तर्कजाल को अंग्रेज़ी में डिस्कोर्स कहते हैं. पिछले कुछ सालों के दौरान तर्कजाल शब्द सामाजिक विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में इतना प्रचलित और इतना लोकप्रिय हो गया है कि अब इसका हवाला दिए बिना सामाजिक जीवन या संबंधों के बारे में बात करना ही मुश्किल हो गया है.

तर्कजाल (डिस्कोर्स) को एक ऐसी सामाजिक सीमा के रूप में समझा जा सकता है जो यह परिभाषित कर सकती है कि किसी मुद्दे के बारे में क्या कहा जा सकता है. किन चीजों को उस मुद्दे का ‘सत्य’ माना जा सकता है. यानी हम जिस यथार्थ यानी सच्चाई को जानते हैं, उसे कैसे परिभाषित किया जाता है.

विमर्श सारी चीजों के बारे में हमारे नज़रियों को परिभाषित करता है. मिसाल के तौर पर, दो बिल्कुल अलग-अलग तरह के तर्कजाल किसी रैडिकल आंदोलन में शामिल लोगों पर चर्चा करते हुए इस बात का उल्लेख कर सकते हैं कि वे ‘स्वतंत्रता सेनानी’ हैं या ‘आतंकवादी’ हैं. मतलब यह कि हम जो तर्क चुनते हैं उसी से यह भी तय होता है कि हमारे शब्द, अभिव्यक्तियां और संभवतः वह शैली क्या होगी जिसमें हम बात करेंगे. तर्कजाल विचारधाराओं, विचारों, रवैयों, क्रियाओं, मान्यताओं और व्यवहारों का एक जाल होते हैं. यह तर्कजाल परिवर्तनशील होते हैं. वे सामाजिक व राजनीतिक परिस्थितियों के साथ बदलते हैं और अपने अनुसार व्यक्तियों तथा उनके पूरे जगत को गढ़ते जाते हैं.

‘सत्य’ क्या है, यह बात एक खास तर्क के भीतर निर्धारित होती है. मिसाल के तौर पर, अगर हम अपने जीवन में इतनी गहरी जड़ें जमा चुके सुंदरता के मानदंडों को देखें, तो यह बताता है कि सुंदर व्यक्ति कौन होगा.

सुंदरता के प्रचलित मानदंडों के अनुसार सुंदर लड़कियां गोरी और पतली होती हैं, खूबसूरत लड़के, लंबे, गठीले बदनवाले और चुस्त-दुरुस्त होते हैं. हम लोगों की बातों, फिल्मों, टेलीविजन के विज्ञापनों में यानी जिंदगी के हर पहलू में इन कायदे-कानूनों को दोहराते हुए देखते हैं. ये विचार विवाह जैसे संस्थानों पर गहरा असर डालते हैं.

इन मानदंडों के ज़रिए लोगों को जोड़ा या बेदखल किया जाता है. जिन लड़कियों का रंग गोरा नहीं है, उन्हें सुंदर नहीं माना जाता, उनकी शादी में भी अक्सर दिक्कत होती है.

डिस्कोर्स यानी तर्कजाल में सत्ता हमेशा मौजूद रहती है. सत्ता हासिल करने का अर्थ यह है कि आप उस विमर्श में स्थापित नियमों का पालन करें और कायदे-कानूनों के अनुसार चलें. उससे आप उस तर्कजाल में लाभ या सत्ता की स्थिति हासिल करने की कोशिश करते हैं.

विमर्श हमें किस तरह से सोचना और कदम उठाना है, यह सिखाने की ताकत रखता है. अनुशासित करने की यह प्रक्रिया हमेशा बल प्रयोग नहीं करती, जैसे स्कूल में कोई नियम तोड़ने पर विद्यार्थियों को दंडित किया जाता है.

सुंदरता के मानदंड में, हम यह देख सकते हैं कि किस तरह लोग खुद को अनुशासित करते हैं. जो लड़कियां गोरी नहीं होतीं वे अक्सर इस अहसास से परेशान रहती हैं कि वे खूबसूरत नहीं हैं. लिहाज़ा सुंदरता की हमारी अपनी सोच भी तर्कजाल से निर्धारित हो रही होती है.

कोई भी तर्कजाल लोगों के विकल्प सीमित कर देता है. इस तरह सुंदरता के मानदंडों में अगर आप सुंदर नहीं हैं तो औरों के लिए भी यह सोचना मुश्किल हो जाता है कि आप सुंदर हैं. तर्कजालों में सत्ता सारे व्यवहारों और संबंधों में निहित होती है. लेकिन हम हमेशा इन सत्ताओं से नियंत्रित नहीं होते. हम रचनात्मक प्रयोग कर सकते हैं या सत्ता को चुनौती दे सकते हैं या उसका विरोध कर सकते हैं.

विमर्श की यह अवधारणा मुख्य रूप से फ्रांसीसी दार्शनिक मिशेल फूको के विचारों पर आधारित है. तर्कजाल या डिस्कोर्स की अवधारणा 70 और 80 के दशकों में उस समय सामने आई, जब इस दावे को चुनौती दी जा रही थी कि एक सैद्धांतिक समझदारी के द्वारा समाज के सारे आयामों को समझा जा सकता है.

इस प्रक्रिया में किसी एक सच की तलाश करने के बजाए कोशिश यह की जा रही थी कि समाज के भीतर एक साथ कितने सारे सत्य हो सकते हैं और किस तरह ये अलग-अलग सच निर्मित किए जाते हैं और उनको स्थायित्व दिया जाता है. इन कोशिशों के पीछे मूल विचार यह था कि ‘सत्य’ और ‘ज्ञान’ एक नहीं, बल्कि अनेक होते हैं और वे संदर्भ से बंधे होते हैं. ये ‘सत्य’ और ‘ज्ञान’ भिन्न विमर्शों और तर्कों के ज़रिए ऐतिहासिक रूप से गढ़े जाते हैं.

पहले यह माना जाता था कि ‘सत्य’ क्या है यह सत्ताधारी तय करते हैं. लेकिन फूको ने सत्ता की समझ को ही बदल डाला. इससे पहले तक सत्ता को एक ऐसी चीज माना जाता था जो एक प्रभुत्वशाली समूह या वर्ग के पास दूसरे समूहों के ऊपर होती है. जैसे प्रजा पर राजा की सत्ता, मज़दूरों पर फैक्टरी मालिक की सत्ता. फूको ने सत्ता की जो अवधारणा दी उसका मूल आधार यह था कि सत्ता एक जाल की तरह होती है.

सत्ता सिर्फ एक जगह पर नहीं होती और सिर्फ एक दिशा में नहीं बहती. सत्ता हर जगह होती है, सारे संबंधों, सामाजिक संरचनाओं, स्कूल, धर्म, परिवार जैसे सारे संस्थानों में होती है. अलग-अलग अवसरों पर अलग-अलग लोग सत्ता का प्रयोग कर सकते हैं. सत्ता केवल दबाने वाली या नकारात्मक नहीं होती, बल्कि सकारात्मक भी हो सकती है. वह विचारों के रूप परिवर्तन का स्रोत भी बन सकती है.


संदर्भ :


द थर्ड आई [1] जेंडर, यौनिकता, हिंसा टेक्नोलॉजी, और शिक्षा पर काम करने वाली एक नारीवादी विचारमंच (थिंकटैंक) है.