जॉन बन्यन

अंग्रेजी ईसाई लेखक और प्रचारक

जॉन बन्यन (John Bunyan ; १६२८ - १६८८) अंग्रेज इसाई लेखक एवं धर्मोपदेशक थे। उनकी 'द पिल्ग्रिम्स प्रोग्रेस' (The Pilgrim's Progress) नामक कृति सम्भवतः सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रकाशित इसाई रूपक (allegory) है। इसके अलावा उन्होने लगभग ६०० और पुतकें लिखीं। जॉन बन्यन का जीवन एक ऐसे विनम्र एवं कृतसंकल्प व्यक्ति की कहानी है जिसने अपनी आत्मा के अधिवेशन का अनुसरण किया, परंतु कठोर संसार में जहाँ व्यवहारवाद एवं विधान धार्मिक जीवन तथा आचार का निर्धारण करते हैं, यातनाएँ झेलीं।

जॉन बन्यन

व्यवसाय से ठठेर तथा एक पीतल के व्यवसायी के पुत्र बन्यन का जन्म बेडफ़ोर्ड के निकट एलैस्टो में नवंबर, १६२८ में हुआ। उन्हें गाँव के विद्यालय में थोड़ी शिक्षा मिली तथा १६ वर्ष की अल्पावस्था में इंग्लैंड में राजपक्ष तथा संसदीयपक्ष के बीच होनेवाले गृहयुद्ध में भाग लेना पड़ा। वह संसदीय दल में सम्मिलित हुए तथा तीन वर्ष तक (१६४४-१६४७) न्यूपोर्ट पैग्नाल में सेवारत रहे। १६५३ में वेडफ़ोर्ड में वे एक स्थानीय नॉन-कन्फर्मिस्ट दल (विरोधीदल) में सम्मिलित हुए तथा आजीवन एक विरोधी तथा निर्भय धर्मोपदेशक रहे। संसद् के विभिन्न अधिनियम, अनुज्ञप्ति तथा प्रचलित धर्म के उपदेशों तथा सिद्धांतों से समनुरूपता के बिना धर्मोपदेश का निषेध करते थे। बन्यन ने इन दोनों निषेधाज्ञाओं का उल्लंघन किया तथा उन्हें १६६० में बेडफ़ोर्ड के बंदीगृह में १२ वर्ष के दीर्घ कारावास का दंड मिला। १६७२ में क्षमादान द्वारा मुक्त होने पर उन्हें धर्मोपदेश की अनुज्ञप्ति मिली तथा वे बेडफ़ोर्ड के गिरजाघर में पादरी हो गए। १६७५ में शासन में परिवर्तन के कारण वे पुन: अपने धार्मिक विचारों के लिए बंदी किए गए तथा छह मास हेतु कारावासित किए गए। ब्रेडफ़ोर्ड बंदीगृह में ही उन्होंने अपने महान ग्रंथ 'पिलग्रिम्स प्रोग्रेस' का प्रथम भाग लिखा जो मुक्ति के अन्वेषक ईसा के एक अनुयायी की कहानी है। परीक्षा, यातना तथा पिलग्रिम्स प्रोग्रेस के अतिरिक्त अन्य पुस्तकों के महत्वपूर्ण लेखकत्व के जीवन के उपरांत अगस्त, १६८८ में लंदन में उनका निधन हुआ।

उनके साहित्यिक ग्रंथ उनके जीवन तथा आत्मा की अनश्वर प्रतिमूर्ति हैं। १६६६ में अपना आध्यात्मिक आत्मचरित् 'ग्रेस एवाउन्डिंग' (पूर्ण शीर्षक है 'ग्रेस एवाउन्डिंग टु दि चीफ़ ऑव सिनर्स') यह पुस्तक उनके अपवित्र यौवन, उनके पाप तथा नैराश्य एवं उनके उद्धार में प्रभु की दया का मुक्त अंकन है। कॉल्विनवादीय अथवा असमनुरूप सिद्धांतों से मिश्रित मनोवैज्ञानिक अनुभवों से प्राय: उनका प्रत्येक ग्रंथ अतिवेधित है। उन्होंने दि होली सिटी (१६६५), ग्रेस एबाउन्डिंग (१६६६), दि पिलग्रिम्स प्रोग्रेस भाग १, १६७८ में तथा भाग २,१६८४ में प्रकाशित, द लाइफ़ ऐंड डेथ ऑव मिस्टर बैडमैन (१६८०), दि होली वार (१६८२) तथा दि हेवेनली फुटमैन, मरणोतर प्रकाशित (१६८२) लिखा। जॉन बन्यन की कृतियों का संकलन तथा संपादन एच. स्टेब्बिंग द्वारा १८५९ में हुआ तथा १९३२ में एफ. एम. हैरिसन ने जॉन बन्यन के ग्रंथों की अनुक्रमणिका संपादित की।

जॉन बन्यन की प्रमुख कृतियाँ स्वरूप में प्रतीकात्मक एवं रूढ़िवादी प्यूरिटन परंपरानुरूप हैं। उनमें क्रिश्चियन, मिस्टर वर्ल्डली वाइज़ मैन, मिसेज़ डिफ़िडेंस जायंट डिसपेयर, मैडम वैंटन, माई लार्ड हेट गुड तथा मिस्टर स्टैंडफास्ट' सदृश पात्र हैं। इन पात्रों का चित्रण नाटकीय सजीवता के साथ हुआ है तथा वे समकालीन इंग्लैंड के वस्तुजगत् में विचरण करते हैं। सुपरिचित स्थानीय संस्थापनों में वे अपने साहसिक कार्यों में जीते जागते से प्रतीत होते हैं तथा बोलचाल की भाषा में सम्भाषण करते हैं। कथानक, पात्र तथा कथोपकथन ऐसी शैली में गुंफित हैं जो उपन्यास के स्वरूप के अति निकट पहुँचती है। गद्य शैली दैनिक जीवन के ओजपूर्ण, सहज शब्दभंडार से युक्त बाइबिल के प्रकार की है। यह सरल गद्य का सुपरिचित उदाहरण है जो स्पष्टता में ड्राइडेन की शैली के निकट है। कलात्मक चयन तथा परिचित चित्रों द्वारा वह अपनी आवेगजन्य अवस्थितियों तथा धार्मिक अनुभवों को पाठक की चेतना में बलात् प्रविष्ट करने में सफलता प्राप्त करता है।

बन्यन बुद्धिवादी नहीं थे। वे महान आस्था तथा वैयक्तिक प्रजा के साथ परंपरागत प्यूरिटन शैली में लिखते थे तथा आर्थर डेंट के 'प्लेनमैन्स पाथवे टु हेवेन' (१६११) तथा रिचर्ड बर्नार्ड की प्रतीकात्मक गद्य कृति 'दि आइल ऑव मैन' (१६२६) में है। वह अपने परिक्लेशन तथा सिद्धांत सद्भाव एवं प्राकृत सारल्य के साथ संसूचित करते हैं। वे अध्यात्मवादी के उच्च स्तर तथा उद्धरणकर्ता के निम्न तल में विचरण कर सकते थे परंतु वे बीच की शैली - अथवा ई. एम. डब्ल्यू. टिल्यार्ड के शब्दों में 'वैयक्तिक धार्मिक अनुभव तथा आसपास दिखाई पड़नेवाली सुपरिचित वस्तुओं के बीच की मध्यभूमि' - में नहीं लिख सकते थे। एकमात्र पुस्तक जिसमें वह इस मध्यभूमि पर पादस्थापन कर सके हैं 'दि होली वार' (१६८२) है तथा पिलग्रिम्स प्रोग्रेस के कुछ अंश।