के मैदान के भूमिहार थे; बल्कि वे किसान-योद्धाओं का एक समूह थे।[21]

ब्रजकालीन

17 वीं शताब्दी के अंत और 18 वीं शताब्दी के प्रारंभ में जाटों ने मुगल साम्राज्य के खिलाफ हथियार उठाए। हिंदू जाट राज्य महाराजा सूरज मल (1707-1763) के अधीन अपने चरम में पहुँच गया। 20 वीं शताब्दी तक, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली सहित उत्तर भारत के कई हिस्सों में जमींदार जाट एक प्रभावशाली समूह बन गए। इन वर्षों में, कई जाटों ने शहरी नौकरियों के पक्ष में कृषि को छोड़ दिया और उच्च सामाजिक स्थिति का दावा करने के लिए अपनी प्रमुख आर्थिक और राजनीतिक स्थिति का उपयोग किया।[1]

संस्कृति और समाज

सेना

 
14वें मूर्रे जाट लांसर्स (रिसालदार मेजर)

भारतीय सेना में बड़ी संख्या में जाट लोग हैं जिसमें जाट रेजिमेंट, सिख रेजिमेंट, शामिल हैं, जिनमें उन्हें वीरता और बहादुरी के विभिन्न पुरस्कार प्राप्त हुये हैं। जाट लोग पाकिस्तानी सेना (मुख्यतः पंजाब रेजिमेंट) में शामिल हैं।[22]

धार्मिक संस्कृति

जाट अपने पूर्वजों की भी पूजा करते हैं।[23] जाट प्रारम्भ से प्रकृति पूजक 'वैदिक' सनातन धर्मी रहे हैं।

जाटों की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न मत हैं परन्तु स्वीकृत सिद्धांत के अनुसार जाट मूलतः भारतीय है।[24]

वर्ण स्थिति

कुछ स्रोतों में कहा गया है कि जाटों को क्षत्रिय माना जाता है जबकि अन्य उन्हें वैश्य या कृषक वर्ण प्रदान करते हैं।[25] ब्राह्मणों को छोड़कर अधिकांश उत्तर भारतीय गांवों में जाट, राजपूत, और ठाकुर जाति पदानुक्रम के शीर्ष पर हैं।[26]

ब्रिटिश राज के बाद के वर्षों में राजपूतों ने जाटों के क्षत्रिय के दावों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और इस मतभेद के कारण दोनों समुदायों के बीच अक्सर हिंसक घटनाएं हुईं। क्षत्रिय का उस समय का दावा आर्य समाज द्वारा किया जा रहा था जो जाट समुदाय में लोकप्रिय था।[27]

गौत्र पद्धति

जाट समाज में अपने वंश गोत्र के लोग परस्पर भाई-भाई की तरह मानते है.[28] जाट लोग विभिन्न गोत्रों में विभक्त हैं जिनमें से कुछ गौत्र एक दूसरे पर अधिव्यापित होती हैं।[29]

जाट सिख

सिख धर्म के अनुयायी जाट समुदाय को जाट सिख या पंजाबी भाषा में जट्ट सिक्ख (गुरमुखी: ਜੱਟ ਸਿੱਖ) कहा जाता है। जाट सिख मुख्यतः भारत के पंजाब, उत्तरी राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और पश्चमी उत्तर प्रदेश के निवासी हैं। जट्ट सिक्ख (जाट) पाकिस्तान के पूर्वी भागों में भी बहुतायत संख्या में है। पंजाबी सिख दलितों के बाद जाट सिख भारतीय पंजाब की सबसे बड़ी आबादी है।[30]

ब्रिटिश राज काल की जनगणना के अनुसार, अधिकांश सिख जाट, हिंदू धर्म से सिख धर्म में आये हैं।[31][32] पंजाब क्षेत्र के हिंदू, मुस्लिम और सिख समुदायों के जाटों और राजपूतों जैसे समुदायों के बीच संबंध कई सदियों से अस्पष्ट रहे हैं। विभिन्न समूह अक्सर अपनी विशिष्टता का दावा करते हुए समान उत्पत्ति का दावा करते हैं।[33]

कुछ जाटों ने छोटी संख्या में गुरु नानक की शिक्षाओं का पालन करना शुरू कर दिया और ये खालसा के गठन के बाद सामिल हो गए।[34][35] उन्होंने 18वीं शताब्दी के बाद से मुगल साम्राज्य के खिलाफ प्रतिरोध के मोर्चे का गठन किया, जाटों ने छठे गुरु, हरगोबिंद की अवधि के दौरान बड़ी संख्या में सिख धर्म में शामिल होना शुरू किया।[36]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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  2. Rahi, Javaid (2012-01-01). The Gujjars Vol: 01 and 02 Edited by Dr. Javaid Rahi (अंग्रेज़ी में). Jammu and Kashmir Acacademy of Art, Culture , Languages , Jammu.
  3. Chandra, Satish (2008). Social Change and Development in Medieval Indian History (अंग्रेज़ी में). Har-Anand Publications. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-241-1386-8.
  4. https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%98%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%A5_%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%9F
  5. Singh 2012, पृ॰प॰ [1].
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  7. . Cambridge University Press. 1992. पृ॰ 27. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-521-40530-0 https://books.google.com/books?id=j8wrDHqwEFIC&pg=PA27. अभिगमन तिथि 30 October 2011. पाठ "1843–1947" की उपेक्षा की गयी (मदद); गायब अथवा खाली |title= (मदद) (page 127)"
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  9. https://books.google.co.in/books?id=isvcDAAAQBAJ&pg=PA6&lpg=PA6&dq=%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%82+%E0%A4%95%E0%A4%BE+%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8&source=bl&ots=JQTZ9jknUt&sig=ACfU3U3S2jEAVtgyLsyk1ZYM6S3gV41CMQ&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwjHvsaHwMbpAhVlILcAHY18A_8Q6AEwC3oECAQQAQ#v=onepage&q=%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%82%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8&f=false
  10. "Upper castes rule Cabinet, backwards MoS". द टाइम्स ऑफ़ इंडिया (अंग्रेज़ी में).
  11. "Sheila puts Delhi Jats on OBC list" (अंग्रेज़ी में). एक्सप्रेस इंडिया. 23 अक्टूबर 1999. https://web.archive.org/web/20120120161910/http://www.expressindia.com/news/ie/daily/19991023/ige23036.html मूल जाँचें |url= मान (मदद) से २० जनवरी २०१२ को पुरालेखित.
  12. "So why are the Gujjars hungry for the ST pie?". Sify.
  13. Pai, Sudha (2007). Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance (अंग्रेज़ी में). Pearson Education India. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-317-0797-5. अभिगमन तिथि 19 जनवरी 2020.
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  15. "PremiumSale.com Premium Domains". indianmuslims.info. मूल से 1 अप्रैल 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 मई 2016.
  16. "Foreign Minister Hina Rabbani Khar". फर्स्ट पोस्ट (इंडिया) (अंग्रेज़ी में). मूल से १९ अक्टूबर २०१३ को पुरालेखित. Hina Rabbani Khar was born on 19 November 1977 in Multan, Punjab, Pakistan in a Muslim Jat family.
  17. Khazanov, Anatoly M.; Wink, Andre (2012), Nomads in the Sedentary World, Routledge, पृ॰ 177, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-136-12194-4, अभिगमन तिथि 15 August 2013 Quote: "Hiuen Tsang gave the following account of a numerous pastoral-nomadic population in seventh-century Sin-ti (Sind): 'By the side of the river..[of Sind], along the flat marshy lowlands for some thousand li, there are several hundreds of thousands [a very great many] families ..[which] give themselves exclusively to tending cattle and from this derive their livelihood. They have no masters, and whether men or women, have neither rich nor poor.' While they were left unnamed by the Chinese pilgrim, these same people of lower Sind were called Jats' or 'Jats of the wastes' by the Arab geographers. The Jats, as 'dromedary men.' were one of the chief pastoral-nomadic divisions at that time, with numerous subdivisions, ....
  18. Grewal, J. S. (1998), The Sikhs of the Punjab, Cambridge University Press, पृ॰ 5, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-521-63764-0, अभिगमन तिथि 12 November 2011 Quote: "... the most numerous of the agricultural tribes (in the Punjab) were the Jats. They had come from Sindh and Rajasthan along the river valleys, moving up, displacing the Gujjars and the Rajputs to occupy culturable lands. (page 5)"
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  31. The transformation of Sikh society — Page 92 by Ethne K. Marenco - The gazetteer also describes the relation of the Jat Sikhs to the Jat Hindus ...to 2019 in 1911 is attributed to the conversion of Jat Hindus to Sikhism. ...
  32. Social philosophy and social transformation of Sikhs by R. N. Singh (Ph. D.) Page 130 - The decrease of Jat Hindus from 16843 in 1881 to 2019 in 1911 is attributed to the conversion of Jat Hindus to Sikhism. ...
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बाहरी कड़ियाँ