टाइगर हैवन (अंग्रेज़ी: Tiger Haven) जनपद लखीमपुर में दुधवा राष्ट्रीय उद्यान की सीमा से लगा हुआ सुहेली नदी के तट पर स्थित है। यह टाइगर मैन बिली अर्जन सिंह का निवास स्थान था, जहाँ बाघ, कुत्ते और तेन्दुए एक साथ रहते थे। यह स्थान बाघ और तेन्दुओं के सफ़ल पुनर्वासन के कारण विश्व प्रसिद्ध हुआ। यह पुनर्वासन कार्यक्रम भारत की तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी के वन्य-जीवों के प्रति लगाव के कारण संभव हो पाया। उन्ही के द्वारा इस प्रोजेक्ट को सफ़लता पूर्वक संपन्न करने का कार्य बिली अर्जन सिंह ने किया। दुनिया का यह पहला सफ़ल प्रयोग था, जब किसी चिड़ियाघर से या मनुष्य द्वारा पालतू बाघ या तेन्दुए के शावक को वयस्क होने पर उसे जंगल में पुनर्वासित किया गया।

टाइगर हैवन
५०px
प्रकारवन्य-जीव सरंक्षण स्थल पर्यावरण
देशभारत
संस्थापककुँवर बिली अर्जन सिंह
नारा"बाघ जंगल का भगवान होता है"बिली अर्जन सिंह
मसला"बाघ संरक्षण व संवर्धन के लिए कटिबद्ध"
आरम्भ की तिथि१९६८
जालपृष्ठटाइगर हैवन से संबन्धित वेबसाइट

विवरण संपादित करें

द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद लेफ़्टीनेंट बिली अर्जन सिंह खीरी जनपद में खेती करने के उद्देश्य से सन १९४६ में आये। खीरी के जंगलों से वह पूर्व परिचित थे। कभी विजय नगर के राजा के साथ वह यहाँ शिकार खेलने आया करते थे। वर्तमान दुधवा नेशनल पार्क जो उस वक्त खीरी वन विभाग का उत्तरी-पश्चिमी वन प्रभाग हुआ करता था, में पलिया कस्बे के निकट एक कृषि-भूमि क्रय की और अपने पिता के नाम पर इस कृषि फ़ार्म का नाम "जस्वीर नगर" रखा। खीरी के जंगलों में भ्रमण करते वक्त सन १९५९ में सुहेली और नेवरा नदी के जंक्शन पर इन्होंने वह भूमि देखी जहाँ आज टाइगर हैवन स्थित है। इस सुरम्य स्थल को वन्य जीवन की प्रयोगशाला बनाकर बिली अर्जन सिंह ने ५० वर्ष से अधिक समय तक वन व वन्य जीव सरंक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे।

फ़िल्म निर्माण संपादित करें

टाइगर हैवन में निवास कर रहे बाघ व तेन्दुओं पर कई अन्तर्राष्ट्रीय फ़िल्म निर्माताओं ने डॉक्युमेन्ट्री फ़िल्मों का निर्माण किया। इन फ़िल्मों के माध्यम से टाइगर हैवन को विश्व में ख्याति अर्जित हुई।

 
सुमात्रन बाघ

बाघ का पुनर्वासन कार्यक्रम संपादित करें

तारा नाम की बाघिन, जूलिएट व हैरियट तथा प्रिन्स नाम के तेन्दुओं का दुधवा के जंगलों में पुनर्वासन कार्यक्रम।

तारा-एक बाघिन संपादित करें

 
इण्डो-चायनीज बाघ

इंग्लैंड के टाईक्रास चिड़ियाघर से लाई गयी बाघ शावक "तारा" को बिली अर्जन सिंह ने टाइगर हैवन के प्राकृतिक आवास में प्रशिक्षित कर दुधवा नेशनल पार्क में पुनर्वासित किया। तारा की पीढ़ियाँ दुधवा के जंगलों में आज भी फ़ल-फ़ूल रही हैं।

तेन्दुओं का पुनर्वासन कार्यक्रम संपादित करें

 
भारतीय तेन्दुआ

प्रिन्स संपादित करें

प्रसिद्ध बाघ सरंक्षक बिलिंडा राइट की माँ श्रीमती एन राइट ने बिली अर्जन सिंह को तेन्दुए का शावक भेंट किया, जो बिहार में अपनी माँ से बिछड़ गया था। बिली ने इसका नाम प्रिन्स रखा, यह तेन्दुआ वयस्क होकर खीरी जनपद के जंगलों में अपनी प्रजाति से घुल-मिल गया था।

जूलिएट और हैरिएट संपादित करें

 
वृक्ष पर भारतीय तेन्दुआ

ये दोनों तेन्दुए श्रीमती इन्दिरा गाँधी द्वारा बिली अर्जन सिंह को प्रदत्त किए गये ताकि खतरे में पड़ी प्रजातियों का पुनर्वासन कार्यक्रम आगे बढ़ सके। टाइगर हैवन के प्रशिक्षण स्थल में ये जीव भी वयस्क होकर अपने प्रकृतिक आवासों, वनों में अपनी प्रजाति के साथ रहने लगे। इनके प्राकृतिक प्रजनन के प्रमाण भी प्राप्त हुए।

एली संपादित करें

टाइगर हैवन में एली नाम की कुतिया जो तेन्दुओं और बाघों के साथ रहती थी।

आनुवशिंक प्रदूषण संपादित करें

टाइगर हैवन के इन सफ़ल प्रयोगों पर बिली द्वारा दुधवा के बाघों में आनुवंशिक प्रदूषण फ़ैलाने के आरोप भी लगे। तारा बाघिन जो इंग्लैड से लाकर दुधवा में पुनर्वासित हुई वह साइबेरियन व रायल बंगाल की संकर नस्ल साबित हुई। बाघ की कोई उप-जाति नही होती है, वह विभिन्न भौगोलिक स्थितियों में रहते हैं, इसके अनुरूप उनका शारीरिक विकास होता है, यह रेसेज में विभिन्न माने जाते हैं, जैसे होमो-सैपियन्स, चाहे वह अफ्रीकन हों या भारतीय, इनके आपस में प्रजनन करने से किसी प्रकार की आनुवशिंक प्रदूषण की आंशका नही होती। आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार इससे इन-ब्रीडिंग की समस्या समाप्त होती है और नस्लें और अधिक संमृद्ध व विकसित होती हैं।

दुधवा में द्वि-नस्ली बाघ संपादित करें

टाइगर हैवन में बाघों पर हुए प्रयोगों के परिणाम स्वरूप दुधवा के जंगलों में रायल बंगाल-साइबेरियन (साइबेरियन-बंगाल टाइगर की संकर नस्ल वाली तारा बाघिन के दुधवा के रायल बंगाल टाइगर्स के मध्य प्रजनन के कारण) नस्ल के बाघों की उपस्थिति दर्ज हुई है, कई वैज्ञानिक संस्थानों ने डी०एन०ए० की जाँच के उपरान्त यह आशंका व्यक्त की है कि बिली अर्जन सिंह के बाघ पुनर्वासन से दुधवा व खीरी जनपद के वनों में द्वि-नस्ली बाघ उत्पन्न हुए हैं।

 
साइबेरियन बाघ

टाइगर हैवन में नर-भक्षण की घटनायें संपादित करें

टाइगर हैवन के बाघ व तेन्दुओं के जंगली बाघों व तेन्दुओं के संपर्क में आने के पश्चात जंगल के बाघों व तेन्दुओं की आमद टाइगर हैवन में बढ़ गयी। जिस कारण वहाँ कई मानव भक्षण की घटनायें हुईं। कहा जाता है कि टाइगर हैवन की बाघिन तारा नर-भक्षी हो गयी थी और उसने ५० से अधिक मानव-भक्षण की घटनायें की। किन्तु टाइगर हैवन के मालिक अर्जन सिंह यह नहीं मानते थे। उनके अनुसार ये घटनाएं दुधवा के बाघों द्वारा की जा रही थी।


वर्तमान में बिली के उपरान्त टाइगर हैवन इस वर्ष आई बाढ़ में क्षतिग्रस्त हो गया और अब यहाँ वन्य-जीव सरंक्षण से संबधित कोई कार्य नही किया जाता। टाइगर हैवन की कृषि-भूमि पर फ़सलें उगाई जाती हैं।

सन्दर्भ संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें