ज्योत्स्ना
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सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित रूपक जो 1933 में प्रकाशित हुई थी ।इसमे कवि पन्त की विचार धारा विकसित मानव वाद तथा काल्पनिक समाजवाद के सामन्जस्य के रूप मे उत्कीर्ण हूई है ।
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