शास्त्रीय संगीतकार श्रीमती तंजावूर बृंदा (1912-1996) कर्णाटक संगीत के वीणा धन्नम्माल शैली की सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि मानी जाती हैं। आप न केवल गायन, बल्कि वीणा वादन में भी निपुण थीं। आपके प्रशंसक आपको आदर से 'बृंदम्मा' पुकारते थे।

श्रीमती बृंदा अपने परिवार सदस्यों द्वारा वीणा धन्नम्माल गायन शैली में शिक्षित हुईं। आपके शिक्षक थे आपकी माता कामाक्षी, मौसी लक्ष्मीरत्नम और स्वयं आपकी विख्यात दादी वीणा धन्नम्माल। इसके पश्चात आपने कांचीपुरम नैना पिल्लै के निरीक्षण में संगीत का अध्ययन किया। आपने वीणा धन्नम्माल शैली के मंद, मोहनीय और गमकयुक्त संगीत तथा नैना पिल्लै के स्फूर्तिमान और लयपूर्वक संगीत को सराहनीय ढंग से अपने गायन में सम्मिश्रित किया।

संगीतकार एवं संगीत प्रेमी श्रीमती बृंदा के पाण्डित्य को आज भी सराहते हैं। आपके संगीत कार्यक्रमों में गमकपूर्ण राग (उदाहरणतया बेगडा, मुखारि, सुरुटि, सहाना, वराली) हमेशा शामिल रहते थे। कर्णाटक संगीत के कई प्रसिद्ध गायक, जैसे शेम्मंगुडी श्रीनिवास अय्यर, एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी, आर. के. श्रीकंठन, राम्नाड कृष्णन, अरुणा साईराम और चित्रवीणा रविकिरण ने आपसे गायन सीखा।

श्रीमती बृंदा ने कई सम्मान प्राप्त किए जिन्में अग्रगण्य है संगीत कलानिधि (कर्णाटक संगीत का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार), जो आपने 1976 में हासिल किया।

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