तीसवर्षीय युद्ध
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सन् 1618 से 1648 तक कैथोलिकों और प्रोटेसटेटों के बीच युद्धों की जो परम्परा चली थी उसे ही साधारणतया तीसवर्षीय युद्ध कहा जाता है। इसका आरम्भ बोहेमिया के राजसिंहासन पर पैलेटाइन के इलेक्टर फ्रेडरिक के दावे से हुआ और अन्त वेस्टफेलिया की संधि से। धार्मिक युद्ध होते हुए भी इसमें राजनीतिक झगड़े उलझे हुए थे।
परिचय
संपादित करेंइस युद्धशृंखला के अनेक कारणों में पहला औग्सब सम्मेलन के निर्णयों की दी त्रुटियों थी; जैसे उसमें धर्मसुधारक लूथर के अनुयायियों की धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार तो स्वीकृत किया गया, परंतु काल्विन के अनुयायियों का नहीं। फिर प्रोटेस्टेंट राजाओं को गिरजाघरों की भूमि अधिकृत करने से भी नहीं रोका गया। कैथोलिक पक्ष प्रबल था, अत: प्रोटेस्टेंट नरेशों ने संघटित होकर एक यूनियन की स्थापना की जिसके जवाब में तत्काल ही कैथोलिक राजाओं ने एक लीग की स्थापना कर दी जिसका नेता बवेरिया का ड्युक मैक्समिलियन था। यद्यपि बोहेमिया हैप्सबर्ग साम्राज्य के अंतर्गत था, फिर भी वहाँ के प्रोटेस्टेंट बहुत शक्तिशाली थे। उन्होंने एक संधि द्वारा सम्राट् से बड़े विशेषाधिकार प्राप्त किए थे परंतु उस संधि का पालन न कर सरकार द्वारा दो प्रोटेस्टेंट गिरजे गिरा दिए गए। फलत: सन् 1618 में प्राग में बलवा हो गया और क्रुद्ध बोहेमियन नेताओं ने सम्राट् के दो प्रतिनिधियों को बंदी बनाकर उन्हें खिड़की से बाहर फेंक दिया और साथ ही हैप्सबर्ग की अधीनता का त्याग कर उन्होने पैलेटाइन के इलेक्टर फ्रेडरिक को अपना राजा बना लिया जो प्रोटेस्टेंट यूनियन का प्रधान ओर इंग्लैड के राजा प्रथम जेम्स का दामाद था। इसपर सम्राट् फार्डिनेंड द्वितीय ने कैथोलिक लीग से सहायता की याचना की।
सन् 1620 ई0 में मैक्सिमिलियन द्वारा संचालित लीग की सेना से पहले ही युद्ध में फ्रेडरिक भाग खड़ा हुआ और केवल हेमंत ऋतु भर बोहेमिया का राजा रहने के कारण 'हेमंतनरेश' की व्यंग्यात्मक उपाधि से विभूषित हुआ। इंग्लैंड का जेम्स अपने सहज दंभ और फ्रांस का महामंत्री रीशलू हयूजीनाटों से उलझा रहने के कारण इस समय इस झगड़े से दूर ही रहे। परंतु डेनमार्क के राजा क्रिश्चियन चतुर्थ ने अपने सहधर्मी प्रोटस्टेटों के रक्षार्थ उत्तरी जर्मनी पर आक्रमण कर दिया परंतु दो बार बुरी तरह पराजित होकर सन 1628 में युद्ध से विरत हो गया। इस विजय से उत्साहित होकर सम्राट् ने औग्सवर्ग की संधि द्वारा दिए गए इलाकों की पुन:प्राप्ति और लूथर मत के सिवा सभी अन्य उपसंप्रदाय को तोड़ देने की आज्ञा प्रचारित की। बोहेमिया का एक क्रूर सरदार वालेंस्टाइन, जिसे सम्राट् ने अपनी स्वतंत्र सेना संघटित करने का अनुमित दी थी, इस समय बहुत प्रबल हो गया था। अपने अत्याचारों के कारण वह सेनापति पद से हटा दिया गया। फलत: कैथोलिक सैन्यबल क्षीण हो गया और इस स्थिति का लाभ उठाकर स्वीडेन नरेश गस्तबस अडाल्फस स्वयं प्रोटेस्टेंट होने के धार्मिक और राज्यविस्तार के राजनीतिक कारणों से युद्ध में शामिल हो गया, परंतु उत्तरी जर्मनी के प्रोटेस्टेट राजाओं ने उसे तब तक कोई महत्व न दिया, जब तक कैथोलिक सेना ने क्रूर सेनापति टिली के नेतृत्व में उत्तरी जर्मनी के प्रधान नगर मागडेवर्ग का विनाश नहीं कर दिया। गस्तवस टिली की ओर चला और लाइपजिग के समीप दोनों में मुठभेड़ हुई। कैथोलिक सेना बुरी तरह पराजित हुई।
राइन तट पर जाड़ा बिताने के बाद वसंत में गस्तवस बवेरिया में घुसा और टिली को पुन: पराजित कर म्युनिख पर अधिकार कर लिया। टिली घायल होकर मर गया। अब सम्राट् ने वालेंस्टाइन को गस्तवस से उसका सामना हुआ। जीत गस्तवस की ही हुई पर वह स्वयं मारा गया। वालेस्टाइन ने रीशूल तथा जर्मनी के प्रोटेस्टेंट राजाओं से गुप्त संधि कर ली जिसपर वह भी मारा गया। यह युद्ध यहीं समाप्त हो जाता परंतु सन् 1635 में रीशलू ने स्पेन के विरुद्ध युद्ध घोषणा कर दी। स्वीडेन ने सम्राट् को पुन: हराया। जब संधि की बात चली, परंतु उसमें कई वर्ष लग गए। अंत में सम्राट् ने फांस से मंसटर में और स्वीडेन से ओसनाब्रुक में संधि की। संधि की शर्तों के अनुसार कैलविन के अनुयायियों को भी धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की गई। छीनी हुई संपत्ति लौटाने की आज्ञा वापस ली गई। जर्मन राजाओं को पारस्परिक और विदेश से भी संधि करने का अधिकार दिया गया। सवीडेन को भी अनेक प्रदेश दिए गए। जर्गनी के जन धन की बड़ी हानि हुई जिससे वह 19वीं शती के उत्तरार्ध तक न सँभल सका। ब्रैडेनबर्ग का इलेक्टर इतना अधिक शक्तिशाली हो गया कि उसने प्रशा के राजा की हैसियत से यूरोप में एक नई शक्ति को जन्म देकर आगे चलकर जर्मन साम्राज्य की स्थापना कर ली।
सन्दर्भ
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- The Thirty Years' War - Czech republic
- Thirty Years' War - LoveToKnow 1911
- The Thirty Years War - The Catholic Encyclopedia
- The Thirty Years War LearningSite
- Thirty Years War Timeline
- Project "Peace of Westphalia" (among others with Essay Volumes of the 26th Exhibition of the Council of Europe "1648: War and Peace in Europe", 1998/99)
- History of the Thirty Years' War by Friedrich von Schiller at Project Gutenberg
- The Thirty Years War