जॉन कांस्टेबुल
जान कांस्टेबुल (११ जून, १७७६ - ३१ मार्च, १८३७) अंग्रेज दृश्यचित्रकार थे।
जॉन कांस्टेबल | |
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जान कांस्टेबल, Daniel Gardner की कृति, 1796 | |
जन्म |
11 जून 1776 East Bergholt, Suffolk, East Anglia, England |
मौत |
31 मार्च 1837 Hampstead, London, England | (उम्र 60 वर्ष)
राष्ट्रीयता | English |
प्रसिद्धि का कारण | Landscape painting |
इसका जन्म ११ जून, १७७६ को सफ़ोक के पूर्वी वर्गनाल्च में हुआ था। पिता धनी थे जिनकी डडहम और फ़्लैटफ़ोर्ड में कई पनचक्कियाँ चलती थीं। जान पिता का द्वितीय पुत्र था। १७ वर्ष की आयु में डेडहम ग्रामर स्कूल की पढ़ाई समाप्त कर वहाँ की चक्कियों की व्यवस्था में लगा दिया गया। बाल्यावस्था से ही उसे चित्रकारी में दिलचस्पी थी और वह इसे अपने अवकाश के समय में निरंतर सीखता रहा। ऐसे ही समय में सर जार्ज व्यूमांट से उसका परिचय हुआ। उनके यहाँ के चुने हुए चित्रों का उसके ऊपर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। चित्रकला में उसकी बढ़ती हुई रुचि देखकर उसके पिता ने सन् १७९५ में जोसेफ़ फ्रंग्टन से, जो प्रसिद्ध दृश्यचित्रकार था, सलाह लेने के उसे लंदन भेजा। जोसेफ़ ने उसकी मौलिकता को पहचाना और उसे कुछ आधारभूत बातें भी बताई। प्रसिद्ध कलाकार जे.टी. स्मिथ से उसने एचिंग सीखा। कुछ वर्ष तक वह चित्रकला की साधना में डूबा रहा। चित्रकारों से पत्रव्यवहार करता तथा कभी-कभी उनसे मिलने भी जाता। इस साधना की अवधि कुछ लंदन में बीती, कुछ सफ़ोक में। आखिरकार १७९९ की फरवरी में उसने चित्रकला को अपने जीवन का प्रमुख अंग बना लिया। रायल अकादमी का वह विद्यार्थी बना जिसके अध्यक्ष बेंजामिन वेस्ट ने उसे बहुत प्रोत्साहित किया। उन्होंने जान को चित्रकला का अध्यापन स्वीकार करने से भी मना किया और इस तरह उसकी मौलिकता को उत्साह मिला। वेस्ट, गेंसबरो तथा गिरतीन का प्रभाव उसकी कला पर बहुत पड़ा। सन् १८०६ से १८०९ तक वह अधिकतर रेनाल्ड तथा हाप्नर की नकल करता रहा। इनका प्रभाव भी उसकी चित्रकला पर गहरा पड़ा। तैलचित्र बनान भी उसने सीखा और कुछ दिन उसने अपने इस अर्जित ज्ञान को प्रकृति के जीवित रंगों के साथ जोड़ने में बिताया।
'डेडहम घाटी' में जान की कला की अपनी विशेषता दिखाई देती है जो १८११ में प्रदर्शित हुई। १८१६ में पिता की मृत्यु के पश्चात् विवाह कर वह लंदन के रसेल स्क्वायर में बस गया। यहीं उसके बहुत से प्रशंसनीय चित्रों का निर्माण हुआ; जैसे 'फ़्लैटफ़ोर्ड मिल', 'ए काटेज इन कार्नफ़ील्ड', ' द ह्वाइट हॉर्स', तथा 'स्टेटफ़ोर्ड मिल', आदि। १८१९ में उसे रायल अकादमी की सदस्यता मिली, १८२१ में प्रसिद्ध चित्र 'द हेवाइन' का निर्माण हुआ जिसपर उसे स्वर्णपदक प्रदान किया गया।
सन् १८२७ में उसे २० हजार पौंड की एक संपत्ति मिली परन्तु उसी वर्ष उसकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया। पत्नी की मृत्यु उसके जीवन की सबसे बड़ी हानि सिद्ध हुई। इस चोट को वह जीवनपर्यंत न भूल सका। वह दस वर्ष और जीवित रहा। चित्रकार का जीवन पूर्ववत् चलता रहा, तूलिका अपना कार्य करती रही। 'द सेनोटाफ़' तथा 'अरंडेल मिल ऐंड कैसल' उसके अंतिम चित्र थे। जान के अंतिम दिन गठिया तथा मानसिक शिथिलता में बीते। ३१ मार्च, १८३७ को उसकी मृत्यु हुई। उसकी समाधि हैंपस्टेड गिरजाघर के मैदान में आज भी देखी जा सकती है।
कांस्टेबुल वर्तमान दृश्यचित्रकला में अपनी मौलिकता के कारण बहुत ऊँचा स्थान रखता है। चूँकि वह पूर्वी इंग्लैंड का निवासी था जहाँ हरे-भरे चरागाह, सुन्दर क्षितिज, गाँव और रंग बिरंगे बादलों से भरा आकाश था; वहाँ की प्रकृति ने उसकी कला पर बहुत प्रभाव डाला। यही नहीं, बल्कि उसके हृदय को इतना रँग डाला की जान के चित्रों में प्रयुक्त रंग चित्रकला के क्षेत्र में प्रयुक्त आकाश के रंगों में अपना सर्वथा एकाकी स्थान रखते हैं। १८२५ में जब 'सलों' में उसने अपने चित्रों का प्रदर्शन किया, उसकी शैली ने फ्रांस के चित्रकारों को बहुत प्रभावित किया तथा इसके प्रभाव से वहाँ एक नई शैली का जन्म हुआ। किसी पूर्ववर्ती का सहारा उसने कभी नहीं लिया, बल्कि वह रंग उसकी तूलिका पर चढ़े जो उसके चक्षुओं ने स्वयं देखे। आकाश का निरन्तर बदलता हुआ चित्र उसकी आँखों से उत्तर, हृदय को छूता, तूलिका से फिसल पड़ता। प्रकृति का यह स्वाभाविक चित्रण ही उसकी कला की देन है। प्रकृति के जीवित चित्रण के लिए जिन रंगों का प्रयोग से सर्वथा भिन्न । परन्तु जिस जीवन को इन रंगों ने निखारा है वह अन्यत्र कहीं नहीं मिल सकता।