तिरुवावटुतुरै आतीनम्
तिरुवावटुतुरै आतीनम् भारत के तमिलनाडु राज्य के मयिलादुत्रयी जिले के कुतलम तालुक के तिरुवावटुतुरै शहर में स्थित एक शैव मठ है। [1] मइलादुतुरै के मयूरनाथस्वामी मंदिर का देखभाल इसी आतीनम के द्वारा होता है। 1987 तक इस आतीनम् के नियंत्रण में कुल 15 शिव मंदिर थे। [2]
शैव सिद्धान्तम् की विचारधारा के प्रसार के लिए 16 वीं शताब्दी में तिरुप्पनन्दल आधीनम् और धर्मपुरम् आधीनम के साथ इस आधीनम् की स्थापना की गई थी। [3]
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के इस आतीनम् से बड़े निकट सम्बन्ध थे।
गतिविधियाँ
संपादित करेंतिरुवावटुतुरै आधीनम शैव साहित्य प्रकाशित करता रहता है जिसमें , विशेष रूप से तेवरम् और तिरुवसकम और इसके अनुवाद ने में शामिल हैं। यह साहित्यिक कार्य भी करता है। मीनाक्षी सुन्दरम पिल्लै जैसे कुछ प्रमुख तमिल साहित्यकारों ने आधीनम् में ही शिक्षा प्राप्त की थी। उनके शिष्य यू वी स्वामीनाथ अय्यर भी संगठन से जुड़े थे जिन्होंने जिन्होंने कई तमिल शास्त्रीय ग्रंथों का प्रकाशन किया।[4]
उल्लेखनीय घटनाएँ
संपादित करेंभारत की स्वतन्त्रता के एक दिन पूर्व 14 अगस्त, 1947 को इस आतीनम के तत्कालीन मुख्य पुजारी श्रील श्री अंबालावन देसिका स्वामिगल ने विशेष शिव पूजा की और जवाहरलाल नेहरू को दिल्ली में उनके घर पर एक रत्नजड़ित स्वर्ण राजदण्ड प्रदान किया। इस राजदण्ड का नाम सेंगोल है। उस समय इसका मूल्य लगभग पन्द्रह हजार रूपये था। [5] सेनगोल, जो तमिल शब्द 'सेम्माई' से लिया गया है, जिसका अर्थ धार्मिकता है, का तमिल संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान था; जैसे कि जब एक नए राजा का राज्याभिषेक किया जाता था, तो उसे राज्याभिषेक के दौरान महायाजक द्वारा एक 'सेनगोल' भेंट किया जाता था और उसे याद दिलाया जाता था कि उसके पास न्यायपूर्वक और निष्पक्ष रूप से शासन करने के लिए "अनाई" (आदेश या डिक्री) है।
28 मई, 2023 को, नई संसद के उद्घाटन की शुरुआत में, अधीनम पुजारियों ने एक पारंपरिक पूजा की जिसमें प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भाग लिया, और मोदी सम्मान के प्रतीक के रूप में पवित्र सेनगोल के सामने झुके। तब अधीनम पुजारियों के एक समूह ने सेनगोल को पीएम मोदी को प्रस्तुत किया, जिन्होंने इसे नए संसद भवन में लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के पास स्थापित किया।[6].
यह भी देखें
संपादित करें- सेंगोल, तिरुवावटुतुरै आतीनम् द्वारा जवाहरलाल नेहरू को १९४७ में प्रदत्त एक राजदण्ड।
संदर्भ
संपादित करें- ↑ Census of India, 1981: Tamil Nadu. Controller of Publications. 1962. पृ॰ 7.
- ↑ M. Thangaraj (2003). Tamil Nadu: an unfinished task. SAGE. पृ॰ 170. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-7619-9780-1.
- ↑ Peterson, Indira V. (1982). "Singing of a Place: Pilgrimage as Metaphor and Motif in the Tēvāram Songs of the Tamil Śaivite Saints". Journal of the American Oriental Society. 102 (1): 82. JSTOR 601112. डीओआइ:10.2307/601112.
- ↑ M.M.M., Mahroof (1993). "Arabic-Tamil In South India And Sri Lanka: Language As Mimicry". Islamic Studies. 32 (2): 182. JSTOR 20840120.
- ↑ "INDIA: Oh Lovely Dawn". The Time.com (अंग्रेज़ी में). 25 August 1947. अभिगमन तिथि 2023-06-06.
From Tanjore in south India came two emissaries of Sri Amblavana Desigar, head of a sannyasi order of Hindu ascetics. Sri Amblavana thought that Nehru, as first Indian head of a really Indian Government ought, like ancient Hindu kings, to receive the symbol of power and authority from Hindu holy men [...] One sannyasi carried a sceptre of gold, five feet long, two inches thick. He sprinkled Nehru with holy water from Tanjore and drew a streak in sacred ash across Nehru's forehead. Then he wrapped Nehru in the pithambaram and handed him the golden sceptre.
- ↑ "Inspired by the Cholas, handed over to Nehru: historic 'Sengol' to be installed in new Parliament building". The Hindu (अंग्रेज़ी में). 2023-05-24. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0971-751X. अभिगमन तिथि 2023-05-28.