झण्डा गीत

"विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झण्डा ऊँचा रहे हमारा" नामक उक्त सुविख्यात झण्डा गीत
(झंडा गीत से अनुप्रेषित)

भारत के झण्डा गीत या ध्वज गीत की रचना श्यामलाल गुप्त 'पार्षद' ने की थी। 7 पद वाले इस मूल गीत से बाद में कांग्रेस नें तीन पद (पद संख्या 1, 67) को संशोधित करके ‘ध्वजगीत’ के रूप में मान्यता दी। यह गीत न केवल राष्ट्रीय गीत घोषित हुआ बल्कि अनेक नौजवानों और नवयुवतियों के लिये देश पर मर मिटनें हेतु प्रेरणा का स्रोत भी बना।

"झण्डा गीत"
गीत द्वारा
अंग्रेज़ी शीर्षकविजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झण्डा ऊँचा रहे हमारा

मूल झण्डा गीत

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मूल रूप में लिखा गया झण्डा गीत इस प्रकार है:-

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा।

सदा शक्ति सरसाने वाला, प्रेम सुधा बरसाने वाला,

वीरों को हरषाने वाला, मातृभूमि का तन-मन सारा।। झंडा...।

स्वतंत्रता के भीषण रण में, लखकर बढ़े जोश क्षण-क्षण में,

कांपे शत्रु देखकर मन में, मिट जाए भय संकट सारा।। झंडा...।

इस झंडे के नीचे निर्भय, लें स्वराज्य यह अविचल निश्चय,

बोलें भारत माता की जय, स्वतंत्रता हो ध्येय हमारा।। झंडा...।

एक साथ सब मिलकर गाओ, प्यारा भारत देश हमारा।। झंडा...।

इसकी शान न जाने पाए, चाहे जान भले ही जाए,

विश्व-विजय करके दिखलाएं, तब होवे प्रण पूर्ण हमारा।। झंडा...।

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा।

ध्वज गीत का इतिहास

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[[File:1931 Flag of India.svg]]

"विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झण्डा ऊँचा रहे हमारा" नामक उक्त सुविख्यात झण्डा गीत को 1938 के कांग्रेस अधिवेशन में स्वीकार किया गया था। इस गीत की रचना करने वाले श्यामलाल गुप्त 'पार्षद' कानपुर में नरवल के रहने वाले थे। उनका जन्म 16 सितंबर 1893 को वैश्य परिवार में हुआ था। गरीबी में भी उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की थी। उनमें देशभक्ति का अटूट जज्बा था, जिसे वह प्रायः अपनी ओजस्वी राष्ट्रीय कविताओं में व्यक्त करते थे। कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता रहने के बाद वह 1923 में फतेहपुर के जिला कांग्रेस अध्यक्ष भी बने। वह 'सचिव' नाम का एक अखबार भी निकालते थे। जब यह लगभग तय हो गया था कि अब आजादी मिलने ही वाली है, उस वक्त कांग्रेस ने देश के झण्डे का चयन कर लिया था। लेकिन एक अलग “झण्डा गीत” की जरूरत महसूस की जा रही थी। गणेश शंकर 'विद्यार्थी', पार्षद जी के काव्य-कौशल के कायल थे। विद्यार्थी जी ने पार्षद जी से झण्डा गीत लिखने का अनुरोध किया। पार्षद जी कई दिनों तक कोशिश करते रहे, पर वह संतोषजनक झण्डा गीत नहीं लिख पाए। जब विद्यार्थीजी ने पार्षद जी से साफ-साफ कह दिया कि उन्हें हर हाल में कल सुबह तक "झण्डा गीत" चाहिए, तो वह रात में कागज-कलम लेकर जम गये।

आधी रात तक उन्होंने झण्डे पर एक नया गीत तो लिख डाला, लेकिन वह खुद उन्हें जमा नहीं। निराश हो कर रात दो बजे जब वह सोने के लिए लेटे, अचानक उनके भीतर नये भाव उमड़ने लगे। वह बिस्तर से उठ कर नया गीत लिखने बैठ गये। पार्षद जी को लगा जैसे उनकी कलम अपने आप चल रही हो और 'भारत माता' उन से वह गीत लिखा रही हो। यह गीत था-"विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झण्डा ऊँचा रहे हमारा।" गीत लिख कर उन्हें बहुत सन्तोष मिला।

सुबह होते ही पार्षद जी ने यह गीत 'विद्यार्थी' जी को भेज दिया, जो उन्हें बहुत पसन्द आया। जब यह गीत महात्मा गांधी के पास गया, तो उन्होंने गीत को छोटा करने की सलाह दी। आखिर में, 1938 में कांग्रेस के अधिवेशन में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने इसे देश के "झण्डा गीत" की स्वीकृति दे दी। यह ऐतिहासिक अधिवेशन हरिपुरा में हुआ था। नेताजी ने झण्डारोहण किया और वहाँ मौजूद करीब पाँच हजार लोगों ने श्यामलाल गुप्त पार्षद द्वारा रचे झण्डा गीत को एक सुर में गाया।

राष्ट्रीय ध्वज अथवा स्वदेशी खादी पर प्रतिबन्ध

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पण्डित चन्द्रिका प्रसाद 'जिज्ञासु' द्वारा सम्पादित पुस्तक राष्ट्रीय झण्डा अथवा स्वदेशी खादी पर ब्रिटिश राज में प्रतिबन्ध इसलिए लगा दिया गया था क्योँकि सम्पादक ने उस पुस्तक में इस गीत के पद क्रमांक 2 और 3 को छोड़कर केवल पाँच पद राष्ट्रीय झण्डा शीर्षक से छाप दिये थे। यह पुस्तक नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय अभिलेखागार, भारत में प्रतिबन्धित साहित्य अवाप्ति क्रमांक 1679 के अन्तर्गत आज भी सुरक्षित रखी हुई है।[1]

इन्हें भी देखें

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  1. क्रान्त, मदनलाल वर्मा (2006). स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी साहित्य का इतिहास. 1 (1 संस्करण). नई दिल्ली: प्रवीण प्रकाशन. पृ॰ 175. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-7783-119-4. मूल से 14 अक्तूबर 2013 को पुरालेखित.

बाहरी कड़ियाँ

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