तोषनिधि हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे।

ये फ़र्रूख़ाबाद (उत्तर प्रदेश) जनपद के कम्पिला नगर के निवासी थे। महाकवि तोषनिधि का उपस्थित काल संवत 1798 है। ज्ञातव्य है कि भाषा काव्य के आचार्य महाकवि तोषनिधि ने ‘सुधानिधि’ (सं0-1691) ‘नखशिख’ और ‘विनय शतक’ तीन ग्रंथों की रचना की है। ‘मिश्रबंधु विनोद’ के अनुसार इनके छः ग्रंथों का पता चलता है- ‘कामधेनु’, ‘भैयालाल पचीसी’, ‘कमलापति चालीसा’, ‘दीन व्यंग्यशतक’ और ‘महाभारती छप्पनी’। (माधुरी, नवम्बर-1927, पृ0-584-85) में इनकी सात रचनाओं का उल्लेख है- ‘भारत पंचशिका’ (यही विनोद का ‘महाभारत’ छप्पनी ग्रंथ प्रतीत होता है।) ‘दौलत चन्द्रिका’, ‘राजनीति’, ‘आत्मशिक्षा’, ‘दुर्गापचीसी’ (संभवतः यही भैयालाल पचीसी है), ‘नायिका भेद’ (अपूर्ण) और ‘व्यंग्यशतक’। इनकी शैली सरल, सरस तथा स्वाभाविक है। एक अन्योक्ति देखिए-

ठाठ कियौ है भली विधि सों अरु पाग सँभारि लखी परछाहीं।
ऊँचे हयन्द गयन्दन पै धरे भेरि नगारे हैं फौजन माहीं।
ठाठ फजीहत को निधि तोष औ पैरन मैं तरवारन बाहीं।
ऐरे सिपाही बिचारि ले तू इन बातन में मन सूर है नाहीं।।
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सन्दर्भ संपादित करें

  1. सिंह, डॉ॰राजकुमार (जनवरी २००७). विचार विमर्श. मथुरा (उत्तर प्रदेश)- २८१००१: सारंग प्रकाशन, सारंग विहार, रिफायनरी नगर. पृ॰ १२४. |access-date= दिए जाने पर |url= भी दिया जाना चाहिए (मदद)सीएस1 रखरखाव: स्थान (link)