तुलसी घाट का पुराना नाम "लोलार्क घाट" था। यह बाद में संत तुलसी दास जी के नाम पर सोलहवीं सदी इसका नाम बदल दिया। भाद्रपद महिने में यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है। संत तुलसी दास जी द्वारा इस घाट पर श्रीकृष्ण लीला का आरम्भ किया गया ,जो अभी तक कायम है। जो कार्तिक कृष्ण पक्ष द्वादशी तिथी से आरम्भ होकर अश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथी तक होती है। जिसमे नागनथैया (चार-लखी मेला ) , दशावतार झाकी , रास लीला मशहूर है। काशी नरेश द्वारा नागनथैया में स्वर्ण मुद्रा दी जाती है। इस घाट पर संत तुलसी दास जी द्वारा एक हनुमान जी का मंदिर स्थापित है। यहाँ नियमित रूप से संकट मोचन मंदिर की राम नाम संकृर्तन के बाद कीर्तन करने वाले भक्त गण तुलसी घाट स्थित हनुमान मंदिर में कीर्तन करते है,ऐवं महन्त संकट मोचन( विश्वम्भर नाथ मिश्र ) से प्रसाद ग्रहण करते हैं।

तुलसी घाट, वाराणसी

तुलसी घाट के गोलेन्द्र पटेल, हिन्दी साहित्य की नई पीढ़ी के प्रमुख स्तम्भों में से एक एवं कवि हैं।