तीर्थस्थान
तीर्थस्थान एक ऐसा स्थल है जहां लोग प्रेरणा और सन्तोष के लिये जाते हैं। साधारणतः यह नदी के घाट पर अथवा पहाडी पर होता है जहां एक और लोक प्रस्थान करने की कल्पना की जा सकती है।हिंदू तीर्थ स्थलों पर पिकनिक मनाने नही जाना चाहिए। दृश्य दर्शन के अतिरिक्त अपने वंशजों के बारे में भी जानना चाहिए कि आप से पहले आप के वंश के किन किन लोगों ने यहां की यात्रा की ओर आप के वंश के कोन कोन से वंशज जिनको आप नही जानते उनके नाम जानने और उनको याद करने से उनको भी प्रसंता प्राप्त होती है।और आप की वंशावली आगे की पीढ़ियों तक पहुंचती रहती है।जो आज के युग में सिमट चुकीं हैं वंशावली का होना भी वंश के लिए गर्व महसूस करती है। तीर्थस्थानमें आप के कुल के तीर्थ पुरोहितों की बही में सदा संजो कर आप की पीढ़ियों के लिए रखी रहती है। यह कार्य करने वाले तीर्थ पुरोहित कहलाते हैं।तीर्थपुरोहित किसी भी तीर्थ क्षेत्र का वह प्रधान पुजारी होता है, जो कि राजा या किसी अन्य यजमान का मुख्य पुजारी होता है तथा जो उनका यज्ञ, अनुष्ठान, कर्मकाण्ड आदि संपूर्ण करवाता है।
अर्थात किसी भी तीर्थ क्षेत्र में कर्मकांड तथा अनुष्ठान कराने के लिए जो पुरोहित होते है, उन्हें तीर्थपुरोहित कहा जाता है। राजा के भी तीर्थ पुरोहित होते थे, जिन्हें राज तीर्थपुरोहित कहा जाता था। तथा उनका विशेष महत्त्व होता था। तीर्थ पुरोहित का पद कुल परम्परागत चलता है। अतः विशेष कुलों के तीर्थपुरोहित भी नियत रहते हैं। उस कुल का जो तीर्थपुरोहित जो होगा वही उस कुल का सभी अनुष्ठान करवाएगा। किसी कारण वश वह कृत्य नही करा पाता, फिर भी वह अपना भाग लेगा, चाहे कृत्य कोई दूसरा ब्राह्मण ही क्यों न कराए।
सन्दर्भ
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