तत्त्व (हिन्दू धर्म)
तत्त्व है जिससे यथार्थ बना हुआ है। 'तत्त्व' का शाब्दिक अर्थ है, वास्तविक स्थिति, ययार्थता, वास्तविकता, असलियत। 'जगत् का मूल कारण' भी तत्त्व कहलाता है।
सांख्य के अनुसार २५ तत्त्व हैं और शैव दर्शन के अनुसार ३६।
- सांख्य में २५ तत्त्व माने गए हैं—
- पुरुष
- प्रकृति,
- महत्तत्व (बुद्धि),
- अहंकार,
- चक्षु,
- कर्ण,
- नासिका,
- जिह्वा,
- त्वक्,
- वाक्,
- पाणि,
- पायु,
- पाद,
- उपस्थ,
- मल,
- शब्द,
- स्पर्श,
- रूप,
- रस,
- गंध,
- पृथ्वी,
- जल,
- तेज,
- वायु,
- आकाश
योग में ईश्वर को और मिलाकर कुल २६ तत्त्व माने गए हैं। सांख्य के 'पुरुष' से योग के ईश्वर में विशेषता यह है कि योग का ईश्वर क्लेश, कर्मविपाक आदि से पृथक् माना गया है।
वेदांतियों के मत से ब्रह्म ही एकमात्र परमार्थ तत्त्व है।
शून्यवादी बौद्धों के मत से शून्य (जो तर्क से समझे जाने योग्य नहीं है) ही परम तत्त्व है, क्योंकि जगत में सभी परतंत्र हैं कुछ भी स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में नहीं है।
जैन धर्म अनुसार छह द्रव्य होते है- जीव, अजीव, आकाश, धर्म, अधर्म और काल यह छह द्रव्य अनादि है इनका कोई बनाने वाला नही है। इन्ही छह द्रव्य के सद्भाव में जीव द्रव्य अपना परावर्तन करता है।
चार्वाक के मत में पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु ये ही तत्त्व माने गए हैं और इन्हीं से जगत् की उत्पत्ति कही गई है।
न्याय में १६, वैशेषिक में ६, शैवदर्शन में ३६; इसी प्रकार अनेक दर्शनों की भिन्न भिन्न मान्यताएँ तत्त्व के संबंध में हैं