इसराइली लोग मिस्र देश से निकलने के पश्चात्‌ बहुत दिनों तक यात्रा करते रहे। जब वे सिनाई नामक पर्वत (अरब) के पास पहुँचे, तब वहीं उन्होंने अपना पड़ाव डाला।

सिविक सेन्टर बगीचे मे एक पथर पे लिखा दस कमांडमेंट्स।

मूसा, ईश्वर के पास पर्वत पर बात करने गया। ईश्वर ने मूसा से कहा, तुम इसराइल के लोगों को यह बताना, मैं तुम्हें मिस्र देश की गुलामी से छुड़ाकर लाया हूँ और तुम्हारी रक्षा की है, इसलिए अब यदि तुम मेरी आज्ञा मानोगे और मेरे व्यवस्थान का पालन करोगे तो मेरी निजी प्रजा बन जाओगे।

तब मूसा लोगों के पास पड़ाव पर आया और उनके सम्मुख ये बातें कहीं जिनकी आज्ञा प्रभु ने मूसा को दी थी। सब लोगों ने एक साथ मूसा को उत्तर दिया- 'प्रभु की सब आज्ञाओं का हम पालन करेंगे।'

तब ईश्वर ने मूसा से कहा कि वह लोगों को तीसरे दिन के लिए तैयार होने को कहे। उस दिन ईश्वर लोगों को दस आज्ञाएँ देने जा रहा था।

लोगों ने अपने वस्त्र धोए और खुद को तैयार किया और तीसरे दिन वे सिनाई पर्वत के नीचे आ गए। तभी जोरों से मेघ गर्जन हुआ, विद्युत चमकी। पर्वत हिलने लगा और एक संघन मेघ पहाड़ पर उतरा और सारा पर्वत ढँक गया। ईश्वर बादल में से ही उनसे बोला और उन्हें दस आज्ञाएँ दीं।

जब लोगों ने ईश्वर को बोलते सुना तो वे डर गए और मूसा से चिल्लाकर कहा- 'आप हम से बात कीजिए अन्यथा हम लोग मर जाएँगे।' मूसा ने उत्तर दिया- 'डरो मत, ईश्वर तुम्हारा नुकसान करना नहीं चाहता है। वह चाहता है कि तुम उसकी आज्ञाओं को मानो और उसके विरुद्ध कोई पाप न करो।' तब मूसा पर्वत पर ईश्वर के पास गया। वहाँ ईश्वर ने पत्थर की दो शिलाओं पर दस आज्ञाएँ लिखीं और मूसा को दीं। (निर्गमन 19-20) ईश्वर ने जो आज्ञाएँ दीं वे निम्नलिखित हैं-

ईश्वर की आज्ञाएं संपादित करें

1. मैं प्रभु तेरा ईश्वर हूँ। प्रभु अपने ईश्वर की आराधना करना, उसको छोड़ और किसी की नहीं। 2. प्रभु अपने परमेश्वर का नाम व्यर्थ न लेना। (उचित कारण के बिना मेरा नाम न लेना) 3. प्रभु का दिन पवित्र रखना। 4. माता-पिता का आदर करना। (अपने माता-पिता को प्रेम करना और उनकी आज्ञाओं का पालन करना) 5. मनुष्य की हत्या न करना। 6. व्यभिचार न करना। (एक पवित्र जीवन बिताना) 7. चोरी न करना। 8. झूठी गवाही न देना। (झूठ नहीं बोलना) 9. परस्त्री की कामना न करना। 10. पराए धन पर लालच न करना। (दूसरों के पास जो कुछ है, उसकी लालसा न करना)