तीन एकांत
निर्मल वर्मा की तीन कहानियों ‘धूप का एक टुकड़ा’, ‘डेढ़ इंच ऊपर’ और ‘वीकएंड’ की मंच-प्रस्तुति देवेंद्र राज के निर्देशन में की गई थी।[1] इस संग्रह में ये तीनों कहानियाँ संकलित हैं। तीनों कहानियों की भावभूमि और शैली लगभग एक-जैसी है—तीनों में एक-एक पात्र है जो शुरू से लेकर अन्त तक एक लम्बा संवाद बोलता है, इसके साथ ही यह एक अहसास भी बना रहता है कि संवाद की शुरूआत किसी दूसरे पात्र के साथ होती है, लेकिन यहाँ उसकी स्थिति का कोई अर्थ नहीं रहता, क्योंकि न जाने कब यह संवाद मात्र स्व-केन्द्रित होकर रह जाता है। इस प्रकार ये कहानियाँ अकेलेपन के कुछ क्षणों में पात्रों के स्वयं अपने से साक्षात्कार की कहानियाँ हैं।
तीन एकांत | |
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मुखपृष्ठ | |
लेखक | निर्मल वर्मा |
देश | भारत |
भाषा | हिंदी |
विषय | साहित्य |
प्रकाशक | राजकमल प्रकाशन |
प्रकाशन तिथि | ३ मार्च २००५ |
पृष्ठ | ७५ |
धूप का एक टुकड़ा कहानी का दृश्य एक पब्लिक पार्क से शुरू होता है जहाँ कई बेंचें हैं, पृष्ठभूमि में एक चर्च है और जहाँ-तहाँ फैले धूप के कुछ टुकड़े हैं। एक बूढ़ा है जो एक पैरेम्बुलेटर के सामने बैठा है और संयोग से उसी बेंच पर आकर बैठ जाता है जहाँ यह औरत रोज़ाना आकर बैठती है। इस प्रकार एक मौन, बूढ़े और अपने में ही व्यस्त पात्र की उपस्थिति ने इस औरत के अकेलेपन को भी ज़्यादा रेखांकित करती है। एक पार्क से शुरू होकर भी कहानी का दृश्य-जगत औरत के लम्बे संवाद में उसके अतीत के प्रसंगानुसार बदलता रहता है—लेकिन उन दोनों बेंचों में किसी तरह का चेंज किए बिना ही मात्र प्रकाश द्वारा रेखांकित कुछ विशेष क्षेत्रों अथवा संगीत और अन्ततः एकल अभिनेत्री द्वारा ही कहानी की पूरी यात्रा को पकड़ने की कोशिश की गई है।
डेढ़ इंच ऊपर ‘धूप का एक टुकड़ा’ जैसे फ्रेम की कहानी होते हुए भी अपने अन्तिम स्वरूप में यह उससे बिलकुल ही अलग होती गई। इसमें भी दो पात्र हैं-एक बोलनेवाला और दूसरा सुननेवाला। शुरू में पहली कहानी की तरह यहाँ भी सुननेवाले पात्र की परिकल्पना की गई, लेकिन ज्यों-ज्यों कहानी आगे बढ़ती गई, सुननेवाला पात्र बिलकुल ही अनुपस्थित हो जाता है। कहानी का बूढ़ा पात्र बियर पीते हुए स्वयं खुलता चलता है। प्रस्तुतिकरण के बीच-बीच में उसे बीयर ‘सर्व’ करने के लिए एक बेयरा है जो उसकी आवाज़ पर जब-जब बीयर का मग रखने को आता तो अनायास ही कहानी के दृश्य को पुनः पब से जोड़ देता।
वीकएंड शीर्षक कहानी पूरी की पूरी नायिका के ‘स्वचिन्तन’ से सम्बन्धित है। कहानी की शुरूआत सुबह के भूरे आलोक में नायिका की ‘टेपरिकॉर्ड’ पर आती आवाज़ से की गई—‘‘यह में याद रखूँगी, ये चिनार के पेड़, यह सुबह का भूरा आलोक। और क्या याद रहेगा ? पेड़ों के बाद बदन में भागता यह हिरन, आइसक्रीम का कोन, घास पर धूप में चमकता हुआ, एक साफ़, धुली पीड़ा की फाँक जैसा, मानो अकेला अपने को टोह रहा हो।’’ फिर मुँह-अँधेरे में अलार्म की आवाज़ सुनकर ही उसके मुँह से पहले संवाद निकलते हैं। नायिका एक वीकएंड की समाप्ति पर सुबह-सुबह अपने कमरे पर जाने के लिए तैयार हो रही है, उसका प्रेमी अभी तक पलंग पर सोया हुआ है। इसी बीच पिछले दिन की घटनाओं पर पुनर्विचार करने लगती है और कहानी कमरे से निकलकर एक पार्क में पहुँच जाती है।[2]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "मंच पर कहानी की उपस्थिति". अभिव्यक्ति. मूल (एचटीएम) से 25 दिसंबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 अक्तूबर 2008.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ "तीन एकांत" (पीएचपी). भारतीय साहित्य संग्रह. अभिगमन तिथि 6 अक्तूबर 2008.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)[मृत कड़ियाँ]