थॉमस एक्विनास
संत थॉमस एक्विनास (लातिन: Thomas Aquinas, इतालवी: Tommaso d'Aquino; 1225 – 7 मार्च 1274) एक इतालवी[9] डोमिनिकन फ्रायर, पादरी तथा सिसिली साम्राज्य, इटली में एक्विनो काउंटी से विद्वतावाद की परंपरा में एक प्रभावशाली दार्शनिक और धर्ममीमांसक के साथ ही एक उत्कृष्ट न्यायविद् थे। थॉमस प्राकृतिक ईश्वरमीमांसा के एक प्रमुख प्रस्तावक और एक विचार सम्प्रदाय (धर्ममीमांसा और दर्शन दोनों को सम्मिलित किए हुए) के जनक थे, जिसे थॉमसवाद के नाम से जाना जाता है । उन्होंने यह तर्क प्रतिपादित किया कि ईश्वर प्राकृतिक तर्कबुद्धि का प्रकाश और आस्था की ज्योति का स्रोत है। उन्हें "मध्ययुग का सबसे प्रभावशाली विचारक" और "मध्ययुगीन दार्शनिक- धर्मशास्त्रीयों में महानतम" के रूप में वर्णित किया जाता है। उनके विचारों ने, उस समय के कैथोलिक चर्च की कई धाराओं से भिन्न, अरस्तू द्वारा प्रतिपादित कई विचारों को समाविष्ट किया - जिन्हें उन्होंने दार्शनिकः (The Philosopher) कहा - और ईसाई धर्म के सिद्धांतों के साथ अरस्तुवादी दर्शन को संश्लेषित करने का प्रयास किया। कैथोलिक ईश्वरमीमांसा में उन्हें डॉक्टर एंजेलिकस ("स्वर्गदूतात्मक वाचस्पति")," जिसका शीर्षक "डॉक्टर" का अर्थ "शिक्षक" है) और डॉक्टर कम्युनिस ("सार्वभौमिक वाचस्पति") के नाम से जाना जाता है। 1999 में, जॉन पॉल द्वितीय ने इन पारंपरिक शीर्षकों में एक नया शीर्षक जोड़ा: डॉक्टर ह्यूमेनिटैटिस ("मानवता के वाचस्पति")। वे एक महान विद्वतावादी (पांडित्यवाद) तथा समन्वयवादी थे। प्रो॰ डनिंग ने उसको सभी विद्वतावादी दार्शनिकों में से सबसे महान विद्वतावादी माना है। सेण्ट एक्विनास ने न केवल अरस्तू और आगस्टाइन के बल्कि अन्य विधिवेत्ताओं, धर्मशास्त्रियों और टीकाकारों के भी परस्पर विरोधी विचारों में समन्वय स्थापित किया है। इसलिए एम॰ बी॰ फोस्टर ने उनको विश्व का सबसे महान क्रमबद्ध विचारक कहा है। वास्तव में सेण्ट थॉमस एक्विनास ने मध्ययुग के समग्र राजनीतिक चिन्तन का प्रतिनिधित्व किया हैं फोस्टर के मतानुसार वह समूचे मध्यकालीन विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं जैसा कि दूसरा कोई अकेले नहीं कर सका।
थॉमस एक्विनास | |||||||||||||||||||||||||
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पाप-स्वीकारकर्ता कलीसिया वाचस्पति | |||||||||||||||||||||||||
जन्म | तोमास्सो द'अक़्विनो, Tomasso d'Aquino 1225 रोक्केसेक्का, सिसिली राज्य | ||||||||||||||||||||||||
मृत्यु | 7 मार्च 1274 (आयु 48–49) फोसानोवा ऐबे, पोप संचालित राज्य | ||||||||||||||||||||||||
(में) श्रद्धेय | कैथोलिक चर्च एंग्लिकन कम्युनियन[1] लूदर सम्प्रदाय[2] | ||||||||||||||||||||||||
संत घोषित | 18 जुलाई, 1323, अविग्नोन, पोप संचालित राज्य by पोप जॉन XXII | ||||||||||||||||||||||||
प्रमुख तीर्थस्थान | जैकोबिन्स चर्च, तूलूज्, फ़्रांस | ||||||||||||||||||||||||
संत-पर्व दिवस | 28 जनवरी, 7 मार्च (pre-1969 रोमन कैलेंडर) | ||||||||||||||||||||||||
संत विशेषता व प्रतीक | सुम्मा थियोलॉजिके a model church, the sun on the chest of a Dominican friar | ||||||||||||||||||||||||
संरक्षक संत | Academics; against storms; against lightning; apologists; Aquino, Italy; Belcastro, Italy; book sellers; Catholic academies, schools, and universities; chastity; Falena, Italy; learning; pencil makers; philosophers; publishers; scholars; students; University of Santo Tomas; Sto. Tomas, Batangas; Mangaldan, Pangasinan; theologians[3] | ||||||||||||||||||||||||
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जीवन परिचय
संपादित करें13 वीं शताब्दी के महान दार्शनिक सेण्ट थॉमस एक्विनास का जन्म 1225 ई॰ में नेपल्स राज्य (इटली) के एक्वीनो नगर में हुआ। उसका पिता एकवीनी का काऊण्ट था उसकी माता थियोडोरा थी। सेण्ट थॉमस एक्विनास का बचपन सम्पूर्ण सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण था। उसकी जन्मजात प्रतिभा को देखकर उसके माता-पिता उसे एक उच्च राज्याधिकारी बनाना चाहते थे। इसलिए उसे 5 वर्ष की आयु में मौंट कैसिनो की पाठशाला में भेजा गया। इसके बाद उसने नेपल्स में शिक्षा ग्रहण की। लेकिन उसके धार्मिक रुझान ने उसके माता-पिता के स्वप्न को चकनाचूर कर दिया और उसने 1244 ई॰ में ’डोमिनिकन सम्प्रदाय‘ की सदस्यता स्वीकार कर ली। उसके माता-पिता ने उसे अनेक प्रलोभन देकर इसकी सदस्यता छोड़ने के लिए विवश किया लेकिन उसके दृढ़ निश्चय ने उनकी बात नहीं मानी। इसलिए वह धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए पेरिस चला गया। वहाँ पर उसने आध् यात्मिक नेता अल्बर्ट महान के चरणों में बैठकर धार्मिक शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद उसने 1252 ई॰ में अध्ययन व अध्यापन कार्य में रुचि ली और उसने इटली के अनेक शिक्षण संस्थानों में पढ़ाया। इस दौरान उसने विलियम ऑफ मोरवेक के सम्पर्क में आने पर अरस्तू व उसके तर्कशास्त्र पर अनेक टीकाएँ लिखीं। उस समय भिक्षुओं के लिए पेरिस विश्वविद्यालय में उपाधि देने का प्रावधान नहीं था। इसलिए पोप के हस्तक्षेप पर ही उसे 1256 ई॰ में ’मास्टर ऑफ थियोलोजी‘ (Master of Theology) की उपाधि दी गई। इसके उपरान्त उसने ईसाई धर्म के बारे में अनेक ग्रन्थ लिखकर ईसाईयत की बहुत सेवा की। पोप तथा अन्य राजा भी अनेक धार्मिक विषयों पर उसकी सलाह लेने लग गए। इस समय उसकी ख्याति चारों ओर फैल चुकी थी। अपने समय के महान प्रकाण्ड विद्वान की अल्पायु में ही 1274 ई॰ में मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के बाद 16 वीं शताब्दी में उसे ’डॉक्टर ऑफ दि चर्च‘ (Doctor of the Church) की उपाधि देकर सम्मानित किया गया।
महत्त्वपूर्ण रचनाएँ
संपादित करेंसेण्ट थॉमस एक्विनास के राज-दर्शन का प्रतिबिम्ब उसकी दो रचनाएँ ’डी रेजिमाइन प्रिन्सिपम‘ (De Regimine Principum) तथा ’कमेण्ट्री ऑन अरिस्टॉटिल्स पॉलिटिक्स‘ (Commentary on Aristotle's Politics) है। इन रचनाओं में राज्य व चर्च के सम्बन्धों के साथ-साथ अन्य समस्याओं पर भी चर्चा हुई है। ये रचनाएँ राज्य व चर्च के सम्बन्धों का सार मानी जाती हैं।’सुम्मा थियोलॉजिका‘ (Summa Theologica) भी एक्विनास का एक ऐसा महान ग्रन्थ माना जाता है, जिसमें प्लेटो तथा अरस्तू के दर्शनशास्त्र का रोमन कानून और ईसाई धर्म-दर्शन के साथ समन्वय स्थापित किया गया है। इस ग्रन्थ में कानून की संकुचित रूप से व्याख्या व विश्लेषण किया गया है। ’रूल ऑफ प्रिन्सेस‘ (Rule of Princess), ’सुम्मा कण्ट्रा जेंटाइल्स‘ (Summa Contra Gentiles) ’टू दि किंग ऑफ साइप्रस‘ (To the King of Cyprus) ’ऑन किंगशिप‘ (On Kingship) भी एक्विनास की अन्य रचनाएँ हैं। ’ऑन किंगशिप‘ में एक्विनास ने राजतन्त्र व नागरिक शासन पर चर्चा की है। उसकी सभी रचनाएँ उसके महान विद्वतावादी होने के दावे की पुष्टि करती हैं।
अध्ययन पद्धति : विद्वतावाद
संपादित करेंसेण्ट थॉमस एक्विनास का युग बौद्धिक और धार्मिक दृष्टि से एक असाधारण युग था। यह युग पूर्ण संश्लेषण का युग था जिसमें समन्यवादी दृष्टिकोण पर जोर दिया जा रहा था। यह विद्वतावाद का युग था जिसमें जीवन दर्शन की नैतिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक व अन्य समस्याओं का सुन्दर समावेश था। विद्वतावाद के दो प्रमुख लक्षण - युक्ति व विश्वास थे। इस युग में चर्च के सर्वाच्चता सिद्धान्त की तार्किक या युक्तिपरक व्याख्या करके यह स्पष्ट किया गया कि चर्च सिद्धान्त तर्क के विपरीत नहीं है। विद्वतावाद विश्वास और युक्ति (तर्क) में तथा यूनानीवाद और चर्चवाद में समन्वय स्थापित करने तथा सब प्रकार के ज्ञान का एकीकरण करने का प्रयास है। सेण्ट आगस्टाइन के विश्वास (Faith) तथा अरस्तू के विवेक (Reason या तर्क में समन्वय स्थापित करने का प्रयास एक्विनास ने किया। उसमे मतानुसार विद्वतावाद (Scholasticism) तीन मंजिलें भवन की तरह है। इसकी पहली मंजिल विज्ञान तथा दूसरी मंजिल दर्शनशास्त्र की प्रतीक है। दर्शनशास्त्र विज्ञान के मूल तत्त्वों को एकत्रित कर उनमें सह-सम्बन्ध स्थापित करता है तथा उसके सार्वभौमिक प्रयोग तथा मान्यता के सिद्धान्तों को निर्धारित करने का प्रयास करता है। यह विज्ञानों का सामान्यकृत व सुविवेचित सार (Essence) है। ये दोनों मंजिल मानव तर्क का प्रतीक हैं जिनका समन्वय व नियन्त्रण धर्मदश्रन द्वारा होना चाहिए। धर्म-दर्शन ज्ञान इमारत की सबसे महत्त्वपूर्ण मंजिल है। यह धर्म-दर्शन ईसाई प्रकाशना (Revelation) पर निर्भर है जो दर्शनशास्त्र तथा विज्ञान से सर्वश्रेष्ठ है। धर्म-विज्ञान या धर्म-दर्शन उस प्रणाली को पूरा कर देता है जिसके आरम्भ बिन्दु विज्ञान और दर्शन हैं। जिस प्रकार विवेक दर्शन का आधार है, उसी प्रकार धर्म-विज्ञान का आधार विश्वास है। इन दोनों में कोई विरोध नहीं है। वे एक-दूसरे के पूरक हैं। अतः दोनों का मिश्रण ज्ञान की इमारत को मजबूत बनाता है। एक्विनास का मानना है कि धर्म-विज्ञान ही सर्वाच्च ज्ञान है जो ज्ञान की अन्य शाखाओं - नीतिशास्त्र, राजनीतिशास्त्र तथा अर्थशास्त्र को अपने अधीन रखता है। इस प्रकार एक्विनास ने मध्ययुग की तीन महान बौद्धिक विचारधाराओं - सार्वभौमिकतावाद, विद्वतावाद और अरस्तूवाद में समन्वय स्थापित किया है। उसने समन्वयात्मक तथा सकारात्मक पद्धति का ही अनुसरण किया है।
सन्दर्भ
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का गलत प्रयोग;diobeth
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का गलत प्रयोग;resurrectionpeople.org
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का गलत प्रयोग;catholicsaints.info
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का गलत प्रयोग;SEP
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का गलत प्रयोग;iep.avicenna
नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है। - ↑ सन्दर्भ त्रुटि:
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का गलत प्रयोग;iep.anselm
नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है। - ↑ Massey 1995, पृ॰ 16.
- ↑ Brown 2014, पृ॰ 12.
- ↑ Conway 1911; Vaughan 1871.