डॉ. दिनेश्वर प्रसाद
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डॉ. दिनेश्वर प्रसाद (4 जनवरी 1932 - 13 अप्रैल 2012) हिन्दी साहित्य के मर्मज्ञ आलोचक, कवि, निबंधकार, भाषाविद तथा प्रफ़ेसर थे।[1] उनकी मुख्य पहचान लोक साहित्य के मर्मज्ञ, भाषाविद तथा अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोश बनाने में फ़ादर कामिल बुल्के के अनन्य सहयोगी के रूप में रही। अपने बहुविध ज्ञान के कारण अपने परिचितों और विद्यार्थियों के बीच वे 'चलता-फिरता विश्वकोश' कहे जाते थे।[2] उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से एम.ए. तथा राँची विश्वविद्यालय से डी.लिट. की उपाधि प्राप्त की। वे राँची विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष तथा मानविकी कला संकायाध्यक्ष के रूप में सेवानिवृत्त हुए। उनकी अब तक प्रकाशित पुस्तकों की संख्या 13 तथा संपादित पुस्तकों की संख्या 5 है। [3]
डॉ. दिनेश्वर प्रसाद | |
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जन्म | 4 जनवरी, 1932 मयदरियापुर, मुंगेर (बिहार) |
मृत्यु | 13 अप्रैल 2012 राँची |
पेशा | अध्यापन एवं लेखन |
भाषा | हिन्दी |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
काल | आधुनिक |
उल्लेखनीय काम | लोक साहित्य और संस्कृति, मिथक, प्रतीक और कविता, हॉफ़मैन ऑन मुंडारी पोइट्री |
जीवन
संपादित करेंडॉ. दिनेश्वर प्रसाद का जन्म मयदरियापुर, मुँगेर (बिहार) में 4 जनवरी 1932 को हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल तथा मुँगेर कॉलेज में हुई। शादी इंटर में पढ़ते समय ही हो गई जिसके बाद वे आगे की शिक्षा के लिए अपनी ससुराल पटना चले गए। पटना विश्वविद्यालय से एम.ए. करते ही उन्हें कॉलेज में लेक्चरर की नौकरी मिल गई, जहाँ उन्होंने 1955 से 1957 तक अध्यापन कार्य किया।
अगस्त 1957 से 1966 तक वे राँची कॉलेज में व्याख्याता रहे। तदुपरान्त राँची विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग में रीडर, फिर प्रफ़ेसर रहे। 1 जून 1987 से स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष के पद पर रहते फ़रवरी 1992 में मानविकी संकायाध्यक्ष नियुक्त हुए। 17 फ़रवरी 1993 को वे सेवानिवृत्त हुए। उनका निधन 13 अप्रैल 2012 को राँची में हुआ।
अध्यापन और संपादन
संपादित करेंडॉ. दिनेश्वर प्रसाद हिंदी, अंग्रेज़ी के अतिरिक्त संस्कृत, मगही, अंगिका, पाली, प्राकृत, कुरमाली भाषाएँ जानते थे तथा जर्मन और फ्रेंच के अलावा कामचलाऊ बांग्ला भी सीखी थी। उनकी स्मरणशक्ति अद्भुत थी। अपने प्रिय कवियों की कई किताबें उन्हें कंठस्थ थीं और कोश के शब्दों या अन्य किताबों के संदर्भ बताते समय वे पेज नंबर और पैरा नंबर तक बता देते थे। इसी कारण उन्हें चलता-फिरता विश्वकोश कहा जाता था। वे शौकिया तौर पर स्नातकोत्तर ऐंथ्रपॉलजी विभाग के छात्रों को ऐंथ्रपॉलजी भी पढ़ाते रहे। इतिहास, समाज विज्ञान, गणित, मनोविज्ञान, चित्रकला आदि का अध्ययन उन्हें प्रिय रहा। उन्होंने अपनी पहल से झारखंड की विभिन्न भाषाएँ सीखने और उनकी लोक कथाओं का संकलन अपने छात्रों के माध्यम से करवाने की पहल की। फ़ादर कामिल बुल्के के निधन के बाद उनके अधूरे कामों – यथा हिंदी-अंग्रेज़ी शब्दकोश का परिवर्धन करना उनकी ही ज़िम्मेदारी रही।
साहित्यिक जीवन
संपादित करेंडॉ. दिनेश्वर प्रसाद ने अपने जीवन काल में स्वतंत्र रूप से दस पुस्तकों की रचना की और फ़ादर कामिल बुल्के के सहयोगी के रूप में दो पुस्तकों में अपना योगदान किया।[4]
प्रकाशित पुस्तकें
संपादित करें- लोक साहित्य और संस्कृति[5]
- मिथक, प्रतीक और कविता[6]
- प्रसाद की विचारधारा[7]
- हॉफ़मैन ऑन मुण्डारी पोइट्री[8]
- मानस कौमुदी (फ़ादर कामिल बुल्के के साथ)[9]
- बाइबिल के तीन लघु उपन्यास (डॉ. कामिल बुल्के के साथ)
- प्रसाद की साहित्य दृष्टि[10]
- मुण्डारी शब्दावली : अखिल भारतीय संदर्भ
- फ़ादर कामिल बुल्केः भारतीय साहित्य के निर्माता[11]
- आज के लोकप्रिय कवि : जयशंकर प्रसाद[12]
- मानस, कामायनी और उर्वशी[13]
- मैं इस पृथ्वी को कभी नहीं भूलूँगा (वॉल्ट व्हिटमन की कविताओं का अनुवाद)[14]
- लोक, लोकवार्ता और लोकसाहित्य (मरणोपरांत प्रकाशित निबंध संग्रह)[15]
सम्पादित पुस्तकें
संपादित करें- एक ईसाई की आस्था - रामकथा और हिन्दी (अंग्रेज़ी में : Ramkatha
and Other Essays)
- फ़ादर कामिल बुल्के के अंग्रेज़ी-हिन्दी कोश का संशोधन एवं परिवर्द्धन
- डॉ. बुल्के स्मृतिग्रंथ के संपादक मंडल के सदस्य
- पवित्र बाइबिल (डॉ बुल्के) के ओल्ड टेस्टामेंट का सह-अनुवाद और कुछ प्रसंगों का स्वतंत्र अनुवाद.
- सूरज के पार (अपनी तथा अन्य छह कवियों की कविताओं का सह-संपादन)
नैशनल आर्काइव्ज़ के लिए फ़ादर कामिल बुल्के का साक्षात्कार।
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हिन्दी और अंग्रेज़ी निबंध जो अब तक असंकलित हैं।
सम्मान[16]
संपादित करें- केन्द्रीय हिन्दी संस्थान का राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार
- साहित्य सेवा सम्मान (बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना 1995 ई)
- राधाकृष्ण पुरस्कार (राँची एक्सप्रेस,1997 ई)
- अक्षरकुम्भ सम्मान, जमशेद्पुर 2008
- झारखंड गौरव सम्मान तथा अन्य कई दर्जन सम्मान
संदर्भ
- ↑ https://www.jagran.com/sahitya/literature-news-3114.html
- ↑ https://www.jagran.com/jharkhand/ranchi-11228303.html
- ↑ http://kavitakosh.org/kk/दिनेश्वर_प्रसाद
- ↑ http://kavitakosh.org/kk/दिनेश्वर_प्रसाद
- ↑ https://epustakalay.com/book/5944-lok-sahitya-aur-sanskrati/
- ↑ https://nationallibraryopac.nvli.in/cgi-bin/koha/opac-detail.pl?biblionumber=345920&shelfbrowse_itemnumber=381254
- ↑ https://webopac.amu.ac.in/cgi-bin/koha/opac-detail.pl?biblionumber=167226&shelfbrowse_itemnumber=212556
- ↑ https://catalog.crl.edu/Record/4e7335c5-264d-5fcb-86d6-083c97b49762
- ↑ https://epustakalay.com/book/98301-manas-kaumudi-by-arvind-gupta-father-camil-bulce/
- ↑ https://www.exoticindiaart.com/book/details/literary-view-of-jaishankar-prasad-old-and-rare-book-mzh773/
- ↑ https://ia801503.us.archive.org/26/items/in.ernet.dli.2015.473922/2015.473922.Faadar-Kaamil.pdf
- ↑ https://dbutec5fghzah.cloudfront.net/Images/preview/3225_preview.pdf
- ↑ https://notnul.com/Pages/Book-Details.aspx?Shortcode=70F3VSxY
- ↑ http://kavitakosh.org/kk/मैं_इस_पृथ्वी_को_कभी_नहीं_भूलूँगा_/_वाल्ट_ह्विटमैन_/_दिनेश्वर_प्रसाद
- ↑ https://cir.nii.ac.jp/crid/1130572554902189843
- ↑ http://kavitakosh.org/kk/दिनेश्वर_प्रसाद