डिजिटल हस्ताक्षर और क़ानून

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 एसिमेट्रिक क्रिप्टोसिस्टम्स पर आधारित डिजिटल हस्ताक्षरों को अपेक्षित वैधानिक शक्ति प्रदान करता है। अब डिजिटल हस्ताक्षर हस्तलिखित हस्ताक्षरों के समान स्वीकार किए जाते हैं और जिन इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों पर डिजिटल हस्ताक्षर किए गए हों, उन्हें कागज़ी दस्तावेज के समान समझा जाता है। [1]

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम प्रमाणन प्राधिकरण नियंत्रक (सीसीए) के लिए लाइसेंस की व्यवस्था करता है और प्रमाणन प्राधिकरण. की कार्यप्रणाली को संचालित करता है। प्रमाणन प्राधिकरण (सी.ए.) उपयोगकर्ताओं के इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रमाणन के लिए डिजिटल हस्ताक्षर संबंधी प्रमाण-पत्र जारी करता है।

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अधिनियम की धारा 17 के अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा प्रमाणन प्राधिकरण नियंत्रक (सीसीए) की नियुक्ति की गई है। सीसीए के कार्यालय ने 1 नवम्बर 2000 को कार्य करना आरंभ किया था। इसका उद्देश्य डिजिटल हस्ताक्षरों के उपयोग के माध्यम से ई-कॉमर्स और ई-गवर्नेंस का विकास करना था।

सीसीए ने सू.प्रौ.अधिनियम की धारा 18 (बी) के तहत आरसीएआई की स्थापना की है ताकि देश में प्रमाणन प्राधिकरणों की सार्वजनिक कुंजियों पर डिजिटल रूप में हस्ताक्षर किए जा सकें। अधिनियम के तहत निर्धारित मानकों के अनुसार आरसीएआई का संचालन किया जाता है।[2]

सीसीए अपनी प्राइवेट कुंजियों के उपयोग के द्वारा सी.ए. की सार्वजनिक कुंजियों को प्रमाणित करता है, जिससे साइबर स्पेस में उपयोगकर्ताओं के लिए यह सत्यापित हो सके उक्त जारी प्रमाण-पत्र एक लाइसेंसी सी.ए. द्वारा जारी किया गया है। इस उद्देश्य के लिए, यह रूट सर्टिफाइंग अथॉरिटी ऑफ इंडिया (आरसीएआई) के कार्यों को संचालित करता है। सीसीए नेशनल रिपॉजिटरी ऑफ डिजिटल सर्टिफिकेट्स (एनआीडीसी), का रखरखाव भी करता है, जिसमें देश में समस्त प्रमाणन प्राधिकरणों द्वारा जारी समस्त प्रमाण-पत्र रखे जाते हैं।[3]


डिजिटल हस्ताक्षर, इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षरों का एक रूप है जो दस्तावेज़ की सुरक्षा और सत्यापन के लिए उपयोग किया जाता है। यह पारंपरिक हस्ताक्षर का डिजिटल रूप होता है, जो किसी दस्तावेज़ पर व्यक्ति की पहचान को प्रमाणित करता है। तकनीकी रूप से, डिजिटल हस्ताक्षर एक प्रकार का क्रिप्टोग्राफिक तकनीक है जिसमें डिजिटल सर्टिफिकेट का उपयोग कर हस्ताक्षर किए जाते हैं। भारत में, डिजिटल हस्ताक्षरों को क़ानूनी रूप से मान्यता प्राप्त है, और इसका उपयोग सरकारी एवं व्यावसायिक दस्तावेज़ों में किया जाता है।

डिजिटल हस्ताक्षर के प्रकार

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  1. सिम्पल इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर (SES): यह सबसे साधारण प्रकार है, जिसमें बस एक इमेज या टेक्स्ट होता है।
  2. एडवांस्ड इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर (AES): इसमें सुरक्षा के उच्च स्तर होते हैं और इसका उपयोग ज्यादा महत्वपूर्ण दस्तावेजों में किया जाता है।
  3. क्वालिफाइड इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर (QES): यह क़ानूनी रूप से सबसे मान्य होता है और सरकारी मान्यता प्राप्त प्राधिकरण द्वारा जारी किया जाता है।

भारत में डिजिटल हस्ताक्षरों का क़ानूनी महत्व

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भारत में आईटी एक्ट 2000 के तहत डिजिटल हस्ताक्षरों को क़ानूनी मान्यता दी गई है। इसके अनुसार, डिजिटल हस्ताक्षर का उपयोग दस्तावेज़ों के प्रमाणन, सत्यापन और सुरक्षा के लिए किया जा सकता है। इस एक्ट के अनुसार, डिजिटल हस्ताक्षर का उपयोग केवल अधिकृत डिजिटल सर्टिफिकेट एजेंसी (DCA) द्वारा जारी सर्टिफिकेट के साथ ही वैध माना जाता है।

डिजिटल हस्ताक्षर का उपयोग

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  1. ई-गवर्नेंस में: सरकारी योजनाओं और प्रक्रियाओं में दस्तावेज़ों के इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है, जिसमें डिजिटल हस्ताक्षरों का उपयोग किया जाता है।
  2. बिजनेस कॉन्ट्रैक्ट्स में: कानूनी कॉन्ट्रैक्ट्स में हस्ताक्षर प्रमाणित करने के लिए यह बहुत कारगर होता है।
  3. बैंकिंग और वित्तीय लेन-देन में: डिजिटल हस्ताक्षर बैंकिंग प्रक्रिया को सरल और सुरक्षित बनाते हैं।
  1. https://www.hindustantimes.com/india-news/amendments-to-it-act-decriminalise-offences-increase-penalties-101701517892813.html
  2. "Digital Signature Certificate: What is DSC, why businesses need it and how to apply for it?". Financialexpress (अंग्रेज़ी में). 2023-06-18. अभिगमन तिथि 2024-08-17.
  3. "Ministry Of Corporate Affairs - Acquire DSC". www.mca.gov.in. अभिगमन तिथि 2024-08-17.