नगर के मध्य में एक जैन मंदिर है जिसके मध्य से पाँच मार्ग निकले हैं, जो अन्य सड़कों से मिलते हुए शहरपनाह के किसी एक दरवाजे से जा मिलते हैं। कोट दरवाजे के बाहर अलखगिरि मतानुयायी लच्छीराम का बनवाया हुआ 'अलखसागर' नाम का प्रसिद्ध कुआं है, जो बीकानेर के सबसे अच्छे कुओं में से एक माना जाता हैं। अन्य कुओं की संख्या १४ है, जो बहुधा बहुत गहरे हैं। इन कुओं में अधिकांश जल सुस्वादु तथा पीने योग्य है। महाराजा अनूपसिंह का बनवाया हुआ 'अनोपसागर' कुआं भी उल्लेखनीय है। नगर के बाहर के तालाबों में महाराजा सूरसिंह का बनवाया हुआ 'सूरसागर' सबसे अच्छा माना जाता है।

जैन मंदिर, बीकानेर संपादित करें

यहां के जैन मंदिरों में भांड़ासर का मंदिर बहुत प्राचीन गिना जाता है। कहते है कि इसे भांड़ा नामक एक ओसवाल महाजन ने १४११ ई० के लगभग बनवाया था। यह बहुत ऊँचा है, जिसके ऊपर चढ़कर सारे नगर का मनोरम दृश्य दीख पड़ता है। इसके बाद नेमीनाथ के मंदिर का नाम लिया जाता है, जो भांड़ा के भाई का बनवाया हुआ है, काफी प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त और भी कई जैन मंदिर हैं, पर वे उतने महत्वपूर्ण नहीं हैं। यहां के जैन उपासरों में संस्कृत आदि की प्राचीन पुस्तकों का बड़ा अच्छा संग्रह है, जो अधिकतर जैन धर्म से संबंध रखती है।