तहरीक-ए-हुर्रियत
तहरीक-ए-हुर्रियत जम्मू व कश्मीर सैयद अली शाह गिलानी द्वारा स्थापित एक पृथक्तावादी (अलगाववादी) राजनीतिक दल है। इसकी स्थापना 7 अगस्त 2004 ( 02 चैत्र, कृष्ण, सप्तमी, 2061 विक्रम संवत् ) को गिलानी द्वारा अपनी पूर्व पार्टी जमात-ए-इस्लामी कश्मीर छोड़ने के पश्चात् की गई थी।[1]
गिलानी ने कहा कि जब उन्हें कारावास से रिहा किया गया, तो उनके पूर्व दल जमात-ए-इस्लामी कश्मीर ने उन्हें "सेवानिवृत्त" किया। ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (APHC) का हिस्सा बनने के लिए उन्हें एक पार्टी बनाने की आवश्यकता थी।[2] उन्होंने APHC के अपने गुट के अध्यक्ष के रूप में कार्य करना जारी रखा, जिसे APHC (G) कहा जाता है।[1]
इसके प्रथम स्थापना दिवस, 7 अगस्त 2004 (02 चैत्र, कृष्ण, सप्तमी, 2061 विक्रम संवत् ) को, सबसे रूढिवादी अनुमानों के अनुसार, 1 लाख से अधिक लोग, हैदरपोरा श्रीनगर में एकत्र हुए, इसके उद्देश्यों और लक्ष्यों के प्रति एकजुटता और प्रतिबद्धता दिखाते हुए। अगस्त 2006 में, एक सार्वजनिक सम्मेलन के बजाय, तहरीक-ए-हुर्रियत की केन्द्रीय परिषद् ने सदस्यों, सदस्यता के प्रत्याशियों और दल के मूल सदस्यों का एक सम्मेलन आयोजित करने का निर्णय लिया। इस सम्मेलन में तहरीक-ए-हुर्रियत के मूल लक्ष्यों और उद्देश्यों को विस्तृत करने की आवश्यकता की अनुभूति हुई। अधिवेशन रविवार के लिए निर्धारित किया गया था ताकि अधिकांश सदस्यों के भाग लेने में आसानी हो। तहरीक-ए-हुर्रियत के संस्थापकों के सामने मूल उद्देश्य इस्लाम (आस्था), आजादी (स्वतन्त्रता) और एतिहाद-ए-मिलत (बन्धुता) के बुनियादी सिद्धान्तों के लिए स्पष्ट सेवा के माध्यम से अल्लाह की प्रसन्नता अर्जित करना है।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ अ आ Geelani floats new party, The Statesman, 8 August 2004. साँचा:ProQuest
- ↑ Pak has been with us since 47, The Statesman, 22 February 2005. साँचा:ProQuest