जितेंद्र हरीपाल

भारतीय लोक-गीत गायक

जितेंद्र हरीपाल ( जितेंद्रिय हरीपाल ) ओड़ीशा का सम्बलपुर जिला का एक बिख्यात लोक गीत का कलाकार। उनके द्वारा गाये हुए कोशाली लोक गीत ' रंगबती ' सारे भारत मे बहुत लोक प्रिय हुआ था ७० दशक में , और इसका प्रचालन अभी तक जारी है। ७० दशक मे इसी गाने इतना लोकप्रियता हासिल किया था की , हर जगह , सादी के बारात मे भी इसी गाना का धुन बजता रहा करता था सारे भारत मे। इसी गाना का रीमिक्स सभी भाषाओं मे चलते रहा है अभीतक। इसी गाने का मूल कलाकार जितेंद्र हरीपाल एक बहुत प्रतिभाशाली लोक संगीतकार थे। उसी ने ओडिया , कोशाली , हिन्दी , भोजपुरी तथा बंगाली भासा मे १००० से ज्यादा गीत गाये हैं।  

Jitendra Haripal in Bhubaneswar

निजी जीबन 

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जितेंद्र का पिता मानधाता हरीपाल  भी एक लोक गायक और संगीतकार थे। पर बहुत ही गरीबी मे रहा करते थे। उनके पास कोई घर या जमीन भी नहीं था। इसी कारण जितेंद्र को  खूब कम उम्र मे ही अपना पढ़ाई बंद करना पड़ा। वो भी श्रमिक हिसाब से काम करना सुरू किया। पर संगीत उनके खून पर था। उसी ने अपने वक़्त निकाल कर संगीत का साधना सुरू किया। संगीत की आखड़ा के बाहर खड़े हो कर जितेंद्र गुरु ने अन्न्य छात्राओं को सिखाते हुए बिदया सीखते रहे। इसी हिसाब से वो बहुत सारे क्लासिकल म्यूजिक के बारे मे भी सीखे।  

जितेंद्र का अपना भासा मे ' संगीत को लेकर यहाँ जीना संभाब नहीं है , हाँ ,अपनी आत्मा को  आनंद जरूर मिलेगा , पर पेट नहीं भरेगा '। जितेंद्र अपनी परिबार पालन के लिए मामूली श्रमिक के हिसाब से काम करते रहे। कहीं किसी भी काम मिले , जितेंद्र कर लेते।   इसी बीच वो गाना गाते रहे , मंच पर , आखड़े में। उन्हे मौका मिला ' रंगबती ' नमक एक नए ढंग मे लिखा हुआ लोक गीत गाने के लिए। कृष्णा पटेल के साथ गाये  हुये 'रंगबती ' पहले से ही बहुत लोक प्रिय बन गया।   बाद मे ये गाने का रेकर्ड बनाया गया। द्सह भर में उसका आदर हुआ। पर कॉपीराइट के कारण जितेंद्र रेकोर्डिंग कंपनी से बांध गए और ३ साल तक कोई दूसरा गाना रेकर्ड नहीं कर पाये।  



आकाश्बाणी मे जितेंद्र ' बी ' ग्रेड काकार बने। बहुत सारे लोकगीत , भजन उनहों ने गाये। उनके कासेट , सीडी बाजार मे बहुत चले। टीवी पर भी उनका बहुत शो हुआ। समबलपुरी ब्यातित जितेंद्र भोजपुरी , हिन्दी , छतीसगड़ी भासा में भी अपने सुंदर गाने दिये।  

एक यादगार  अनुभूति जितेंद्र का 

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इस समय ' रंगबती ' गाने इतना लोकप्रियता हासल किया था देश भर में , जितेंद्र एक अनुभूति से पता चलता है। एक बार जितेंद्र रेल पर सफर कर रहे थे। ओड़ीशा के बाहर उनका चेहरा इतना परिचित ना होना स्वभाबिक था। पर बंगाल के बाटापुर स्टासन मे किसी ने उन्हे पहचान लिया। सतियों मे गाड़ी को लोग रोक दिये और बहुत सारे लोग उन्हे प्लैटफ़ार्म पर ही ' रंगबती' गाना गाने के लिए अनुरोध किए। जब तक वो कई बार ' रंगबती ' गा कर सब का मन खुस नहीं किया ट्रेन रुके रहा।  

जीतें द्र का परिबार मे उनके पत्नी के अलाबा दो बेटे दे। पर बड़े बेटे का दुर्घटना मे निधन हो चुका है। उनका दूसरा बेटा और बेटा का पत्नी भी बहुत अछे लोक संगीतकार है।

अभी जितेंद्र सम्बलपुर रेल स्टेशन के नजदीक एक झोपड़ी कॉलोनी मे अपने झोपड़ी में ही गुजारते है। बारिश के मौसम मे उधर पानी भी झोपड़ी मे आ जाते है।  

दुख जितेंद्र का 

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लोग गीत के स्वछ मान बजाय रखने के लिए जितेंद्र हमेशा उद्यम करते रहते है। अभी जो बहुत सारे गीत लोक गीत के नाम पर असलीलता का बधाबा देते है , जितेंद्र हमेशा इसका बिरोध करते रहते है।  

पुरस्कार समूह  

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  • लोक संगीत को उनका आबदान के लिए उत्कल बिस्वाबिद्यालय से उन्हे सम्मानजनक D॰Litt॰ का उपाधि मिला है २०१५ मे 
  • २००७ मे ओड़ीशा का मुख्यमंत्री नबीन पटनाइक उन्हे स्वतंत्र सम्मान दिये थे 
  • २०१२ मे ओड़ीशा प्रिमियर लीग क्रिकेट मे जितेंद्र ब्रांड अंबासदर बनाए गए थे।  

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अधिक पठन 

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  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 28 मई 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 सितंबर 2016.
  2. www.hungama.com/artists/jitendra-haripal/10396