सातवीं से बारहवीं शताब्दी तक पूरे भारत में इस शैली का प्रमुख स्थान था। इस शैली का प्रथम प्रमाण सित्तन्वासल की गुफा में बनी पांच जैनमूर्तियों से प्राप्त होता हैं। यह जैनमूर्तियां सातवी शताब्दी के पल्लव नरेश महेन्द्र वर्मन के शासन काल में बनी थी।

पीपल, आम, गूलर, अशोक, और वट ये पाँच पल्लव के पत्ते हैं।