जिनकीर्ति सूरि एक जैन आचार्य थे। वे तपागच्छीय सोमसुंदरगणि के शिष्य थे। ये 'वाचक' कहे जाते थे और सन् १४३७ में विद्यमान थे। इन्होंने श्रेष्ठिकथानक, धन्नाशालिभद्रचरित्र, नमस्कारस्तवटीका, दानकल्पद्रुम आदि ग्रंथों की रचना की। बीदर के बादशाह द्वारा सम्मानित पूर्णचंद्र कोठारी ने गिरनार पर्वत पर जब जिनचैत्य का निर्माण किया तो उसकी प्रतिष्ठा जिनकीर्ति सूरि ने की थी।

एक अन्यर जिनकीर्ति जैसलमेर के राजा मूलराज के समय हुए। इन्होंने मूल प्राकृत ग्रंथ के आधार पर संस्कृत में चार प्रस्तावों में श्रीपालचरित्रकी रचना की है।


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