तमस (उपन्यास)
तमस भीष्म साहनी का सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है। इसका प्रकाशन 1973 में हुआ था। वे इस उपन्यास से साहित्य जगत में बहुत लोकप्रिय हुए थे। तमस को १९७५ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।[1] इस पर १९८६ में गोविंद निहलानी ने दूरदर्शन धारावाहिक तथा एक फ़िल्म भी बनाई थी।[2]
तमस (उपन्यास) | |
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तमस का मुखपृष्ठ | |
लेखक | भीष्म साहनी |
देश | भारत |
भाषा | हिंदी |
विषय | सांप्रदायिक वैमनस्य |
प्रकाशक | राजकमल प्रकाशन, दिल्ली |
पृष्ठ | २५३ |
आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ | 81-267-0543-4 |
कथावस्तु
संपादित करें'तमस' की कथा परिधि में अप्रैल १९४७ के समय में पंजाब के जिले को परिवेश के रूप में लिया गया है। 'तमस' कुल पांच दिनों की कहानी को लेकर बुना गया उपन्यास है। परंतु कथा में जो प्रसंग संदर्भ और निष्कर्ष उभरते हैं, उससे यह पांच दिवस की कथा न होकर बीसवीं सदी के हिंदुस्तान के अब तक के लगभग सौ वर्षों की कथा हो जाती है। यों संपूर्ण कथावस्तु दो खंडों में विभाजित है। पहले खंड में कुल तेरह प्रकरण हैं। दूसरा खंड गांव पर केंद्रित है। 'तमस' उपन्यास का रचनात्मक संगठन कलात्मक संधान की दृष्टि से प्रशंसनीय है। इसमें प्रयुक्त संवाद और नाटकीय तत्व प्रभावकारी हैं। भाषा हिन्दी, उर्दू, पंजाबी एवं अंग्रेजी के मिश्रित रूप वाली है। भाषायी अनुशासन कथ्य के प्रभाव को गहराता है। साथ ही कथ्य के अनुरूप वर्णनात्मक, मनोविशेषणात्मक एवं विशेषणात्मक शैली का प्रयोग सर्जक के शिल्प कौशल को उजागर करता है।[3]
पात्र
संपादित करें- नत्थू
- बख्शीजी
- अज़ीज़
- मास्टर रामदास
- मेहता
- अजीतसिंह
- देसराज
- शकर
- कश्मीरीलाल
- जरनैल
- देवदत्त
- लीज़ा
- रिचर्ड
- हकीमजी
- सरदारजी
- मौला दाद
- हयातबख्श
- लक्ष्मीनारायण
विशेषताएँ
संपादित करेंआजादी के ठीक पहले सांप्रदायिकता की बैसाखियाँ लगाकर पाशविकता का जो नंगा नाच इस देश में नाचा गया था, उसका अंतरग चित्रण भीष्म साहनी ने इस उपन्यास में किया है। काल-विस्तार की दृष्टि से यह केवल पाँच दिनों की कहानी होने के बावजूद इसे लेखक ने इस खूबी के साथ चुना है कि सांप्रदायिकता का हर पहलू तार-तार उदघाटित हो जाता है और पाठक सारा उपन्यास एक साँस में पढ़ जाने के लिए विवश हो जाता है। भारत में साम्प्रदायिकता की समस्या एक युग पुरानी है और इसके दानवी पंजों से अभी तक इस देश की मुक्ति नहीं हुई है। आजादी से पहले विदेशी शासकों ने यहाँ की जमीन पर अपने पाँव मजबूत करने के लिए इस समस्या को हथकंडा बनाया था और आजादी के बाद हमारे देश के कुछ राजनीतिक दल इसका घृणित उपयोग कर रहे हैं। और इस सारी प्रक्रिया में जो तबाही हुई है उसका शिकार बनते रहे हैं वे निर्दोष और गरीब लोग जो न हिन्दू हैं, न मुसलमान बल्कि सिर्फ इन्सान हैं और हैं भारतीय नागरिक। भीष्म साहनी ने आजादी से पहले हुए साम्प्रदायिक दंगों को आधार बनाकर इस समस्या का सूक्ष्म विश्लेषण किया है और उन मनोवृत्तियों को उघाड़कर सामने रखा है जो अपनी विकृतियों का परिणाम जनसाधारण को भोगने के लिए विवश करती हैं।[4]
- विश्लेषणात्मक मत
गोपाल राय के मतानुसार “तमस उस अन्धकार का द्योतक है जो आदमी की इंसानियत और संवेदना को ढँक लेता है और उसे हैवान बना देता है।”[5]
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "भीष्म साहनी का अंतिम संस्कार" (पीएचपी). बीबीसी. मूल से 20 अगस्त 2004 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ३० अक्तूबर २००८.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ "गोविंद निहलानी एनिमेशन के मैदान में". वेबदुनिया. मूल (एचटीएम) से 7 मार्च 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ३० अक्तूबर २००८.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ "भीष्म साहनी का तमस" (पीएचपी). ताप्तीलोक. अभिगमन तिथि ३० अक्तूबर २००८.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)[मृत कड़ियाँ] - ↑ "तमस". भारतीय साहित्य संग्रह. मूल (पीएचपी) से 27 अगस्त 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ३० अक्तूबर २००८.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ गोपाल, राय (2014). हिन्दी उपन्यास का इतिहास. नई दिल्ली: राजकमल प्रकाशन. पृ॰ 303. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-267-1728-6.