थॉमस हिल ग्रीन
इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। (सितंबर 2014) स्रोत खोजें: "थॉमस हिल ग्रीन" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
इस लेख में सत्यापन हेतु अतिरिक्त संदर्भ अथवा स्रोतों की आवश्यकता है। कृपया विश्वसनीय स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री को चुनौती दी जा सकती है और हटाया भी जा सकता है। स्रोत खोजें: "थॉमस हिल ग्रीन" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
थॉमस हिल ग्रीन (Thomas Hill Green ; 7 अप्रैल 1836 – 15 मार्च 1882) इंग्लैण्ड के दार्शनिक, तथा ब्रिटिश प्रत्यवादी आन्दोलन के सदस्य थे।
आदर्शवादी विचारक ग्रीन का राजदर्शन के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। हम उसके दर्शन में आदर्शवाद, उदारतावाद, व्यक्तिवाद तथा सत्तावाद का एक सुन्दर समन्वय पाते हैं। उन्होंने आधुनिक उदारवाद को एक नया धार्मिक विश्वास प्रदान किया, व्यक्तिवाद को नैतिक तथा सामाजिक बनाया और आदर्शवाद को सन्तुलित एवं परिमार्जित किया। उन्होंने अपने दर्शन में व्यक्ति तथा राज्य दोनों को महत्त्व दिया। वेपर का यह मन्तव्य सही है कि ग्रीन ने अंग्रेजों को बेन्थमवाद से कहीं अधिक सन्तुष्टि प्रदान की। काण्ट के दर्शन पर आधारित होने के कारण उसका आदर्शवाद अधिक सौम्य है।
जीवन परिचय
संपादित करेंटी॰ एच॰ ग्रीन का जन्म 7 अप्रैल 1836 ई॰ में यार्कशायर जिले के बिरकिन नामक स्थान पर हुआ। उसका पिता एक प्रसिद्ध पादरी था। लेकिन वह धार्मिक कर्मकाण्ड से सर्वथा दूर रहकर बाइबल की शिक्षाओं के अनुसार जीवन व्यतीत करता था। ग्रीन पर अपने पिता की नैतिकता और प्रचण्ड धार्मिक उत्साह का व्यापक प्रभाव पड़ा। उसने 14 वर्ष की आयु तक घर पर ही ज्ञानार्जन किया और तत्पश्चात् 1850 से 1855 ई॰ तक उसने रग्बी का अध्ययन किया। 1855 में उसने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और अपने जीवन का शेष सारा समय यहीं पर बिताया। यद्यपि ग्रीन कोई प्रतिभाशाली विद्यार्थी नहीं था, लेकिन फिर भी उसने स्वयं को अध्ययन कार्य से जोड़े रखा। ऑक्सफोर्ड में ग्रीन की भेंट बेन्जामिन जावेट से हुई। इस विद्वान व्यक्ति के सम्पर्क में आने पर ग्रीन के जीवन में बौद्धिक क्रांति का सूत्रपात हुआ। उसने 1860 में बेलियल फेलोशिप प्राप्त की, वह 1866 में ऑक्सफोर्ड में ही टयूटर नियुक्त हुए और 1878 तक इसी पद पर कार्य करते रहे। 1878 में वह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में ही नैतिक दर्शन (Moral Philosophy) का प्राध्यापक नियुक्त हुआ और जीवन में बहुत प्रसिद्धि प्राप्त की। अपने अध्यापन कार्य के साथ-साथ उसने सार्वजनिक मामलों तथा व्यावहारिक राजनीति में भी भाग लिया। वह वह उदारवादी दल (Liberal Party) का सक्रिय सदस्य रहा और ऑक्सफोर्ड टाउन काउन्सिल से जन प्रतिनिधि के रूप में निर्वाचित हुआ। उसने अपने पद पर रहते हुए शराबबन्दी, गरीबों की शिक्षा में सुधार आदि कार्य किए। उसने शराबबन्दी कानून बनवाने व उसे लागू करवाने के लिए शराबन्दी आन्दोलन में भाग लिया। लेकिन यह भाग्य की विडम्बना रही कि समाज सेवा को सर्वाच्च प्राथमिकता देने वाले इस महान दार्शनिक की 26 मार्च 1882 को 46 वर्ष की अल्पायु में ही मृत्यु हो गई।
महत्त्वपूर्ण रचनाएँ
संपादित करेंग्रीन ने क्रमबद्ध रूप से लिखते हुए राजनीतिक चिन्तन के इतिहास में अपना अमूल्य योगदान दिया है। उसके जीवनकाल में उसकी कोई रचना प्रकाशित नहीं हुई। अतः आर॰ एल॰ नेटलशिप ने ग्रीन पर सबसे प्रिय शिष्य होने के नाते उसकी रचनाओं को तीन भागों में प्रकाशित किया। उसकी अधिकांश रचनाएँ दर्शनशास्त्र और नीतिविषयक हैं। उसकी महत्त्वपूर्ण रचनाएँ निम्नलिखित हैं :
- (१) लिबरल लेजिस्लेशन एण्ड फ्रीडम ऑफ काण्ट्रेक्ट : यह रचना 1880 में आयरिश जमींदारों ओर असामियों के बीच में हुए समझौते को नियन्त्रित करने के लिए ग्लैडस्टन द्वारा प्रस्तुत किए गए प्रस्ताव पर दिए गए भाषण का संग्रह है। यह रचना ग्रीन की सर्वश्रेष्ठ और महत्त्वपूर्ण रचना है।
- (२) प्रोलोगोमेना टू एथिक्स (Prolegomena to Ethics) :(1883) यह रचना नीतिशास्त्र से सम्बन्धित है। इसमें ग्रीन द्वारा प्राध्यापक के तौर पर दिए गए नीति उपदेशों का सार संकलित है।
- (३) लेक्चर्स ऑन दि प्रिंसिपल्स ऑफ पॉलिटिकल आब्लीगेशन : (1885) यह रचना ग्रीन के राजनीतिक सिद्धान्तों का सार है। इसमें राजाज्ञा पालन के सिद्धान्तों पर व्यापक रूप से लिखा गया है। यह रचना ग्रीन के भाषणों का संकलन है। इस रचना में उसने दार्शनिक विचारधारा पर आधारित राजनीतिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन करके एक नया आयाम स्थापित किया है।
- (४) लेक्चर्स ऑन इंगलिश रिवोल्यूशन : इस रचना में ग्रीन द्वारा शानदार क्रान्ति (Glorious Revolution) के बारे में प्रस्तुत किए गए भाषणों के अंश संकलित हैं।
इस प्रकार ग्रीन ने अपनी रचनाओं में नीतिशास्त्र, दर्शनशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र सम्बन्धी विचार प्रस्तुत किए हैं।
ग्रीन के दार्शनिक प्रेरणा-स्रोत
संपादित करेंग्रीन का दर्शन भी हीगल की ही तरह अध्यात्म तत्त्व से अभिप्रेरित है। ग्रीन ने इस तत्त्व को शाश्वत चैतन्य (Eternal Consciouness) कहा है। ग्रीन ने इस विचार का निर्माण करने में यूनानी दर्शन, रूसो का दर्शन, जर्मन आदर्शवाद आदि का विशेष प्रभाव है। ग्रीन के दार्शनिक प्रेरणा-स्रोत निम्नलिखित हैं :-
- (१) यूनानी दर्शन : ग्रीन ने अपना अधिकांश समय ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में व्यतीत किया। यहाँ पर उसने प्लेटो व अरस्तू की रचनाएँ पढ़ने को मिलीं। उसने इन रचनाओं का अध्ययन करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि मनुष्य स्वभाव से एक राजनीतिक प्राणी है, राज्य सदाचार की साँझेदारी है, कानून विशुद्ध तथा निर्विकार बुद्धि की अभिव्यक्ति है और धर्म प्रत्येक व्यक्ति द्वारा अपने सामाजिक कर्त्तव्यों का पालन करने में है। इस प्रकार यूनानी दर्शन ग्रीन के विचारों का प्रेरणा-स्रोत है।
- (२) रूसो का दर्शन : ग्रीन ने रूसो की तरह व्यक्ति की नैतिकता पर विशेष जोर दिया है। रूसो की सामान्य इच्छा को ग्रीन ने भी राज्य की प्रभुत्व शक्ति माना है। उसने सामान्य इच्छा को सामूहिक हित की सामूहिक चेतना का नाम दिया है। ग्रीन का कहना है कि इस सामूहिक चेतना का उद्देश्य सार्वजनिक हित होता है। यह एक ऐसी नैतिक चेतना होती है जिसकी आज्ञा का पालन करके मनुष्य अपनी नैतिक स्वतन्त्रता की प्राप्ति करता है। यह चेतना समाज की सद् इच्छा होती है जो समाज के सामाजिक हितों को पूरा करती है। इस तरह ग्रीन पर रूसो के दर्शन का भी प्रभाव है।
- (३) जर्मन आदर्शवाद : ग्रीन पर जर्मन आदर्शवाद के तीन प्रतिनिधियों - काण्ट, फिक्टे तथा हीगल का भी विशेष प्रभाव है। उसका दर्शन काण्ट के उस स्वतन्त्र इच्छा के सिद्धान्त पर आधारित है जिसके कारण मनुष्य सदैव अपने को साध्य समझता है। काण्ट की ही तरह ग्रीन सद् इच्छा को ही मूल्यवान वस्तु मानता है। वैयक्तिक स्वतन्त्रता, युद्ध और अन्तरराष्ट्रीय नैतिकता के बारे में ग्रीन पर काण्ट का अधिक प्रभाव है। हीगल की ही तरह ग्रीन का भी मानना है कि शाश्वत दैवी चेतना अथवा विवेक निरन्तर अपने चरम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ती रहती है। ग्रीन हीगल की ही तरह राज्य को सर्वाच्च समुदाय मानता है। उसका कहना है कि राज्य से बाहर और राज्य के विरुद्ध व्यक्ति के कोई अधिकार नहीं हो सकते। उसके अनुसार राज्य सामान्य इच्छा की पूर्ण अभिव्यक्ति होने के नाते सर्वश्रेष्ठ है। स्वतन्त्रता के बारे में भी ग्रीन हीगल का ही अनुसरण करते हुए विधेयात्मक (Positive) स्वतन्त्रता को ही स्वीकार करता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि ग्रीन पर हीगल व काण्ट का विशेष प्रभाव है।
- (४) परम्परा विरोधवाद (Non-Conformism) : परम्परा विरोधियों ने ग्रीन के राजनीतिक चिन्तन पर व्यापक प्रभाव डाला है। परम्परा विरोधी चर्च का विरोध करते थे और नैतिकता पर बहुत जोर देते थे। वे सामाजिक व्यसनों पर प्रतिबन्धों के प्रबल समर्थक थे। ग्रीन के विचारों में भी नशेबन्दी, नैतिकता, सम्पत्ति आदि विचारों के समावेश का श्रेय परम्परा-विरोधियों के प्रभाव को ही दर्शाता है। उसने परम्परा-विरोधियों की तरह भू-स्वामित्व का तो विरोध किया, लेकिन निजी सम्पत्ति के सिद्धान्त का समर्थन किया।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि ग्रीन पर यूनानी दर्शन, रूसो के दर्शन, जर्मन आदर्शवाद तथा परम्परा-विरोधियों का व्यापक प्रभाव पड़ा जो आगे चलकर उसकी रचनाओं में मुखरित हुआ। उसने आगे चलकर काण्ट और हीगल की विचारधारा का इंगलैण्ड की व्यक्तिवादी विचारधारा में मेल कर दिया। इन्हीं प्रभावों के कारण ही उसने उदारवाद का आदर्शवादी संशोधन किया।