तिरुमुरै

तमिल हिंदू शैव साहित्य

तिरुमुरै ( तमिल : திருமுறை, अर्थ : पवित्र विभाजन ) शिव की स्तुति में रचित तमिल स्तोत्रों का संग्रह है जिनकी रचना ६ठी शताब्दी से लेकर १२वीं शताब्दी तक विभिन्न सन्त कवियों ने की थी। यह १२ भागों में है।

मणिक्कवासकर सहित चार सबसे महत्वपूर्ण नायनमार ; इन्हें सामूहिक रूप से நால்வர் कहा जाता है : (बाएं से) सम्बन्दर, अप्पर, सुन्दरर, मणिक्कवचकर

१२वीं शताब्दी में नम्बियन्दर नम्बि ने अप्पर, सम्पन्दर, और सुन्दरर द्वारा रचित स्तोत्रों को ७ भागों में संकलित किया। कुछ समय बीतने के बाद विद्वानों को अन्य सन्तों की कृतियों को भी संकलित करने की महती आवश्यकता का अनुभव हुआ। [1] मणिकवसगर ने तिरुवसकम् और तिरुकोवयर का संकलन किया जो तुरुमुरै के आठवें और नौवें भाग हैं। इसके बाद प्रसिद्ध सिद्धर तिरुमूलर ने तिरुमंत्रम् का संकलन किया जो तिरुमुरै का १२वाँ भाग है। इसके ११वें भाग का संकलन करैकल अम्मैयर, चेरामन पेरुमल और अन्य ने किया। समकालीन चोल राजा नंबी के काम से प्रभावित थे और उन्होंने ११वें तिरुमुरै में नंबी की कृतियों को सम्मिलित किया। [1] एक शताब्दी बाद सेककिझर द्वारा रचित पेरिया पुराणम् में सभी 63 नयनमारों के जीवन का चित्रण किया गया है। [1] इस कृति का तत्कालीन शैव विद्वानों और कुलोथुंगा चोल द्वितीय के बीच इतना अधिक प्रभाव था कि इसे इसे १२वें तिरुमुरै के रूप में प्रतिष्ठा मिली। तमिलनाडु में वेदों और शैव आगमों के साथ तिरुमुरै मिलकर शैव सिद्धान्त दर्शन के आधार हैं। [2]