ताज़िया : बाँस की कमाचिय़ों पर रंग-बिरंगे कागज, पन्नी आदि चिपका कर बनाया हुआ मकबरे के आकार का वह मंडप जो मुहर्रम के दिनों में मुसलमान सुनी लोग हजरत-इमाम-हुसेन की कब्र के प्रतीक रूप में बनाते है और दसवें दिन जलूस के साथ ले जाकर इसे दफन किया जाता है।

(c. 1790-1800) शिया मुस्लिम इमाम हुस्सैन की याद में मर्सिया और मातम करते हे वही सुनी लोगों में ताजिया यात्रा निकलने की प्रथा हे। यह ताज़िया आखिर नदी या समुन्दर में डुबो दिया जाता है।


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मीलादुन नबी, यौम-ए-आशूरा, मुहर्रम, औलिया के उर्स के मौक़ों पर ताज़िए बनाए और सजाए जाते हैं.

मुहर्रम में ख़ास तौर पर ताज़िया हज़रत इमाम हुसैन कि याद में बनाया जाता है।

भारत में सब्से अच्छी ताजियादारी जावरा मध्यप्रदेश प्रदेश में होती है। यहां ताजिये बांस से नहीं बनते है बल्कि शीशम और साग्वान कि लकड़ी से बनाते है जिस पर कांच और माइका का काम होता है। जावरा में ३०० से ज्यादा (१२ फ़ीट) के ताज़िए बनते है।।