जैन धर्म की मान्यतानुसार भगवान महावीर, जो की जन्म से ही मति, श्रुत एवं अवधि ज्ञान के धनी थे, उनके माता पिता उन्हें अध्ययन हेतु एक अध्यापक के पास ले कर जाते हैं. उस समय सौधर्म देवलोक के देवराज इंद्र को यह बात पता चलने पर वे विचार करते हैं की महावीर तो परमात्मा हैं एवं ज्ञानवान हैं. इनके माता पिता को यह बात मालूम नहीं अतः इन्हे पढ़ाने के लिए पाठशाला ले कर आये हैं. तब इंद्र एक वृद्ध ब्राह्मण का रूप बना कर उस पाठशाला में आते हैं और अध्यापक से व्याकरण के कठिन प्रश्न पूछते हैं. जब अध्यापक उन प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाते तब महावीर (वर्धमान कुमार) उन सभी प्रश्नों का उत्तर देते हैं।

इन प्रश्न और उत्तरों का संकलन ही "जैनेन्द्र व्याकरण" कहलाया. महावीर को जिन भी कहा जाता है. 'इंद्र' के द्वारा पूछे गए प्रश्नों का 'जिन' के द्वारा उत्तर दिया गया अतः यह "जैनेन्द्र व्याकरण" के नाम से प्रसिद्द हुआ.