टेरिडोफाइटा
टेरिडोफाइटा (Pteridophyta) वनस्पतिज्ञों द्वारा किए गए पौधों के कई विभागों में से एक विभाग है। यह एक ओर पुष्प और बीज उत्पादक ब्राइटोफाइटा से और दूसरी ओर पुष्प और बीज न उत्पन्न करनेवाले जल के पौधों, "मॉसों" (mosses), से भिन्न होता है, तथापि इन दोनों वर्गों के पौधों के गुणों से कुछ कुछ गुणों में समानता रखता है। स्थल पर उत्पन्न होनेवाले पौधों को स्परमाटो-फाइटा (spermatophyta) और केवल जल में उत्पन्न होनेवाले पौधों को थैलोफाइटा (Thallophyta) कहते हैं। टेरिडोफ़ाइटा फर्न और फर्न किस्म के पौधे हैं। इनमें कुछ पौधे आज भी पाए जाते हैं, पर एक समय, 35 करोड़ वर्ष पूर्व, डिवोनी युग में इनका बाहुल्य और साम्राज्य था, जैसा इनके फाँसिलों से पता लगता है और ये संसार के प्रत्येक भाग में फैले हुए थे। कोयले के फॉसिलों में ये विशेष रूप से पाए जाते हैं। टेरिडोफाइटा ही कोयला क्षेत्र की उत्पत्ति के कारण हैं। ये कुछ सेंटीमीटर से लेकर 30 मीटर तक ऊँचे होते थे। लगभग सात करोड़ वर्षों तक पृथ्वीतल पर इनका आधिपत्य रहा था। बाद में जलवायु के परिवर्तन से इनका ह्रास होना आरंभ हुआ और विशेषत: इनके बड़े-बड़े पेड़ अब बिलकुल लुप्त हो गए हैं। इनका स्थान क्रमश: विवृतबीज (gymnosperm) और आवृतबीज (angiosperm) कोटि के पौधों ने ले लिया है, पर आज भी छोटे कद के कुछ टेरिडोफाइटा पाए जाते हैं। ये उष्णकटिबंध देशों में विशेष रूप से उपजते हैं, यद्यपि कुछ ठंडे, उत्तरी प्रदेशों में भी पाए गए हैं। अभी तक इनकी छ: हजार जातियाँ मालूम हो सकी हैं जबकि पुष्प और बीज उत्पन्न करनेवाले पौधों की संख्या लगभग एक लाख पचास हजार है।
गुणधर्म एवं विशेषताएँ
संपादित करेंटेरिडोफाइटा में फूल नहीं लगते, पर इनमें वास्तविक जड़ें होती हैं। अधिकांश पौधों में सुविकसित पत्तियाँ होती हैं। इनके ऊतक मॉस के ऊतकों से अधिक विकसित होते हैं। कुछ फॉसिलों में जड़ें और पत्तियाँ नहीं पाई गई हैं। ये संवहनीय (vascular) पौधे हैं। इनका प्रचारण (propagation) बीजों से नहीं वरन् बडे सूक्ष्म बीजाणुओं से होता है, जो बहुत बड़ी संख्या में बीजाणुधानिओं (sporangia) से बनते हैं। इनके बीजाणु अंकुरित होकर फर्न नहीं बनते, अपितु ये सूक्ष्म और नगण्य सूकायक (thallus) बनते हैं, जिनमें लैंगिक इंद्रियों जैसे भाग रहते हैं। इनमें प्रधानियाँ (antheridea) होती हैं। जिनसे जल में चलनेवाले युग्मक (gametes) उन्मुक्त होते हैं। इनमें फलास्क के आकार की आदियोनि (archegonia) या स्त्रीयुग्मक (female gamete) रहते हैं। इन दोनों के मिलने से संसेचन होता है। पुंयुग्मज तैरते हुए स्त्रीयुग्मज के पास पहुँचकर संसेचन करते हैं। संसेचन के बाद सूकायक से छोटा पौधा विकसित होता है और ज्योंही नया पौधा जड़ बनाता है, पुराना पौधा मर जाता है।
टेरिडोफाइटा का जीवनचक्र
संपादित करेंटेरिडोफाइटा के जीवनचक्र का विवरण निम्नलिखित है:
टेरिडोफाइटा का जीवनचक्र दो पीढ़ियों में बँटा हुआ है। ये पीढ़ियाँ एक दूसरी से बिलकुल भिन्न होती हैं। वस्तुत: एक पीढ़ी दूसरी पीढ़ी से एकातरण करती है। बागों में जो फर्न पाए जाते हैं, वे स्पोरोफाइट (sporophyte) कहलाते हैं। इनका प्रकंद जमीन के अंदर होता है। ऊपरी भाग पर एकांतर पत्तियाँ निकलती हैं। पत्तियाँ पक्षवत् होती हैं। इनके प्राक्ष (pinnae) होते हैं। कुछ पत्तियों के नीचे की ओर किनारे पर उभरी लकीरें भी होती हैं, जिन्हें धानीगुच्द (Sorus) कहते हैं। धानीगुच्छ में एक वृंत (stalk) और एक संपुटिका (capsule) होती है। संपुटिका की दीवार हरी कोशिकाओं की होती है, जिसकी कुछ कोशिकाएँ तलयमुख (annulus) और कुछ स्फुटनमुख (stomium) होती हैं। संपुटिका के अंदर विभाजन द्वारा 16 बीजाणु कोशिकाएँ बनती हैं, जिसमें से प्रत्येक चतुर्थक विभाजन द्वारा चार मूल संखयक (haploid) बीजाणु बनाती है। परिपक्व होने पर स्फुटनमुख के स्थान पर संपुटिका की दीवार टूट जाती है और झटके से बीजाणु दूर तक छिटक जाते हैं। बीजाणु बहुत सूक्ष्म, लगभग 0.3 मिमी0 व्यास के होते हैं।
उचित ताप और नमी पाने पर बीजाणु अंकुरित होते हैं। इससे वे युग्मक-सू (Gametophyte) बनते हैं जिन्हें सूकायक (Prothallus) कहते हैं। इनका व्यास तीन से लेकर आठ मिमी0 तक होता हैं। यह किनारे पर एक कोशिका की और बीच में कई कोशिकाओं की, मोटाई का होता है। निचली सतह पर मूलांग (rhizoids) होते हैं। कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट (chloroplast) होते हैं। सूकायक की निचली सतह पर आधार और बाजू की ओर पुंधानी और सिरे की ओर आदियोनी होती है। पुंधानी में 20 से लेकर 25 तक ऐंथेरोजॉइड (antherozoids) होते हैं, जो पानी के संपर्क में आने से खुलकर बाहर निकल आते हैं। ये तैरते हुए ऐंकीयोनिया (anchyoinia) तक पहुँच जाते हैं और एंथेरोजॉइड अंडे के साथ संयोग कर युग्मक बनाते हैं। ये युग्मक विभाजन द्वारा भ्रूण बनाते हैं और कोशिका अवस्था में ही जड, पाद, स्तंभ, विभिन्न हिस्से अलग अलग प्रतीत होने लगते हैं। अब स्पोरोफाइट बनना शुरू हो जाता है। उसमें कुछ पत्तियाँ आ जाती हैं और सूकायक नष्ट होने लगते हैं। शीघ्र ही स्पोरोफाइट स्वतंत्र स्थिति में पहुँच जाता है और उसकी जड़ें जमीन में लग जाती हैं। तथा अपनी पूरी जड़े जमीन में फैला कर क्रिया पूर्ण करता है।
वर्गीकरण
संपादित करेंवनस्पतिज्ञों ने टेरिडोफाइटा को निम्नलिखित वर्गों में विभक्त किया हैं:
1. साइलोफ़िटैलीज़ (Psilophytales) के फॉसिल मध्य और अध-डिवोनीयुग की चट्टानों में मिलते हैं। इस वर्ग के पौधों में होर्निया (Hornea), रीमिया (Rhymia) तथा ऐस्टेरोजाइलोन (Asteroxylon) में पत्तियों के समान कुछ बनावटें होती हैं, जिनमें स्टोमैटा (stomata) भी होते थे।
2. साइलोटैलीज़' (Psylotales) और मेसिप्टेरिस (Tmesipteris) ज्ञात हैं। साइलोटम उष्ण कटिबंध, उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र और तदाई टापुओं में पाया जाता है। यह 20 से लेकर 100 सेंमी0 तक ऊँचा होता है ओर नम, या सूखे स्थानों में, छाया में उगता है। मेसिप्टेरिस आस्ट्रेलिया, पूर्व इंडीज और फिलिपाइन के उत्तरी भाग में पाया जाता है। यह पाँच से लेकर 25 सेंमी0 तक ऊँचा होता है और बहुधा पेड़ों की शाखाओं पर उगता है। इसमें जड़ें नहीं होतीं, पर पत्तियों के आकार की बनावट शाखाओं पर लगी रहती है। जमीन के अंदर प्रकंद में मूलांग निकलते हैं। तने के ऊपरी भाग में बीजाणुधानी होती है, जिसमें बीजाणु (spores) पैदा होते हैं।
3. लाइकोपोडिएलीज (Lycopodiales) को क्लब मॉस कहते हैं। इनके केवल दो वंश, एक लाइकोपोडियम (Lycopodium) और सेलाजिनेला (Selaginella) तथा दूसरा फाइलोग्लोसम (Phylloglossum) और आइसोएटीज (Isoetes) हैं। लाइकोपोडियम की 100 जातियाँ मालूम हैं। ये उष्ण कटिबंध तथा उपोष्ण कटिबंध प्रदेशों में पाई जाती हैं। सूखे स्थानों में यह नहीं होता। फाइलोग्लोसम की केवल एक जाति ही आस्ट्रेलिया के कुछ भागों में पाई जाती है। ये जमीन पर फैलनेवाले कम ऊँचाई के पौधे हैं। इनकी पत्तियाँ सरल होती हैं और शाखाएँ नहीं होतीं। तने या पत्तियों पर बीजाणुधानियाँ होती हैं।
4. सेलाजिनेलेलीज (Selaginellales) को छोटे क्लब मॉस कहते हैं। इसमें केवल एक वंश सेलाजिनेला है, जिसकी 500 जातियाँ समस्त संसार में फैली हुई हैं। ये उष्णकटिबंध प्रदेशों में छाएदार नम स्थानों पर पाई जाती हैं। ठंडे या सूखे स्थानों पर कम जातियाँ पाई गई हैं। ये देखने में सुंदर और कई रंगों में होते हैं तथा पादपगृहों (green houses) की शोभा बढ़ाती हैं। इनमें दो प्रकार की बीजाणुघानियाँ होती हैं।
5. लेपिडोडेंड्रैलीज (Lepidodendrales) के केवल फॉसिल मिले हैं। पुराजीवकल्प (Paleozoic cra) में इनका बाहुल्य था। संभवत: ये नीचे, गीले स्थानों पर होते थे और इनकी जड़ें पानी में डूबी रहती थीं। ये नौ से लेकर 12 मीटर तक ऊँचे और एक से लेकर दो मीटर व्यास तक के होते थे। बड़े पेड़ों के अतिरिक्त इनके छोटे छोटे पौधे भी होते थे। इनके अनेक पौधों का अब तक अध्ययन किया गया है।
6. प्ल्यूरोमिएलीज (Pleuromealis) ट्राइऐसिक काल (Triassic) में यूरोप और पूर्व एशिया का पौधा था। यह एक मीटर ऊँचा, 10 सेमी. चौड़ा और बिना शाखावाला होता था। तने का निचला भाग चार या आठ भागों में विभाजित होकर जड़ों का काम करता था। यह हेटेरोस्पोरस (heterosporus) होता था। पत्तियों के निचले भाग पर, या उसके बराबर में, बीजाणुधानी होती थी।
7. आइसोएटेलीज (Isoetales) के पौधे शाकीय होते हैं और पानी में ठंडे जलवायुवाले स्थानों में अधिकता से उगते हैं। कुछ जमीन पर भी उगते हैं। इस श्रेणी के आइसोएटीज की 100 जातियाँ मालूम हैं, जिनमें 50 जातियों में गुच्छे होते हैं। बीजाणुधानी हेटेरोस्पोरस होती है।
8. हिएनिएलीज (Hyeniales) जाति के पौधे डिवोनी युग में होते थे। इनके तने पर युग्मभुजी उपबंध (dichotomous appendages) पत्तियों के समान लगे रहते थे।
9. फिलिकेलीज (Filicales) या फर्न आज भी पाए जाते हैं। इनके फॉसिल भी पुराजीवकल्प से पाए जाते हैं। इनकी पत्तियाँ तने से बड़ी होती हैं। पत्तियों का अपेक्षया बड़ा होना और अकेले या समूह में पत्तियों पर अनेक बीजाणुधानियों का होना, इनकी विशेषता है। फर्न के लगभग 150 वंश और 6,000 जातियाँ मालूम हैं। कुछ छोटे होते हैं और कुछ पेड़ सदृश हो जाते हैं, पर बहुत बड़े नहीं होते। केवल इनके फॉसिल से ही बड़े पेड़ होने का पता लगता है। कुछ फर्न उत्तरी ध्रुवीय प्रदेशों में पाए जाते हैं, पर जैसे जैसे उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों की ओर बढ़ते है, इनकी संख्या बढ़ती जाती है। अधिकांश छाया में उपजते हैं। कुछ जलीय होते हैं, पर कुछ सूखेपन को भी सहन कर सकते हैं। ये समवीजाणु (homosporous) पौधे हैं। कहा जाता है, ये पौधे पुराजीवकल्प के थे। पर कुछ ऐसे फॉसिल मिले हैं जिनसे पता चलता है कि ऐसे बीजवाले भी पौधे थे जो अब लुप्त हो गए हैं।
मेटिनियस द्वारा वर्गीकरण
संपादित करेंटेरिडोफाइटा के जीवनचक्र प्राय: एक से होते हैं। अत: उनका प्राकृतिक वर्गीकरण उनके अन्य गुणों पर निर्भर करता है। इस दृष्टि से 1856 ई0 में मेटिनियस (Metteneius) ने इन्हें नौ प्रधान कुलों में विभाजित किया। इनमें जो सबसे अधिक दृढ़ था उसे पहले वर्ग में रखा, जो सबसे अधिक सुकुमार था उसे अंतिम वर्ग में रखा और शेष को बीच के स्थानों में। मेटिनियस का वर्गीकरण निम्न लिखित है:
(1) ऑसमुडेसिई (Osmundaceae) - इसे रॉयल फर्न भी कहते हें। इसके केवल दो जीनस और 17 जातियाँ हैं। इस जाति का ऑसमंुडा हर स्थान पर और टोडिया (Todea) आस्ट्रेलिया या दक्षिण अफ्रीका में पाया जात है।
(2) ग्लाइचेनियेसिई (Gleicheniaceae) - इसकी 80 जातियाँ दक्षिणी गोलार्ध के उष्णकटिबंधीय और शीतोष्ण भागों में पाई जाती
(3) शिजेइसिई (Schizaeceae) - इसमें चार जीनस और 115 जातियाँ मालूम हैं। ये अधिकांश उष्णकटिबंध और दक्षिणी गोलार्ध में जाई जाती हैं।
(4) मासिलिएसिई (Marsileaceae) ये जल फर्न हैं। पानी या गीले स्थानों में पाए जाते हैं। इनके तीन जीनस और 50 जातियाँ मालूम हैं। ये भूभाग के सब स्थानों में फैले हुए हैं।
(5) हाइमेनोफिलेसिई (Hymenophyllaceae) - ये आर्द्र, उष्णकटिबंध और उष्णशीतोष्ण भागों में पाए जाते हैं। इनमें दो जीनस और 460 जातियाँ मालूम हैं।
(6) सिऐथिएसिई (Cyatheaceae) प्रमुख वृक्ष फर्न हैं। ये अधिकांश उष्णकटिबंध और उपोष्णकटिबंध (subtropics) में पाए जाते हैं।
(7) पौलिपोडिएसिई (Polypodiaceae) - ये सामान्य फर्न हैं। इनके 115 जीनस और 3,000 जातियाँ मालूम हैं। संसार के अधिकांश फर्न इसी वर्ग के हैं।
(8) ऑफिओग्लासेसिई (Ophioglossaceae) - ये अधिकतर जमीन पर पाए जाते हैं।
(9) माराटिएसिई (Marattiaceae)- ये सबसे अधिक दृढ़ होते हैं। संभवत: प्रांरभ में ये ही थे जिनसे धीरे धीरे वे पौधे हुए जो अधिक सुकुमार होते थे।
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- Tree of Life Web Project: Filicopsida
- A classification of the ferns and their allies
- A fern book bibliography
- Register of fossil Pteridophyta
- L. Watson and M.J. Dallwitz (2004 onwards). The Ferns (Filicopsida) of the British Isles.
- Ferns and Pteridomania in Victorian Scotland
- Non-seed plant images at bioimages.vanderbilt.edu
- "American Fern Society"
- "British Pteridological Society"
- Checklist of Ferns and Lycophytes of the World