जी. पी. श्रीवास्तव का जन्म सन् १८९० में हुआ था। हास्य इनकी कृतियों का प्रधान रस है। ये प्रेमचंदयुगीन उपन्यासकारों में से एक हैं।

साहित्यिक परिचय

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हिन्दी उपन्यास का इतिहास में उनकी हास्यपरक शैली के संदर्भ में गोपाल राय लिखते हैं कि- "जी. पी. श्रीवास्तव ने सामाजिक और व्यक्तिगत असंगतियों को हास्य का आधार बनाया है, पर उनके हास्य में व्यावहारिक विनोद और आंगिक-वाचिक खिलवाड़ की प्रधानता हैै...।"[1]

  • भड़ामसिंह शर्मा(१९१९)[2]
  • लतखोरी लाल(१९३१)
  • विलायती उल्लू(१९३२)
  • स्वामी चौखटानन्द(१९३६)
  • प्राणनाथ(१९२५)
  • गंगाजमुनी(१९२७)
  • दिल की आग उर्फ दिल जले की आह(१९३२)
  1. गोपाल, राय (२०१४). हिन्दी उपन्यास का इतिहास. नई दिल्ली: राजकमल प्रकाशन. पृ॰ १४४. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-267-1728-6.
  2. जी.पी., श्रीवास्तव (1951). भड़ामसिंह शर्मा (पंचम संस्करण). बनारस: हिन्दी पुस्तक एजेन्सी.