जैविक नाशीजीव नियंत्रण

(जैव नियंत्रण से अनुप्रेषित)

फसलों के नाशीजीवों (pests) कों नियन्त्रित करने के लिए दूसरे जीवों (प्राकृतिक शत्रुओं) को प्रयोग में लाना जैव नियन्त्रण (Biological pest control) कहलाता है।

लेडीबग नामक कीट, मीलीबग्स को खाकर साफ करते हैं।

जैव नियन्त्रण, एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन का महत्वपूर्ण अंग है। इस विधि में नाशीजीवी व उसके प्राकृतिक शत्रुओ के जीवनचक्र, भोजन, मानव सहित अन्य जीवों पर प्रभाव आदि का गहन अध्ययन करके प्रबन्धन का निर्णय लिया जाता है। विभिन्न नाशीजीवों के नियंत्रण में उपयोग होने वाले प्राकृतिक शत्राुओं का विवरण निम्न प्रकार से हैं

नाशीजीवों के प्राकृतिक शत्रु

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कीटों (नाशीजीवों) के नियन्त्रण के लिए प्रयोग किए जाने वाले प्राकृतिक शत्रुओं की तीन श्रेणियां हैं:-

  • 1. परजीवी (Parasitoids)
  • 2. परभक्षी (Predators)
  • 3. रोगाणु (Pathogens)

परजीवी कीट अपना जीवन चक्र दूसरे कीड़ो के शरीर में पूरा करते है जिसके परिणाम स्वरूप् दूसरे कीड़े मर जाते हैं। यह परजीवी कई प्रकार के होते है जैसे: अण्ड परजीवी, प्यूपा परजीवी, अण्ड सुण्डी परजीवी, व्यस्क परजीवी आदि। इनके उदहारण हैं: ट्राकोग्रामा, ब्रेकान, काटेशिया, किलोनस, एन्कारश्यिा इत्यादि।

परभक्षी परभक्षी अपने भोजन के रूप में दूसरे कीडों का शिकार करते हैं। यह फसल नाशी कीटों को खा जाते हैं। इनके उदहारण हैं: मकड़ी, ड्रेगनफलाई, डेमसफलाई, कोकसीनेलिड बीटल, प्रेइंगमेन्टिस, क्राइसोपरला, सिरफिड, इअरविग, ततैया, चींटियो, चिड़िया, पक्षी, छिपकली इत्यादि।

रोगाणु सूक्ष्म जीव होते है हारिकारक कीटो में बीमारियाँ उत्पन्न करके उन्हें मार डालते है। रोगाणुओं की प्रमुख श्रेणियां है: फफूँद, बैक्टीरिया तथा वायरस, इनके अतिरिक्त कुछ सूत्रकृमि (nematodes) भी कीटों में बीमारियां उत्पन्न करके उन्हेें मार डालते हैं। इनके उपयोग और प्रभाव के कारण इन्हें बायोपेस्टिसाईड भी कहते हैं। इनके उदहारण हैं:

प्रकृति में 90 प्रतिशत कीट, उनकी विभिन्न अवस्थाएं (अंडे, सूडी, प्यूपा, व्यस्क) फफूँद के आक्रमण से नष्ट हो जाते हैं। इनके उदहारण हैं: ब्यूवेरिया बासियाना, मेटारिजियम एनिसाप्ली, हिरिस्टुला, वार्टिसिलियम लिनाई, आदि। फफूंद का आक्रमण सभी कीटों पर लगभग समान रूप से होता हैं। फफूंद के आक्रमण से कीट 10 से 15 दिनों में मर जाते हैं। मेटारिजियम एनिसाप्ली, का प्रयोग टिड्डी दल के नियन्त्रण में व्यापक रूप से किया जा रहा है। ब्यूवेरिया बासियाना नरम शरीर वाले कीड़ो के लिए बहुत प्रभावी है। फफूंद संक्रमण द्वारा कीड़ों का मारती है। फफूंद द्वारा संक्रमण के लिए नमी का होना आवश्यक हैं। संक्रमण शरीर से संपर्क में आने से होता है। फफूंद कीड़ों की सभी अवस्थाओं पर प्रभावकारी होती हैं।

बैक्टीरिया

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प्रकृति में बेलिलस थूरिनजैंसिस और और बेसिलस पौपिली नामक बैक्टीरिया कीट नियंन्त्रण में प्रभावकारी है। लैपीडाप्टरन कीटों के नियंन्त्रण में बेसिलस थूरिनजैंसिस का उपयोग व्यापक रूप से किया जा रहा हैं। बैक्टीरिया संक्रमण द्वारा कीड़ों को मारते हैं, संक्रमण आहार द्वारा होता है।

प्रकृति में न्यूक्लियो पालीहाइड्रोसिस वायरस और ग्रेन्यूलोसिस वायरस नामक वायरस कीट नियंत्रण में प्रभावकारी हैं। वायरस संक्रमण द्वारा कीड़ों को मारते हैं, संक्रमण आहार द्वारा होता है। वायरस स्पीसीज स्पेसीफिक होते है। एक स्पीसीज के लिए उसका खास वायरस ही लाभकारी होगा। अतः वायरस के प्रयोग से पहले कीड़ों की सही पहचान हाना आवश्यक है।

जैव नियन्त्रण रणनीतियाँ

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जैव नियन्त्रण की तीन रणनीतियां हैं:

प्राकृतिक शत्रुओं का प्रवेश

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इस विधि में प्राकृतिक शत्रुओं को अन्य स्थान से लाकर आक्रमणकारी कीटांे पर छोड़ते हैं। यह बड़ी सावधानी के साथ वैज्ञानिक लोंगों द्वारा अम्ल में लाया जाता हैं। नाशीजीवों के नए स्थानों पर फैल जाने से वहां पर उनके प्राकृतिक शत्रु मौजूद नहीं होेते। वैज्ञिानिक उनके प्राकृतिक शत्रुओं को विश्व में अन्य स्थानों पर खोजते हैं। उनके सुरिक्षत होने को निश्चित करते हैं। फिर उन्हें प्रयोग में लाते हैं।

बढ़ोतरी करना

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इस विधि में पहले से ही मौजूद प्राकृतिक शत्रुओं की संख्या को इस कदर बढ़ाया जाता है ताकि हानिकारक कीड़ों की संख्या को आर्थिक हानि स्तर से नीचे रख सकें। यह बड़ोतरी प्रयोगशाला में गुणन किए हूए प्राकृतिक शत्राुओं द्वारा की जाती है।

यह सबसे महत्वपूर्ण रणनीति है। यह ऐसी व्यवस्था है जिसमें प्रकृति में पाये जाने वाले प्राकृतिक शत्रुओं यानि मित्रजीवों को संरक्षण दिया जाता है। ताकि उनकी संख्या का संतुलन हानिकारक कीड़ों के साथ बना रहे। होता यूं है कि फसलों में हानिकारक कीड़ों की संख्या मित्र जीवों/प्राकृतिक शत्रुओं की संख्या से बहुत कम होती है। यह मित्र जीव/प्राकृतिक शत्रु हानिकारक कीड़ों को नष्ट करते रहते हैं और उनकी संख्या को आर्थिक हानि स्तर से नीचे रखने में हमारी सहायता करते हैं। हम मित्र कीटों तथा दुश्मन कीटों की पहचान न होने के कारण या शत्रु कीड़ों के आपेक्षित आक्रमण के भयवस या शत्रु कीड़ो तथा मित्र कीटों के अनुपात का सही आंकलन न होने की स्थिति में अक्सर रासायनिक कीट नाशकों का छिड़काव तभी करें जब एकीकष्त नाशीजीव प्रबन्धन के अन्य तरिके सफल/कारगर न हों। रासायनिक कीट नाशकों का छिड़काव उन्हीं पौधों या पंक्तियों पर करें जहां आक्रूमण आर्थिक हानि स्तर से अधिक हो। हमें फसलों की लगातार निगरानी करते रहना चाहिए अर्थात हानिकारक कीड़ों, मित्र जीवों, बीमारियों, खरपतवारों की उपिस्थिति तथा संख्या का आंकलन हर समय करते रहना चाहिए।

संरक्षण के लिए निम्न बातों का ध्यान रखें:-

  • हानिकारक कीड़ों के अण्ड-समूहों को एकत्र करके खेत में स्थापित बांस पिंजरे में रखना ताकि मित्र किटों को बचाया जा सके तथा हानिकारक कीटों को नष्ट किया जा सकें।
  • किसानों को ऐसा प्रशिक्षण दिया जाये ताकि वे हानिकारक तथा मित्र किटों को पहचान कर स्प्रे के समय मित्र कीटों को कीटनाशकों से सीधे सम्पर्क से बचा जा सकें।
  • यदि सभी सम्भव एककीकष्त नाशीजीव प्रबन्धन विधियां लाभकारी न हों तो सुरक्षित कीटनाशकों का उचित मात्रा में उचित विधि द्वारा सही समय का उपयोग करना चाहिए।
  • रासायनों के प्रयोग से पहले मित्र तथा शत्रु कीटों का अनुपात तथा आर्थिक हानि स्तर देखना चाहिए। यदि यह अनुपात 1:1 हो तो रसायनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • यहां जरूरी हो, केवल सुरक्षित, रिफरिश्ज्ञशुदा तथा कम प्रदूषण फैलाने वाली रासयनिक दवाईयों का ही प्रयोग करना चाहिए।
  • यथासम्भव, रासायनों को स्पोट या स्ट्रीप विधि द्वारा ही प्रयोग में लाना चाहिए अर्थात जिस जगह हानिकारक कीड़ों की उपस्थिति आर्थिक हानि स्तर से ऊपर पाई जाए केवल उसी जगह ही रासायनों का प्रयोग हो ताकि दूसरी जगह के प्राक्तिक शत्रुओं का संरक्षण हो।
  • बीज बोने तथा फसल काटने का समय इस तरह निर्धारित किया जाए ताकि फसल कीड़ों तथा बीमारियों के मुख्य प्रकोप से बच सके।
  • मेढ़ों पर या उनके आसपास फूल वाली या ट्रेप फसल लगानी चाहिए जिससे मित्र किड़ों को मकरन्द तथा संरक्षण मिल सके।
  • नर्सरी के पौधों की जड़ो का ट्राईकोडरमा विरडी/मैटारिजियम के घोल में डुबो कर उपचारित करके ही लगाना चाहिए।
  • फसल चक्र अपनाने से भी किसान, मित्र कीड़ों को संरक्षण प्रदान कर सकते हैं।

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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