डेकन कॉलेज
अमेठी जिला के अवधी /भोजपुरी गायको के नाम
प्रकार | सार्वजनिक |
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स्थापित | October 6, 1821 |
स्थान | पुणे, महाराष्ट्र, भारत |
संबद्धताएं | पुणे विश्वविद्यालय |
जालस्थल | www |
जिला अमेठी के अवधी /भोजपुरी गायको के नाम कुछ इस प्रकार है
1.रंजीत यादव
2.नीरज यादव राज
इतिहास
संपादित करेंडेक्कन कॉलेज (1821-2021)
डेक्कन कॉलेज, नाम से ही इससे जुड़े हजारों देशी-विदेशी विद्यार्थियों, शोधार्थियों, पुरातत्त्व प्रेमियों, भाषाविदों के रक्त का प्रवाह तेज हो जाता है। यह भारतीय पुरातत्व के शैक्षणिक संस्थानों में अग्रणी स्थान रखता है। जिसने देश को कई महत्वपूर्ण पुराविद् दिए और भारतीय इतिहास और संस्कृति के क्रमिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भाषाविज्ञान के क्षेत्र में भी कई महत्वपूर्ण अनुसंधान परियोजनाओं का भी सफल संचालन किया है। जिसमें भाषा के अध्ययन के विस्तार,आधुनिकरण और पुनर्रचना में कई महत्वपूर्ण शोध कार्य किए हैं। प्रारंभ से ही इसमें संस्कृत भाषा के अध्ययन की परंपरा रही है जो आज तक जारी है संस्कृत की शब्दावली और अन्य परियोजनाएं में उल्लेखनीय परिणाम निकलकर सामने आए हैं इस कॉलेज को देश के तीसरे प्राचीनतम शिक्षण संस्थान होने का गौरव हासिल है।
संक्षिप्त इतिहास - डेक्कन कॉलेज की स्थापना 6 अक्टूबर विजयादशमी के दिन सन 1821 में पुणे के विश्रामबाग वाडा में एक संस्कृत स्कूल को मिला कर एक 'हिन्दू कालेज' के नाम से की गई थी। यह देश का तीसरा सबसे पुराना और महाराष्ट्र का पहला कॉलेज हुआ करता था। कुछ वर्ष पश्चात इंग्लिश स्कूल और हिंदू कॉलेज का विलय कर दिया गया और 7 जून 1851 को एलफिंस्टन इंस्टीट्यूट की तर्ज पर पूना कॉलेज स्थापित किया। तात्कालीन समय में यह संस्था पूरे दक्षिण प्रांत में शिक्षा के क्षेत्र में प्रसिद्धि पा चुकी थी और विद्यार्थियों की संख्या भी काफी बढ़ गई थी इसीलिए कॉलेज के लिए एक विशाल भवन की आवश्यकता पड़ी तथा सर जमशेदजी जीजीभोय ने एक लाख रुपए का अनुदान दिया और नए भवन का सपना साकार हुआ परिणामस्वरुप येरवडा में मौजूदा भवन की आधारशिला 15 अक्टूबर 1864 को बॉम्बे के तत्कालीन गवर्नर सर हेनरी बार्टले फ्रेरे द्वारा रखी गई थी। 23 मार्च 1868 को डेक्कन कॉलेज को इस सुन्दर नवीन गौथिक वास्तुकला से निर्मित ईमारत में स्थानांतरित किया गया जिसका परिसर 115 एकड़ के विशाल भाग में फैल हुआ था। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, गोपाल गणेश आगरकर, गुरुदेव रानाडे, कृष्णशास्त्री चिपलूनकर, इतिहासाचार्य बनाम. का राजवाड़े, कोशकार वामन शिवराम आप्टे, आर. एन दांडेकर, संगीतकार विष्णु नारायण भातखंडे, न्याय. पी बी गजेंद्रगडकर, सेनापति बापट, डॉ. द्वारकानाथ कोटनिस जैसे कई लोगों ने डेक्कन कॉलेज से अध्ययन की शिक्षा ली, जबकि लोरेंज फ्रांज किल्हॉर्न; साथ ही सर आर भंडारकर ने अपना करियर यहां एक प्रोफेसर के रूप में बिताया। ब्रितानी हुकूमत ने 1934 में कॉलेज को बंद कर दिया परन्तु पूर्व छात्रों और जन-उत्साही नागरिकों के प्रयासों की बदौलत एक बार पुनः1939 में डेक्कन कॉलेज परास्नातक एवं अनुसंधान संस्थान के नाम से शुरू हुआ जिसमें स्नातकोत्तर छात्रों को निर्देश देने और पीएच.डी. की आकाशगंगा का निर्माण करने के अलावा निबंध, प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व, भाषाविज्ञान, मध्यकालीन भारत और मराठा इतिहास, समाजशास्त्र, नृविज्ञान और संस्कृत अध्ययन में उत्कृष्ट शोध किए गए। प्रख्यात विद्वान जैसे दिवंगत प्रोफेसर एस.एम. कात्रे, एच.डी. संकालिया, इरावती कर्वे, सी.आर. शंकरन, टी.एस. शेजवलकर, प्रोफेसर ए.एम. घाटगे, एम.ए. मेहेंदले, एस.बी.देव, एम.के. धवलीकर, के पद्दाय्या, वी एन मिश्रा आदि यहां के प्रमुख रत्न हैं।
पुरातत्त्व विभाग - डेक्कन कॉलेज में 1939 में पुरातत्त्व विभाग की स्थापना हुई जिसका श्रेय प्रसिद्ध पुराविद् प्रोफ़ेसर हंसमुख धीरजलाल सांकलिया को जाता है। यह संस्थान दक्षिण एशिया में पुरातत्व के क्षेत्र में शिक्षण और अनुसंधान कार्य के लिए प्रमुख संस्थान है। इस विभाग ने भारत में पुरापाषाण पुरातत्व,आद्य-ऐतिहासिक पुरातत्व, ऐतिहासिक पुरात्त्व और वैज्ञानिक पुरातत्व में अनुसंधान के विकास में अग्रणी भूमिका निभाई है और देश के विभिन्न हिस्सों में कई अनुसंधान कार्य किए है और बडी संख्याओं में पुरास्थलों का उत्खनन कार्य किया है। अत्याधुनिक प्रयोगशालाओं द्वारा वैज्ञानिक विश्लेषण करना यहां की खासियत रही है। वर्तमान में प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति, प्रागितिहास, प्रोटोहिस्ट्री, मध्यकालीन पुरातत्व और सांस्कृतिक और जैविक नृविज्ञान, भू-पुरातत्व, पुरापाषाण विज्ञान,पुरातत्व रसायन विज्ञान की संबंधित शाखाओं के विशेषज्ञ द्धारा अध्य्यन एवम शोध कार्य जारी हैं। यहां के विद्यार्थियों ने अखिल भारतीय स्तर पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, राज्य पुरातत्व विभाग देश के अन्य शिक्षण संस्थान जहां आर्कियोलॉजी के कोर्स संचालित है। सभी जगह, हर पद पर अपने ज्ञान का प्रसार करते हुए डेक्कन कॉलेज को गौरवान्वित किया है।
भाषाविज्ञान और संस्कृत विभाग - डेक्कन कॉलेज में आधुनिक भारत का सबसे पुराना भाषाविज्ञान विभाग है जिसकी स्थापना वर्ष 1939 में प्रोफ़ेसर एस एम कत्रे द्धारा हुई। इस विभाग में पी एच डी डिग्री, एम ए जैसे उच्च स्तरीय कोर्स एवम विभिन्न अनुसंधान परियोजनाएं संचालित होती हैं। संस्कृत और भाषा विज्ञान विभाग का उद्देश्य संस्कृत, शब्दावली तथा भाषाविज्ञान के क्षेत्रों में वैज्ञानिक ज्ञान का प्रसार करना है। डेक्कन कॉलेज में संस्कृत अध्ययन की एक लंबी शानदार परंपरा है। इसकी शुरुआत 1821 में हिंदू कॉलेज के रूप में हुई जहां संस्कृत की सभी शाखाओं का अध्ययन किया गया। संस्कृत और भाषा विज्ञान में डिग्री पाठ्यक्रम के अलावा देश विदेश की विभिन्न भाषाओं के सर्टिफिकेट और डिप्लोमा कोर्स समय समय पर कराए जाते हैं। यहां सभी प्रमुख संकायों के विशेषज्ञ मौजूद है। संकाय में वेद, वेदांत, व्याकरण, श्रौत, मीमांसा, साहित्य, न्याय, खगोल विज्ञान, नाट्यशास्त्र धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, तंत्र आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अच्छी तरह से वाकिफ विशेषज्ञ शामिल हैं। डेक्कन कॉलेज में एक विशाल पुस्तकालय है जिसमें बड़ी संख्या में पुस्तकें और पत्रिकाएँ हैं। इसके पास संस्कृत में दस हजार से अधिक पांडुलिपियों का एक समृद्ध संग्रह है जो स्वयं अनुसंधान के विभिन्न क्षेत्रों में विद्वानों के लिए एक संपत्ति है।
परिसर - डेक्कन कॉलेज का परिसर दो भागों में विभाजित है। मुख्य सड़क के एक तरफ़ पुरातत्त्व विभाग है तो दुसरी तरफ़ 115 एकड़ में फैला है इसका सुन्दर हरा-भरा मेन कैम्पस, जो ब्रिटिश कालीन इमारतों और स्वच्छ वातावरण के कारण प्रसिद्ध है। इसकी मुख्य इमारत गौथिक वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है,जो डेक्कन कॉलेज की पहचान है। इस इमारत का निर्माण 1864 में किया गया था। इस इमारत के बाएं तरफ़ वेस्टर्न रीजनल लैंग्वेज सेंटर की एक और सुन्दर ईमारत है,जो वनों से आच्छादित प्रकृति की गोद में बनाई हुई लगती है। मुख्य इमारत के पीछे डेक्कन कॉलेज ग्रन्थालय है,जिसमें ज्ञान का अथाह सागर भरा पडा है। यहां कई बेशकीमती पुस्तकों का संग्रह है,जो बहुत ही दुर्लभ हैं। इस पुस्तकालय में उपस्थित एक अलवारी में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्धारा उपयोग की गई पुस्तकों का समूह है और मुख्य ईमारत में लोकमान्य बालगंगाधर तिलक का कमरा मौजूद है जो अपनी गौरव गाथा गा रहा है। मुख्य इमारत के दाएं तरफ संस्कृत और भाषाविज्ञान विभाग है और मुख्य प्रवेश द्वार के आगे दो बॉयज होस्टल फर्स्ट और सेकेंड हैं जो एक दूसरे के समांतर खड़े हैं और क्रमशः 1907 और 1913 में बनाए गए हैं। इन सब के अलावा मराठा हिस्ट्री म्यूजियम है जिसमें मराठा इतिहास से संबंधित कई बेशकीमती वस्तुओं का संग्रह है। वर्तमान आधुनिकता से दूर यह परिसर ब्रिटिश काल के दौर वाला फील दे देता है जिस कारण बॉलीवुड और डेक्कन कॉलेज के परिसर का संबंध भी बहुत पुराना है कई प्रतिष्ठित फिल्में और नामी सितारे यहां शूटिंग कर चुके हैं और कई मराठी फिल्मों के अलावा वर्तमान दौर में प्रचलित टी व्ही सीरीज और कई छोटे बड़े विज्ञापनों की शूटिंग के लिए भी यह कैम्पस व्यस्थ रहता है। सड़क के दूसरी तरफ स्थित पुरातत्त्व विभाग में भी एक संग्रहालय मौजूद है जहां स्कूल के बच्चों, शिक्षकों और समान्य जन मानव के संस्कृति और इतिहास से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ते हैं। इस संग्रहालय में कई महत्वपूर्ण पुरावशेषों का संग्रह है और यह संग्रहालय विभिन्न विथिकाओं में विभाजित है।
शब्दकोश परियोजना
संपादित करेंसंस्कृत विभाग ने १९४८ में एक महान शब्दकोश निर्माण की परियोजना हाथ में ली जिसमें शब्दों को उनके ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में भी देखना था। इसके ३० भागों का प्रकाशन हो चुका है किन्तु अभी तक संस्कृत का प्रथम वर्ण अ ही पूरा नहीं हो पाया है।[2]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Amethi Singer".[मृत कड़ियाँ]
- ↑ "Now, refer to ancient Sanskrit words online". मूल से 23 फ़रवरी 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 दिसंबर 2017.