त्रिस्सूर जिला
त्रिस्सूर ज़िला या त्रिश्शूर ज़िला भारत के केरल राज्य का एक ज़िला है। यह केरल के मध्य भाग में स्थित है। ज़िला केरल की सांस्कृतिक राजधानी कहलाता है। त्रिस्सूर उत्तर में पालक्काड़ ज़िले से, पूर्व में पालक्काड़ और कोयम्बतूर ज़िले से, दक्षिण में एर्नाकुलम ज़िले और इडुक्की ज़िलों से तथा पश्चिम में अरब सागर से जुड़ा हुआ है। त्रिस्सूर का नाम मलयालम शब्द "त्रिस्सिवपेरुर" से निकला है जिसका अर्थ होता है शिव का पवित्र घर। प्राचीन काल में इसे वृषभद्रीपुरम और तेन कैलाशम कहा जाता था। त्रिस्सूर जिले ने दक्षिण भारत के राजनैतिक इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इस जिले का प्रारंभिक राजनैतिक इतिहास संगम काल के चेर वंश से जुड़ा हुआ है जिन्होंने केरल के बड़े हिस्से पर शासन किया था।[1][2]
त्रिस्सूर ज़िला Thrissur district | |
जिले की स्थिति | |
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मुख्यालय | त्रिश्शूर |
प्रदेश | केरल, भारत |
अक्षांश | 10.52N |
देशांतर | 76.21E |
समुद्र तल से ऊंचाई | 5 मीटर |
औसत वर्षा | 550 मि.मी. |
जनसंख्या | 29,75,440 |
क्षेत्रफल | 3,032 वर्ग किलोमीटर |
मुख्य भाषा(एँ) | मलयालम |
संस्कृति
संपादित करेंवर्तमान त्रिस्सूर जिले का संपूर्ण भाग चेरा साम्राज्य का हिस्सा था। त्रिस्सूर की सांस्कृतिक परंपराएं काफी पुरानी हैं। प्राचीन का से ही यह अध्ययन और संस्कृति का केंद्र रहा है। केरल का सबसे रंगबिरंगा मंदिर उत्सव त्रिस्सूर पूरम राज्य और राज्य के बाहर के लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां के चर्च, मंदिर, समुद्री तट आदि सभी कुछ पर्यटकों को लुभाते हैं। इसे देखते हुए यहां पर्यटन की अपार संभावनाएं देखी जा रही हैं।
उत्सव
संपादित करेंत्रिचूरपूरम
संपादित करेंत्रिचूरपूरम यहां का सर्वप्रसिद्ध उत्सव है।त्रिचूर पूरम त्रिचूर नगर का वार्षिकोत्सव है। यह भव्य रंगीन मंदिर उत्सव केरल के सभी भाग से लोगों को आकर्षित करता है।
यह उत्सव थेक्किनाडु मैदान पर्वत पर स्थित वडक्कुन्नाथन मंदिर में, नगर के बीचोंबीच आयोजित होता है। यह मलयाली मेडम मास की पूरम तिथि को मनाया जाता है।
द बेसिलिका ऑफ आवर लेडी ऑफ डलर्स
संपादित करेंभारत के सबसे बड़े और ऊंचे चर्चों में से एक द बेसिलिका ऑफ आवर लेडी ऑफ डलस त्रिस्सूर के बीचों बीच स्थित है। 25000 वर्ग फीट में फैले इस चर्च का निर्माण 1940 में कोचीन के महाराजा राम वर्मा की सहायता से किया गया था। चर्च की दो इमारतें सामने की ओर और एक इमारत पीछे की तरफ है जिसे बाइबल टावर कहा जाता है। सामने की दो इमारतें 146 फीट और पीछे की इमारत 260 फीट ऊंची है। ये सभी इमारतें गोथिक शैली में बनी हुई हैं।
इन इमारतों से त्रिस्सूर का खूबसूरत नजारा देखा जा सकता है। चर्च में जर्मनी से मंगाई गई आठ संगीतमय घंटियां हैं जिनसे संगीत के सात सुर सुनाई देते हैं। यहां की सेप्टिक-सेल मॉडल सिमेटरी भारत में अपनी तरह का सबसे बड़ा कब्रिस्तान है। हजारों श्रद्धालु चर्च में आते हैं और परपेचुअल एडोरशन सेंटर में प्रार्थना करते हैं।
पलयुर चर्च
संपादित करेंपलयुर चर्च त्रिस्सूर से 28 किलोमीटर दूर त्रिस्सूर-गुरुवयुर मार्ग पर स्थित है। इसका निर्माण सेंट थॉमस ने करवाया था। चर्च के प्रवेश द्वार पर ग्रेनाइट से बनी 14 प्रतिमाएं रखी गई हैं जो सेंट थॉमस के जीवन का दर्शाती हैं। मुख्य कक्ष के सामने बने जुबिली द्वार पर बाइबल की घटनाओं को बर्मी टीक पर खुदे हुए देखा जा सकता है। पास ही ऐतिहासिक संग्रहालय, बोट जेट्टी और तलियाकुलम हैं।
पेरिंगलकतु बांध
संपादित करेंपेरिंगलकतु बांध चलक्कुडी नदी पर बना है। यह बांध वलपरई जाने वाले मार्ग पर घने जंगल में स्थित है। 290.25 मीटर लंबे इस बांध से चलक्कुडी नदी की सहायक नदी कन्नमकुजिताडु को पानी दिया जाता है। इस बांध को करीब से देखने के लिए विशेष अनुमति की आवश्यकता होती है। यहां से 8 किलोमीटर की दूरी पर एक खूबसूरत स्थान है जहां तीन नदियों- कुरियरकुट्टी, करपरा और परंबिकुलम- का संगम होता है। पहले यहां पर एक पक्षी अभयारण्य था।
चेरामन जुमा मस्जिद
संपादित करेंकोडंगलूर तालुक के मेथला गांव में स्थित चेरामन जुमा मस्जिद भारत की पहली जुमा मस्जिद है। दंतकथाओं के अनुसार चेरामन पेरुमल एक बार अरब की तीर्थ यात्रा पर गए जहां जेद्दा में उनकी मुलाकात संत मोहम्मद से हुई। उसके बाद चेरामन ने इस्लाम धर्म अपना लिया और अपना नाम तजुद्दीन रख लिया। उनकी शादी जेद्दा के तत्कालीन राजा की बहन से हुई और वे यहां बस गए। अपनी मृत्यु से पहले उन्होंने जेद्दा के राजा को केरल के शासकों के नाम कुछ पत्र दिए जिसमें केरल में इस्लाम के प्रचार में सहायता करने का अनुरोध किया गया था। जेद्दा के राजा केरल आए और कोडुंगलूर के राजा से मिले जिन्होंने अरतली मंदिर को जुमा मस्जिद में बदलने में सहायता की।
इस मंदिर का आकार और निर्माण हिंदुओं ने हिंदू कला और वास्तुशिल्प के आधार पर किया था। मस्जिद के साथ तीन महान अनुयायियों की कब्रें हैं जो भारत की पहली और विश्व की दूसरी ऐसी जगह है जहां जुमा नमाज शुरु हुई थी।
पुनरजननी
संपादित करेंपुनरजननी एक प्राचीन गुफा है जो तिरुविलवमल मंदिर से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। माना जाता है कि इस गुफा का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने परशुराम के आदेश पर किया था। भक्तों का विश्वास है कि पुनरजननी को पार कर लेने पर मोक्ष प्राप्त होता है। यूं तो पूरे वर्ष ही यहां भक्तों का तांता लगा रहता है फिर भी नवंबर-दिसंबर में गुरुवयूर एकादशी के दिन यहां हजारों की संख्या में लोग आते हैं। लेकिन गुफा का रास्ता आसान नहीं है। कई स्थान तो ऐसे हैं जहां वायु की कमी है और कभी-कभी दम घुटने लगता है। फिर भी लोग हंसते हुए और भगवान का ध्यान करते हुए इसे पार कर जाते हैं। पुरनजननी से बाहर निकल कर श्रद्धालु कई पवित्र तीर्थो में डुबकी लगाते हैं।
पुनरजननी का संबंध पांडवों से भी जोड़ा जाता है। अनुश्रुतियों के अनुसार मंदिर में पूजा करने के बाद पांडव भाई इस गुफा से होकर गए थे। पास ही भरतपुजा बहती है जो लोगों को लुभाती है। इसके आसपास कई छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं।
गुरुवयूर श्री कृष्ण मंदिर
संपादित करेंभगवान श्री कृष्ण को समर्पित गुरुवायूरप्पन मंदिर दक्षिण भारत का अनोख तीर्थस्थल है। गुरुवायूर में स्थित यह मंदिर दक्षिण का द्वारका कहलाता है। मंदिर में स्थापित भगवान की मुद्रा वैकुंठधाम के समकक्ष है और इसलिए इस मंदिर को भूलोक वैकुंठ कहा जाता है। कहा जाता है कि यहां प्रतिमा की स्थापना गुरु बृहस्पति और वायु देव ने की थी इसलिए इस स्थान का नाम गुरुवायुपुर पड़ा जो बाद में गुरुवायूर कहलाया। यहां भगवान को गुरुवायुरप्पन कहा आता है जिसका अर्थ है गुरुवायूर का देवता। देवी दुर्गा, भगवान गणेश और भगवान अय्यप्प के मंदिर भी इस मंदिर परिसर का हिस्सा हैं। यहां एक पवित्र सरोवर है जिसे रुद्रतीर्थ कहा जाता है।
तुलाभरम यहां का महत्वपूर्ण प्रसाद है जिसमें केले, चीनी, नारियल और सिक्के चढ़ाए जाते हैं। फरवरी-मार्च में 10 दिनों का उत्सव मनाया जाता है जिसमें हाथी दौड़ का आयोजन होता है। मंदिर विवाह समारोह और अन्नप्रसनम के आयोजनों के लिए प्रसिद्ध है जिसमें नवजात शिशु को पहली बार अन्न चखाया जाता है। समय: सुबह 3 बजे-दोपहर 1 बजे तक, शाम 4.30 बजे-रात 8.10 बजे तक। केवल हिंदुओं को प्रवेश की अनुमति।
वदक्कुनाथन मंदिर
संपादित करेंत्रिस्सूर के वदक्कुनाथन मंदिर का निर्माण केरल शैली में किया गया है। यहां पर भगवान शिव, देवी पार्वती, शंकरनारायण, भगवान गणेश, भगवान राम और भगवान श्रीकृष्ण की अराधना की जाती है। मुख्य मंदिर में और कूथंबलम में लकड़ी पर की गई खूबसूरत नक्काशी देखी जा सकती है। माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना भगवान विष्णु के अवतार परशुराम ने की थी। हर साल अप्रैल और मई के दौरान मंदिर परिसर में त्रिस्सूर पूरम का आयोजन किया जाता है। हजारों लोग इस कार्यक्रम को देखने के लिए एकत्रित होते हैं।
त्रिस्सूर चिड़ियाघर
संपादित करेंत्रिस्सूर चिड़ियाघर कला और पुरातत्व संग्रहालय के पास स्थित है। त्रिस्सूर शहर से 2 किलोमीटर दूर 10 एकड़ से ज्यादा क्षेत्रफल में फैला यह इलाका पूरी तरह हरियाली से भरा है। करीब एक शताब्दी पुराना यह चिड़ियाघर लुप्तप्राय और संकटग्रस्त जीव-जंतुओं को संरक्षण प्रदान करता है। यहां पर एशियाई शेरों, बाघों और शेर जैसे पूछ वाले दुर्लभ बंदरों को देखा जा सकता है। यहां के सरीसृप गृह में किंग कोबरा, नाग और करैत को करीब से देखने का मौका मिलता है। यह चिड़ियाघर सोमवार को बंद रहता है।
चूलनूर मोर अभयारण्य
संपादित करेंपलक्कड़ और त्रिस्सूर जिलों में फैला यह मोर अभयारण्य केरल में अपनी तरह का एकमात्र अभयारण्य है। यहां केवल घने जंगल ही नहीं हैं बल्कि कुछ चट्टानें, झाड़ियां और इस क्षेत्र को नमी प्रदान करती नहरें भी हैं। 300 हैक्टेयर में फैले इस अभयारण्य में कुल 200 मोर हैं। इनके अलावा करीब 100 अन्य प्रकार के पक्षी भी यहां पाए जाते हैं। मानसून के फौरन बाद यहां सैकड़ों की संख्या में तितलियां देखी जा सकती हैं। 200 हैक्टैयर में फैला कुंचन स्मृतिवनम, जिसका नाम महान मलयालम कवि कुंचन नांबियार के नाम पर रखा गया था, इस अभयारण्य का एक हिस्सा है। यहां से कुछ किलोमीटर की दूरी पर कुंचन नांबियार का जन्मस्थान किलिक्कुरिस्सीमंगलम स्थित है।
नट्टिका बीच
संपादित करेंत्रिस्सूर से 30 किलोमीटर दूर स्थित नट्टिका बीच सुनहरी रेत और नारियल के पेड़ों से सजा शांत बीच है। यह खूबसूरत स्थान पैकेज टूर के लिए बिल्कुल उपयुक्त है। यहां स्थित रिजॉर्ट केरल के ग्रामीण वातावरण में सभी आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं। यहां के मुख्य आकर्षणों में बैकवॉटर क्रूज, गहरे समुद्र में मछली पकड़ना, समुद्र के किनार वॉलीबॉल, बैडमिंटन आदि खेल शामिल हैं।
आवागमन
संपादित करें- वायु मार्ग
नजदीकी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा नेदुंबस्सरी है जो यहां से 58 किलोमीटर दूर है।
- रेल मार्ग
त्रिस्सूर रेलवे स्टेशन केरल के दक्षिणी हिस्से को भारत के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाली रेलवे लाइन पर स्थित है।
- सड़क मार्ग
त्रिस्सूर केरल और देश के लगभग सभी प्रमुख शहरों से सड़कों के जरिए जुड़ा हुआ है।
चित्रदीर्घा
संपादित करें-
चिम्मोनी बाँध - त्रिस्सूर शहर से 30 km दूर
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Guruvayur Temple entrance - 25 km from Thrissur City.
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East Gate of Vadakumnathan Temple.
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Dawn at Kurumaly River.
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Poothan and Thira for the Machattu Mamangam festival.
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Muthuvara Shiva Temple.
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Lonely Planet South India & Kerala," Isabella Noble et al, Lonely Planet, 2017, ISBN 9781787012394
- ↑ "The Rough Guide to South India and Kerala," Rough Guides UK, 2017, ISBN 9780241332894