तज्जलान् उपनिषदों में प्रयुक्त एक रहस्यमय शब्दावली है[1] जो ब्रह्म को व्याख्यायित करने अथवा निरूपित करने हेतु प्रयुक्त है। छांदोग्य उपनिषद में प्रवर्तित यह शब्द ब्रह्म के एक नाम[2] के रूप में प्रयुक्त है और इसका अर्थ एक पहेली की तरह भी है।[3] शांडिल्य ऋषि द्वारा कहा गया प्रसिद्ध महावाक्य:सर्वं खल्विदं ब्रह्म तज्जलानिति शान्त उपासीत। अथ खलु क्रतुमयः पुरुषो यथाक्रतुरस्मिल्लोके पुरुषो भवति तथेतः प्रेत्य भवति स क्रतुं कुर्वीत॥ है जिसमें ब्रह्म के स्वरुप को इस कूट शब्द द्वारा अभिवयक्त किया गया है।


सन्दर्भ संपादित करें

  1. हिन्दी साहित्य कोश. Jñānamaṇḍala. 1985. पृ॰ 437.
  2. Abheda Nanda Bhattacharya; Abhedānand (1978). The Upanishadic Doctrine of the Self: An Analytical Study of the Nature of the Self as Revealed in the Upanishads. Oriental Publishers & Distributors. पृ॰ 64.
  3. BK SAHNI (24 August 2017). BPY-001: INDIAN PHILOSOPHY: PART-I. MeetCoogle. पपृ॰ 133–. GGKEY:JT42ZWSNSP9.