टाइम यूज़ सर्वे (टीयूएस) अर्थशास्त्रीयो द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला समय के उपयोग का सर्वेक्षण है।

इतिहास संपादित करें

पहला टीयूएस 1900s में रूस में हुआ था जहां क्षेत्रीय प्रशासन इकाइयों ने किसानों के घरों पर नज़र रखने के लिए ‘समय उपयोग’ डायरी रखनी शुरू की. इन डायरियों को 1900s के दशक में लंदन की महिलाओं और फैक्टरी कामगारों पर नज़र रखने के लिए भी इस्तेमाल किया गया.

भारत में टीयूएस की हमारी कहानी की शुरुआत, 1975-77 में होती है. इसी क्रम में नारीवादी अर्थशास्त्री देविका जैन और मालिनी चंद ने अपना पहला सर्वेक्षण किया. उन्होंने पश्चिम बंगाल और राजस्थान के 127 घरों से आंकड़े एकत्रित किए. 1982 में प्रकाशित इस सर्वेक्षण ने, बड़ी संख्या में राजस्थान में महिलाओं एवं लड़कियों को घास काटने और पशु चराने का काम करते पाया. इसके अनुसार पश्चिम बंगाल में कुछ महिलाओं द्वारा किया जाने वाला सेक्स वर्क और घरेलू काम अदृश्य बना दिया जाता है.

1988 में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीआई) द्वारा समय आवंटन सर्वेक्षण हेतु एक समिति का गठन किया। इस प्राथमिक सर्वेक्षण के बाद टीयूएस को मुख्यधारा में लाने हेतु साल-दर-साल कई सम्मेलनों का आयोजन किया गया और कई समितियां भी गठित की गईं. बाद के वर्षों में यह अपने लक्ष्य से भी अधिक फैला और विकसित हुआ.

2019 का टीयूएस संपादित करें

भारत में राष्ट्रीय सांख्यिकीय संगठन (एनएसओ) द्वारा जनवरी-दिसंबर 2019 के दौरान किए गए समय के उपयोग के सर्वेक्षण में ये रिकॉर्ड किया गया कि परिवार में पुरुष और महिलाएं 24 घंटे का समय कैसे बिताते है। सर्वे में 1.4 लाख घरों से जुड़े 4.5 लाख भारतीय (6 वर्ष और उससे अधिक) शामिल थे। इसमें खाली समय, स्वयं की देखभाल तथा रखरखाव, सामाजिकता और सीखने-सिखाने पर बिताए गए समय को भी मापा गया। लेखिका अर्चिता रघु के मुताबिक टीयूएस इस बात को रेखांकित करती है जिस पर नारीवादी संगठन लगातार ज़ोर देते आ रहे हैं कि राष्ट्रीय स्तर के सर्वेक्षणों में अधिकांशत: लाखों-करोड़ों महिलाओं का श्रम— परिवारों, समुदायों, यहां तक कि राज्य द्वारा नज़रंदाज़ किया जाता रहा है. संक्षेप में कहें तो इसे अदृश्य बना दिया जाता रहा है, अर्थात, इसे दैनिक जीवन में मान्यता ही नहीं दी जाती.

सर्वे में पाया गया कि अवैतनिक श्रम को भी मापा जाए तो 95% महिलाएं और 85% पुरुष काम करते है। अवैतनिक श्रम जैसे पानी भरके लाना, घर के बीमार व्यक्ति का ध्यान रखना, खाने की तैयारी करना इत्यादि जिसको काम के रूप में देखा ही नहीं जाता क्योंकि उसकी कोई सैलरी नहीं मिलती, ऐसे काम महिलाएं सबसे अधिक करती है। जहा अवैतनिक श्रम पर महिलाएं दिन के 6.5 घंटे बिताती है, वहा पुरुष दिन के 2.5 घंटे बिताते है। वैतनिक श्रम में पुरुष 6.5 घंटे बिताते है और महिलाएं 5.5 घंटे।