तेरहवीं
तेरहवीँ मनुष्य जीवन के अन्तिम (सोलहवेँ) सँस्कार का एक अन्ग है। इसके बिना इस सन्सकार की पूर्णता नहीं होती है।और्धदेहिक कृया के अन्तर्गत इसका अहम स्थान है।गरूड़ पुराण के अनुसार जिन मनुष्यों की यहक्रिया नहीं होती है उसकी प्रेतत्व मुक्ति नही होती है। तेरहवीँ क्रिया मृत्यु से तेरहवेँ दिन सम्पन्न की जाती है इस पिण्ड दान और तेरह ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है।