जान फ़ान आइक (Jan van Eyck ; दूसरा नाम : जान फ़ान ब्रुगे ; लगभग१३७० - १४४१ ई) नीदरलैण्ड का चित्रकार तथा हूबर्ट आइक का छोटा भाई। वह १५वीं शताब्दी के उत्तरी पुनर्जागरण काल का प्रमुख कलाकार था। दोनों भाई चित्रकारी के इतिहास में प्रसिद्ध हो गए हैं। जान फ़ान आइक मसाइक (Maaseik) में जन्मा और ब्रुग्स (नीदरलैंड्स) में मरा।

एक पगड़ीयुक्त व्यक्ति का चित्र, सम्भवतः उसका अपना ही चित्र, १४३३
गेन्ट अल्टारपीस (या, मेमने की पूजा) , 1432 ई, सेन्त बावो कैथेड्रल, गेन्ट

परिचय संपादित करें

जान ने पहले बड़े भाई से ही चित्रण में शिक्षा ली, पर शीघ्र वह उससे उस कला में आगे निकल गया और उसकी असाधारण मेधा ने उसे अपने संसार के कलावंतों में अग्रणी बना दिया और आज उसकी गणना इतिहास के सर्वोत्तम चितेरों में है।

पहले दोनों भाइयों ने अनेक चित्रांकन संयुक्त रूप से किए। इस प्रकार का एक संयुक्त चित्रण गेंट के गिरजाघर में प्रसिद्ध 'मेमने की पूजा' है, जिसमें ३०० से अधिक आकृतियाँ चित्रित हैं और जो संसार के सर्वोत्तम चित्रों में गिना जाता है। यह चित्रण दीवार में जड़े लकड़ी के तख्ते पर हुआ है, जिसके दोनों पार्श्वो में चितेरों और उनकी भगिनी की आकृतियाँ बनी हैं।

जान आइक ने चित्रण की सामग्री में इतिहास के प्रयोग का आविष्कार कर चित्रकला के इतिहास में एक क्रांति कर दी। यह आविष्कार दोनों भाइयों का संयुक्त था। वैसे, मूलत: इसके आविष्कार का श्रेय संभवत: उनको नहीं हैं आइकों के पहले भितिचित्रण को परंपरा यह थी कि आकृतियाँ समतल स्वर्णिम पृष्ठभूमि से आगे को बगैर गहराई (पर्स्पेक्टिव) के उभार ली जाया करती थीं। स्वयं फ़ान आइक ने भी पहले इसी तकनीक का अनुसरण किया। पर जैसे जैसे उसका कलाविषयक अभ्यास और सूझ बढ़ती गई, वह ग्रूप का अंकन अधिक स्वाभाविक करता गया। पहले जल के साथ मिश्रित रंगों की पृष्ठभूमि चिटख जाया करती थी, पर अब तेल की स्निग्धता से वह जमी रहने लगी। इससे चित्रण की शैली ने एक नया डग भरा।

अपनी चिती आकृतियों में पर्स्पेटक्टिव या गहराई देने के लिए उसने जिस उपाय का आविष्कार किया उससे अनेक कलासमीक्षकों ने उसे आधुनिक चित्रण का जनक घोषित किया है; कारण, अपनी नई शैली से उसने चित्रण के तकनीक को एक नई दिशा दी जिसने आनेवाली पीढ़ी को नीदरलैंड और इटली के पुनर्जागरण कलाधुरोणों की कृतियों को अमर कर दिया। फ़ान आइक की खोजों का उपयोग उन्होंने ही किया। काँच पर किए अपने चित्रणों में उसने जिस तकनीक का उपयोग किया वह उसका निजी था। उसके रंग बड़े हलके मिले होते थे पर इस प्रकार चिपक जाते थे कि उनका मिटना असंभव हो जाता था। अब तक पच्चीकारी में रंग डालने के बजाए छोटे छोटे शीशे के विभिन्न रंगों के टुकड़े जोड़ लिए जाते थे। यह सही है कि काया की कुछ भावभंगियों को अभिव्यक्त करने में यह तकनीक सदा सफल नहीं हो पाती थी, विशेषकर नग्नाकृतियों के आकलन में, परंतु आइक द्वारा अनुष्ठित शैली में चेहरे, वसनों तथा कलाकृतियों का अंकन और प्रकाश तथा छाया का प्रक्षेपण अपेक्षाकृत कहीं सुंदर होने लगा। इसका प्रमाण स्वयं उसके और उसके शिष्यों के अंकन हैं। फ़ान आइक के अनेक चित्र आज भी सुरक्षित हैं- गिरजाघरों में, संग्रहालयों और निजी संग्रहों में।

सन्दर्भ ग्रन्थ संपादित करें

  • जी.एफ. वागेन: ह्मूबर्ट ऐंड जोहान फ़ान आइक, १८२२;
  • मार्टिन कात्वे: दि फान आइक्स ऐंड देयर फ़ालोअर्स, १९२१;