तारतम सागर
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समनाम | तारतम सागर कुलजम स्वरूप तारतम वाणी श्री मुखवाणी श्री स्वरूप साहेब |
रचयिता | महामति प्राणनाथ |
रचनाकाल | विक्रम संवत 1715 |
चौपाइयां | 18,758 |
संग्रह | 14 कृतियाँ |
तारतम सागर श्री कृष्ण प्रणामी धर्म का प्रमुख ग्रंथ है। इसमें महामति प्राणनाथ के उपदेशों को विक्रम संवत 1715 को लेखन के रूप में उतारा गया। प्रणामी संप्रदाय के अनुयायी इसे कुलजम स्वरूप, तारतम वाणी, श्री मुखवाणी और श्री स्वरूप साहेब नाम से भी जानते है। यह एक विशाल संकलन है।[1] इसमें कुल 14 ग्रंथ, 527 प्रकरण व 18,758 चौपाइयां हैं। इस वाणी के प्रारंभिक चार ग्रंथों - रास, प्रकास, षट्ऋतु और कलस में हिंदू पक्ष का ज्ञान है। सनंध, खुलासा, मारफत सागर और कयामतनामा में कतेब पक्ष तथा खिलवत, परिकरमा, सागर, सिनगार और सिंधी में परमधाम का ज्ञान है। किरंतन ग्रंथ में सभी विषयों का समिश्रण है।[2]
1 रास |
2 प्रकाश |
3 षट्ऋतु |
4 कलश |
5 सनंध |
6 किरंतन |
7 खुलासा |
8 खिलवत |
9 परिक्रमा |
10 सागर |
11 सिनगार |
12 सिंधी |
13 मारफत सागर |
14 कयामतनामा |
रास, प्रकाश, षट्ऋतु, कलश, सनंध, किरंतन, खुलासा, खिलवत, परिक्रमा, सागर, सिनगार, सिंधी, मारफत सागर और कयामतनामा
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Shri Tartam Sagar". मूल से 24 अक्तूबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 अगस्त 2014.
- ↑ "श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ". मूल से 8 अगस्त 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 अगस्त 2014.