गंजम वेंकटसुब्बैया (23 अगस्त 1913-19 अप्रैल 2021) एक कन्नड़ लेखक, व्याकरणविद, संपादक, कोशकार और आलोचक थे। उन्हें जी. वी. के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने आठ से अधिक शब्दकोशों का संकलन किया, कन्नड़ में शब्दकोश विज्ञान पर चार मौलिक ग्रन्थ लिखे, साठ से अधिक पुस्तकों का संपादन किया, और कई पत्र प्रकाशित किए।[1] कन्नड़ साहित्य अकादमी पुरस्कार और पम्पा पुरस्कार के प्राप्तकर्ता, वेंकटसुब्बैया का कन्नड़ शब्दकोश की दुनिया में योगदान बहुत बड़ा है। उनकी कृति इगो कन्नड़ एक सामाजिक-भाषाई शब्दकोश है जिसमें कन्नड़ वाक्यांशों, प्रयोगों, मुहावरों का एक उदार मिश्रण शामिल है और यह भाषाविदों और समाजशास्त्रियों के लिए समान रूप से एक संदर्भ के रूप में कार्य करता है।

गंजम वेंकटसुब्बैया

व्यवसाय लेखक, शोधकर्ता, अध्यापक
लेखन काल २०वीं शताब्दी
विषय कोशकर्म, कन्नड व्याकरण, सम्पादन
उल्लेखनीय सम्मान पद्मश्री
साहित्य अकादमी पुरस्कार
पम्पा पुरस्कार
जीवनसाथी लक्ष्मी
[जी वेंकटसुबैया आधिकारिक जालस्थल]

वेंकटसुब्बिया 'कन्नड़ निघंटु शास्त्र परिचय' नामक अपने ग्रन्थ के लिये जाने जाते हैं जो कन्नड़ शब्दकोश विज्ञान से सम्बन्धित है।[2] यह 1894 में जर्मन पादरी और भारतविज्ञानी फर्डिनेंड किटेल द्वारा एक कन्नड़-अंग्रेजी शब्दकोश लिखे जाने के ठीक एक सौ साल बाद सामने आया। यह ग्रन्थ कन्नड़ में शब्दकोश लेखन की परंपरा को और आगे बढ़ाया जो कम से कम हजार वर्षों से पहले उपलब्ध रण्णकाण्ड से शुरू हुआ माना जाता है।[3][4]

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

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बी. ए. ऑनर्स द्वितीय वर्ष महाराजा कॉलेज में समूह फोटो जिसमें बी० एम० श्रीकांतैया, एस. श्रीकांत शास्त्री और जी. वेंकटसुब्बैया दिख रहे हैं।

जी वेंकटसुब्बैया का जन्म 23 अगस्त 1913 को हुआ था।[5] उनके पिता गंजम थिमन्निया कन्नड़ और संस्कृत के एक प्रसिद्ध विद्वान थे। वेंकटसुब्बैया को पुराने कन्नड़ के प्रति प्रेम की प्रेरणा देने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। उनकी प्राथमिक शिक्षा दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक के बन्नूर और मधुगिरी शहरों में हुई थी। आठ लोगों के परिवार में वे दूसरी सन्तान थे। वेंकटसुब्बैया को अपने पिता के पीछे शहर-शहर जाना पड़ता था क्योंकि उनका अक्सर सरकारी नौकरी में स्थानांतरण होता रहता था। 1930 के दशक की शुरुआत तक, वेंकटसुब्बैया का परिवार मैसूर शहर में स्थानांतरित हो गया, जहाँ वे अपने इंटरमीडिएट पाठ्यक्रम के लिए युवराज कॉलेज में प्रविष्ट हो गए, जहाँ वे के. वी. पुट्टप्पा (कुवेम्पु) के प्रभाव में आ गए। वेंकटसुब्बैया इसके बाद अपनी कला स्नातक (ऑनर्स) की डिग्री हासिल करने के लिए मैसूर के महाराजा कॉलेज में प्रविष्ट हो गए। उनके चुने हुए विषयों में प्राचीन इतिहास, संस्कृत और पुराना कन्नड़ शामिल थे। यहाँ वे टी. एस. वेंकन्नय्या (जिन्होंने पम्पा भारत को पढ़ाया), डी. एल. नरसिम्हाचर (जिन्होंने संपादकीय विज्ञान पढ़ाया) टी. एन. श्रीकांतैया (जिन्होंने काव्यमिमसे को पढ़ाया) और एस. श्रीकांत शास्त्री (जिन्होंने कर्नाटक इतिहास पढ़ाया), के संरक्षण में आए । वेंकटसुब्बैया ने 1936-38 के बीच अपना एम. ए. पूरा किया और विश्वविद्यालय स्वर्ण पदक प्राप्त किया।

  • निघंटु- (१-४)
  • नळसेन
  • अनुकल्पनॆ,
  • अक्रूर चरितॆ,
  • लिंडन् जान्सन्
  • संयुक्त संस्थानद परिचय,
  • शंकराचार्य,
  • इदु नम्म भारत
  • सरळा दास्
  • कबीर्,
  • रत्नाकर वर्णि,
  • दास साहित्य,
  • वचन साहित्य,
  • शासन साहित्य,
  • षडक्षर देवा,
  • सर्वज्ञ,
  • इणुकुनोट
  • कन्नड साहित्य नडॆदुबंद दारि,
  • कन्नड शासन परिचय
  • कर्नाटक वैभव,
  • इतर शब्द चित्रगळु
  • कन्नड कन्नड इंग्लिष् निघंटुकन्नड
  • कन्नड क्लिष्ट पदगळ कोश,
  • मध्व साहित्य भंडार १-२
  • मुद्दण प्रयोग कोश
  • काव्य लहरि,
  • काव्य संपुट,
  • इंग्लिष् कन्नड निघंटु
  • कुमारव्यासन अंतरंग,
  • तमिळु कथॆगळु,
  • नगरसन भगवद्गीतॆ,
  • कर्ण कर्णामृत,
  • ऎरवलु पदकोश,
  1. "Venkatasubbaiah deserves Jnanpith: Haranahalli". The Hindu. 20 January 2003. मूल से 2 October 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 March 2014.
  2. Arun, G. V. (2013). ಕನ್ನಡದ ಅರ್ಥವನ್ನು ತಿಳಿಸಿದ ನಾಡೋಜ ಪ್ರೊ. ಜಿ. ವೆಂಕಟಸುಬ್ಬಯ್ಯ (First संस्करण). Bangalore: Jwalamukhi Mudranalaya. पपृ॰ 1–64.
  3. Sastri 2002, पृ॰ 356.
  4. Mukherjee 1999, पृ॰ 324.
  5. "Venkatasubbaiah deserves Jnanpith: Haranahalli". Online Edition of The Hindu, dated 20 January 2003. मूल से 28 January 2005 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 October 2007.