द्विघात इंजन (two-stroke engine) एक प्रकार का अन्तर्दहन इंजन है जो क्रैंकशाफ्ट के एक ही चक्कर (अर्थात, पिस्टन के दो चक्कर) में ही उर्जा-परिवर्तन का पूरा चक्र (thermodynamic cycle) पूरा कर लेता है। अर्थात दो-घाती इंजन अपने ऊष्मागतिकी चक्र को पिस्टन के दो चक्रों में पूरा करता है। चतुर्घात इंजन में उर्जा-परिवर्तन का चक्र पिस्टन के चार चक्करों में पूरा होता है।

द्विघात इंजन का चलित (एनिमेटेड) स्वरूप

परिचय संपादित करें

चार स्ट्रोक वाले इंजनों में निष्कासघात (exxhaust stroke) का एकमात्र उद्देश्य है सिलिंडर को खाली करना, जिसमें ईधन और वायु फिर एक बार चूसी जा सके। परंतु शक्तिघात के अंतिम खंड में ही जली गैसों के निकालने की प्रबंध किया जा सकता है। उस स्थिति में जली गैसें बाहर निकालने की क्रिया को सम्मार्जन (स्कैवंजिंग) कहते हैं। इस व्यवस्था से पिस्टन के दो घातों में ही इंजन के कार्यक्रम का एक चक्र पूरा हो जाता है। इसलिए इस चक्र को द्विघातचक्र (टू स्ट्रोक साइकिल) कहते हैं।

चतुर्घात चक्र इंजन में प्रधान धुरी (क्रैंकशाफ्ट) के दो चक्करों में एक शक्ति घात होता है जबकि द्विघात चक्र इंजन के प्रत्येक चक्कर में एक शक्ति घात होता है। तो भी नाप में अपने ही बराबर चतुर्घात इंजन की अपेक्षा दुगुनी ऊर्जा उत्पन्न करने के बदले द्विघात-इंजन केवल 70% से 90% तक अधिक ऊर्जा उत्पन्न करता है। कारण ये है:

  • (1) अपूर्ण संमार्जन,
  • (2) दी हुई नाप के सिलिंडर में अपेक्षाकृत कम ही ईधन-वायु-मिश्रण का पहुँच पाना,
  • (3) ईधन का अधिक मात्रा में बिना जला रह जाना,
  • (4) निष्कास वाल्व के शीघ्र खुल जाने से दाब का क्षय।


इन्हें भी देखें संपादित करें

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