जैन नववर्ष, दीपावली का दूसरा दिन होता है। यह दिन वीर निर्वाण संवत के अनुसार वर्ष की शुरुआत माना जाता है। इस बारे में बहुत ही कम लोगों को विदित है। मान्यतानुसार दीपावली को महावीर स्वामी का निर्वाण हुआ था।

भगवान वर्धमान महावीरस्वामीजी के निर्वाण के वर्ष के रूप में ५२७ ईसा पूर्व का उल्लेख करने वाला सबसे पहला पाठ यति-वृषभ का तिलोय-पन्नति (५ वीं शताब्दी ईस्वी) है। [1] इसके बाद के कार्य जैसे कि जिनेसा के हरिवामसा (७८३ CE) में वीर निर्वाण युग का उल्लेख है, और इसके और शाका युग के बीच के अंतर को ६०५ साल और ५ महीने के रूप में बताया।[2]

२१ अक्टूबर १९७४ को पूरे भारत में जैनियों द्वारा २५०० वां निर्वाण महोत्सव मनाया गया।[3] और विदेश में भी मनाया गया। [4]

जैन समाज द्वारा दीपावली, महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है।[1] जैन ग्रथों के अनुसार महावीर स्वामी (वर्तमान अवसर्पिणी काल के अंतिम तीर्थंकर) को चर्तुदशी के प्रत्युष काल में मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। चर्तुदशी का अन्तिम पहर होता है इसलिए जैन लोग दीपावली अमावस्या को मनाते है। संध्या काल में तीर्थंकर महावीर के प्रथम शिष्य गौतम गणधर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अतः अन्य सम्प्रदायों से जैन दीपावली की पूजन विधि पूर्णतः भिन्न है।

इन्हें भी देखें

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  1. Kailash Chand Jain 1991, पृ॰ 84.
  2. D. C. Sircar (1965). Indian Epigraphy. Motilal Banarsidass. पपृ॰ 321–322. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-208-1166-9. मूल से 17 अप्रैल 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 मार्च 2020.
  3. Upadhye, A. N.; Upadhye, A. N. (Jan–Mar 1982). Cohen, Richard J. (संपा॰). "Mahavira and His Teachings". Journal of the American Oriental Society. American Oriental Society. 102 (1): 231–232. JSTOR 601199. डीओआइ:10.2307/601199.
  4. [Iconoclastic Jain Leader Is Likened to Pope John: Support Claimed Long Practice of Silence Short Meditations Offered, GEORGE DUGAN. New York Times, 18 Dec 1973]

बाहरी कड़ियाँ

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