ज्योतिर्मीमांसा नीलकण्ठ सोमयाजि द्वारा रचित खगोलशास्त्रीय ग्रन्थ है। इसकी रचना १५०४ के आसपास हुई। इस ग्रन्थ में इस बात पर बल दिया गया है कि खगोलीय प्रेक्षणॉं के महत्व पर बल दिया गया है जिससे गणना के लिये सही प्राचल (पैरामीटर) प्राप्त किये जा सकें और अधिक से अधिक्क शुद्ध सिद्धान्त प्रस्तुत किये जा सकें। कभी-कभी इस ग्रन्थ का उदाहरण देते हुए यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया जाता है कि प्राचीन एवं मध्ययुगीन भारत में वैज्ञानिक विधि का प्रचलन था।